ज्यादा जोगी मठ उजाड़ नहीं,यहां तो ज्यादा चेले…
कुछ चेले बोले,आश्रम को कमर्शियल किया जा रहा है और यह करना यहां शोभा नहीं देता
वरिष्ठ पत्रकार राजेश शांडिल्य की फेसबुक वाल से
कुरुक्षेत्र। ज्यादा जोगी मठ उजाड़…कहावत पुरानी है,सुनी ही होगी आपने।मगर धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में यह कहावत थोड़ी सी भिन्न हो रही है।यहां चेलों की संख्या बढ़ रही है। कुछ कहीं से ठुकराए हुए हैं तो कुछ प्रभाव देख कर आए हैं। इनमें अधिकांश के टारगेट फिक्स हैं।इन्हीं की पूर्ति के लिए गुरु महाराज की प्रदक्षिणा समय समय पर होती रहती हैं,कई बार गुरु भी एक्सचेंज कर लिए जाते हैं।गुरुओं से आस में कोई बुराई नहीं,गुरु तो वैसे भी शिष्यों की डूबी नैय्या पार लगाने में युग युगांतर से भूमिका निभा रहे हैं,लेकिन अपनी नैय्या पार लगाने की जुगत में कई मर्तबा चेले भूल जाते हैं कि मठ, मंदिरों,आश्रमों की अपनी एक मर्यादा होती है। उस मर्यादा को लांघने पर असर चेलों पर नहीं,बल्कि तारणहार गुरुजी पर पड़ता है।
आध्यात्मिक नगरी धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में अनेक मठ,मंदिर,आश्रम,अखाड़े हैं और तीर्थस्थल हैं। इनमें कुछ आजादी के बाद बने हैं तो कई सदियों पुराने हैं,चुनिंदा हैं जो हाल फिलहाल में बने हैं। इनमें तेजी से प्रचार प्रसार के साथ गीता ज्ञान संस्थान का नाम आता है।आश्रम के संस्थापक हैं गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज। कुरुक्षेत्र सहित हरियाणा के कई जिलों और दूसरे प्रांतों में भी उनके आश्रम और गोशालाएं हैं। पिछले नौ वर्षों में गुरु महाराज की कीर्ति, शिष्यों की संख्या, धार्मिक सामाजिक औरसेवा कार्यो की देश विदेश में गतिविधियों के सहित आश्रमों एवं गौशालाओं की श्रृंखला में भी काफी इजाफा हुआ है। उनमें आस्थारखने वाले श्रद्धालुओं में विभिन्न देशों और राज्यों के श्रद्धालु शामिल हैं।
राज्य सरकार और कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के सहयोग से गुरु महाराज की संस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई गीता महोत्सव दूसरे देशों मेंजाकर सफलतापूर्वक आयोजित कर चुकी है। निस्संदेह इन सभी कार्यों में उनके शिष्यों की कड़ी मेहनत भी शुमार है। इसी वजह सेगीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज से टीस रखने वालों की भी कमी नहीं। गाहे-बगाहे बीच बीच में उनके गीता मनीषी के रुतबे और उनकी गतिविधियों पर सवाल भी उठते रहे हैं। इस तरह की आलोचनाओं को हाथी चले अपनी चाल… वाली बात कह कर नजरंदाज किया जा सकता है। मगर सटीक बात से मुंह फेरना चेलों के लिए भले चिंता की बात ना हो,मगर मर्यादा का पाठ पढ़ाने और क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाओगे के गीता वाले संदेश पर भारी जरुर पड़ती है। खासकर तब जब सब कुछ गीता जैसे महान ग्रंथ के आदर्शों पर ही आश्रित हो।
