संस्कृति बोध परियोजना अखिल भारतीय कार्यशाला का समापन
47 कार्यकर्ताओं ने की प्रतिभागिता
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में तीन दिवसीय संस्कृति बोध परियोजना अखिल भारतीय कार्यशाला का समापन हुआ। मंचासीन संस्थान के सचिव वासुदेव प्रजापति, निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिह एवं संस्कृति बोध परियोजना के विषय संयोजक दुर्ग सिंह राजपुरोहित रहे। कार्यशाला में देशभर के संस्कृति बोध परियोजना से जुड़े क्षेत्र एवं प्रांत संयोजकों सहित 47 कार्यकर्ताओं ने प्रतिभागिता की। कार्यशाला में वर्तमान सत्र के लिए अ.भा. संस्कृति ज्ञान परीक्षा एवं अखिल भारतीय संस्कृति महोत्सव में आयोजित होने वाले संस्कृति ज्ञान प्रश्नमंच हेतु प्रश्न संच तैयार किया गया। समापन अवसर पर कार्यकर्ताओं ने अपने अनुभव साझा किए और प्रश्नपत्र निर्माण सम्बन्धी कार्य को और अच्छा बनाने सम्बन्धी महती सुझाव भी दिए।
इस अवसर पर देशभर से आए कार्यकर्ताओं का स्वागत एवं अभिनंदन करते हुए संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने कहा कि सभी ने गहन चिंतन, मनन और सहयोग भावना से इस बड़े कार्य को पूर्णता की ओर बढ़ाया है। निर्धारित समय-सीमा में तैयार किया गया यह कार्य अत्यंत सराहनीय है। उन्होंने आगामी समय में प्रश्न निर्माण सम्बन्धी कुछ सुझाव भी दिए जिन्हें कार्यकर्ताओं ने सहर्ष स्वीकार किया। सं.बो.परियोजना विषय संयोजक दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने शिशु, बाल, किशोर, तरुण वर्ग के निर्धारित कार्यकर्ताओं से वृत्त संकलन करते हुए कहा कि सभी ने मनोयोग से यह कार्य किया है, इसे और अधिक श्रेष्ठ कैसे बनाया जाए, इस पर सभी को ध्यान देना चाहिए।
कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करते हुए संस्थान के सचिव वासुदेव प्रजापति ने कहा कि हम सभी ज्ञान के सागर हैं। हमारा प्रमुख कार्य ज्ञान प्राप्त करना और इसी में रत रहकर ज्ञान को विद्यार्थियों तक पहुंचाना है। हमारे देश में ज्ञान की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है, उसे छात्रों तक पहुंचाना हम सभी का कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि हमारे पास नई पीढ़ी को देने के लिए पर्याप्त सामग्री होनी चाहिए। यह तभी होगा जब हमारे अंदर स्वाध्याय का भाव होगा। नई-नई जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा स्वाध्याय के द्वारा ही पूर्ण होती है। ज्ञान का क्षेत्र अपने आप में समुद्र की भांति अथाह है। हमारे अंदर उत्कृष्टता की भूख होनी चाहिए अर्थात अच्छे से अच्छा कार्य करना। उन्होंने कहा कि विषय को अच्छी तरह समझकर आत्मसात करें और उसमें अपना कुछ नया लिखें तो वह आपकी मौलिकता होगी। जो ज्ञान प्राप्त किया, उसे समझें और बालकों तक पहुंचाएं।