Friday, November 22, 2024
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धरोहर के प्रति सम्मान व्यक्त करने का भाव जाग्रत करना होगा: डॉ. सच्चिदानंद जोशी

by Newz Dex
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भारत की पांडुलिपि संपदा और संरक्षण’ विषय पर व्याख्यान आयोजित

न्यूज डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र, 28 नवम्बर। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा ‘भारत की पांडुलिपि संपदा और संरक्षण’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानन्द जोशी मुख्य वक्ता रहे। संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने अतिथि परिचय कराते हुए बताया कि डॉ. सच्चिदानन्द जोशी जी की शैक्षणिक प्रशासन, सांस्कृतिक प्रशासन और प्रबंधन में विशेषज्ञता है। वे कुशाभाऊ ठाकरे पत्राकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर के दो कार्यकाल तक कुलपति रहे। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में पाठ्यपुस्तकों को स्वीकृत करने वाली उच्चस्तरीय स्थाई समिति के सात वर्ष तक अध्यक्ष भी रहे हैं।

उन्होंने प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के भाषणों का 5 खंडों में प्रकाशन विभाग के लिए हिन्दी में सम्पादन किया है। ‘‘सबका साथ-सबका विकास’’ शीर्षक से इनका प्रकाशन है। डॉ. जोशी ने 25 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया है और देश के सभी प्रमुख नगरों में 100 से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां दी हैं। आपको हिन्दी, मराठी रंगमंच में योगदान के लिए राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर पर सम्मानित एवं पुरस्कृत किया है।

डॉ. सच्चिदानन्द जोशी ने पांडुलिपि क्या होती है, इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि 300 से ज्यादा भाषाओं में पांडुलिपियां लिखी गई हैं। भारत को गर्व है इतनी सारी भाषाओं के लिए अलग-अलग सामग्री तैयार की गई। हस्तिदंत, हिरन के चमड़े पर, पाम लीव्स स्क्रोल्स, ताम्रपत्र, कछुए के शेल, लकड़ी पर मेनस्क्रिप्ट मिलती है।

उन्होंने बताया कि हमारे पूर्वजों ने अपने संदेश को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में या संरक्षित करने में सराहनीय कार्य किया है। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद की पांडुलिपियां उपलब्ध हैं, उन पर शोध हो रहा है। इसमें अब और तेजी आई है। देश ने एलोपैथी का मजबूत विकल्प हमारे सम्मुख रखा है। गणित के क्षेत्र में पांडुलिपियां हैं। वैज्ञानिक संदर्भों के विषय में, युद्ध के लिए विस्फोटकों की जानकारी युक्त पांडुलिपि, शास्त्र, मीमांसा, न्याय दर्शन, विधि विधान पर तर्क के साथ समाधान देने वाली पांडुलिपियां हैं। कई तो 500 से ज्यादा वर्ष पुरानी हैं।

डॉ. जोशी ने कहा कि पांडुलिपियों पर तांबे पर, बांस की पत्ती पर, कपड़े पर, बार्डर पर भी संदर्भ लिखे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कई संदर्भ खुल गए हैं। विद्यार्थियों को इन पर भी कार्य करना चाहिए। समाज में इससे सम्बन्धित वैचारिक अवधारणा तैयार करने की आवश्यकता है। यह कोई ग्लैमरस काम नहीं है लेकिन कुछ सौ वर्ष बाद अवश्य महसूस होगा। उन्होंने कहा कि अथक प्रयास, परिश्रम, समर्पण के साथ युवा तैयार करने होंगे जो इस पाण्डुलिपि की धरोहर को आगे ले जाएं।

डॉ. जोशी ने कहा कि आज का युवा गिने-चुने क्षेत्रों में ही अपना भविष्य चुनता है। इस क्षेत्र में बहुत अधिक काम करने की आवश्यकता है। एक साथ मिलकर, समन्वित, संगठित प्रयास करना होगा। धरोहर के प्रति सम्मान व्यक्त करने का भाव जाग्रत करना होगा। व्याख्यान के अंत में संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने कहा कि डॉ. जोशी द्वारा प्रस्तुत व्याख्यान सांस्कृतिक ऊर्जा देने वाला रहा है। ऊष्मीय मुस्कान के साथ ज्ञानार्जन का सौभाग्य एवं चिंतन की कई उत्प्रेरणाएं प्राप्त हुईं। उन्होंने कहा कि घर बैठे यह पीयूष पान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इससे दूरस्थ पिपासु भी तृप्त होंगे। उन्होंने कहा कि डॉ. जोशी के मूल्यवान विचारों को सुनकर मानस श्रद्धावनत हुआ।

उन्होंने वक्ता एवं देशभर से जुड़े सभी श्रोताओं का धन्यवाद किया और आगामी व्याख्यान जो प्रत्येक शनिवार को सायं 4 से 5 बजे तक प्रसारित किया जाएगा, उससे जुड़ने की अपील करते हुए सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना के साथ व्याख्यान का समापन हुआ।

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