कुरुक्षेत्र में कई धार्मिक सामाजिक संस्थाओं द्वारा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाया गया। कहीं यह कार्यक्रम सप्ताह का था तो कहीं यह महोत्सव एक, दो या तीन दिन चला। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम कुरुक्षेत्र के नए पुराने मंदिरों में खूब रही,मगर गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज के गीता ज्ञान संस्थानम में और भी शानदार नजारा था। भव्य रुप में सजावट,छोटे बच्चों के लिए झूले,चाट पकौड़ी,गोल गप्पे,पाव भाजी इत्यादि की स्टाल और अन्य कई तरह की सामग्री की स्टाल यहां लगाई गई थी। हां यह बता दें कि यह सभी स्टाल व झूले आश्रम के बाहर नहीं,बल्कि अंदर थे। जहां बच्चे 100 रुपये देकर आप झूला झुला सकते थे,व्यंजनों की स्टाल पर पैसे देकर कूपन के जरिए इन व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते थे और अन्य सामग्री को खरीदने के लिए आप भुगतान कर यह सामान अपने घर या दुकान के लिए ले जा सकते थे। कुछ चेलों के सुझाव पर आश्रम में श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव पर यह सुव्यवस्था की गई थी। मगर आश्रम से ही जुड़े कुछ महानुभावों को यह कारगुजारी नागवार गुजरी।इनका कहना है कि गीता संग्रहालय और झांकियों की टिकट तक तक तो स्वीकार हो सकता है,लेकिन आश्रम में कदम रखने के बाद संग्रहालय से लेकर,झूलों और तरह तरह की स्टालों पर यह परंपरा ठीक नहीं है। नतीजन इन्होंने मौखिक रुप से प्रचार करना शुरु किया कि यह ठीक नहीं हो रहा है। आश्रम को कमर्शियल किया जा रहा है और यह करना यहां शोभा नहीं देता। जब इनसे पूछा गया कि महाराजश्री को यह क्यों नहीं बताते तो,मुस्कुराहट बिखेर कर इन्होंने चुप्पी साध ली,फिर पूछा तो झल्लाकर बोले सुनता कौन है,खैर।
आश्रम से जुड़े एक महानुभाव ने तो पुराने शहर थानेसर की पुरानी सब्जी मंडी बाजार स्थित श्री हनुमान मंदिर में आयोजित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उदाहरण भी दे दिया। यह महानुभाव स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज की संस्था के साथ साथ सब्जी मंडी स्थित श्री हनुमान मंदिर से भी जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि स्वामी ज्ञानानंद महाराज जी की संस्था बहुत बड़ी है,लेकिन वहां बच्चों के झूलों से लेकर अधिकांश मामला पेड दिख रहा था,यानी भुगतान के साथ,जबकि पुरानी सब्जी मंडी स्थित हनुमान मंदिर से गीता ज्ञान संस्थानम को सबक लेना चाहिए कि इस छोटी सी संस्था ने बकायदा बाजार में स्टाल लगाकर गोल गप्पे इत्यादि सहित अन्य व्यंजनों की स्टाल श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शाम से लेकर देर रात तक निशुल्क चलाए रखी। जबकि भगवान कृष्ण के वेश में पहुंचे कई नन्हें मुन्हे बच्चे गीता ज्ञान संस्थानम के उत्सव के दौरान यहां 100 रुपये की टिकट लेकर झूले झूलते देखे गए। यानी यहां कान्हा भी पैसे देकर झूला झूले।
एक बात यह है कि अगर आश्रम खुद यह सामग्री बना कर इसे एक तय कीमतों पर अपने बिक्री स्टाल पर बेचता तो संभवतः यह स्वीकार भी कर लिया जाता,मगर आश्रम में दिन तय कर ठेके पर झूले और खाद्य एवं अन्य सामग्री के स्टाल बेच कर उन्हें आगे अपने हिसाब से बिक्री करने की छूट देना धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के धर्मस्थलों की अब तक की कार्य पद्धति से मेल नहीं खाता। संभव है यह प्रयोग हो,आगे यह प्रयोग कितना सफल रहेगा और इस तरह की पद्धति को अपनाने से किस तरह की धारणा बनेगी यह तो वक्त बताएगा,मगर इसकी आलोचना शुरु हो गई है, इसे गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज को समझना होगा।