देवताओं के राजा बने इंद्र इसी धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में बने थे वज्रपाणी
वरिष्ठ पत्रकार राजेश शांडिल्य की फेसबुक वाल से
कुरुक्षेत्र। धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र, यानी वो भूमि जहां देवताओं के राजा इंद्र वज्रपाणी बने। वह धरती जहां मां सती का दायां गुल्फ गिरा और मां भद्रकाली शक्तिपीठ सुशोभित हुआ। वह पावन धरा जहां स्थाणु महादेव विराजमान हैं,जिसकी वजह से इस नगर का नाम स्थाणेश्वर और स्थाणीश्वर हुआ।वह पवित्र स्थल जहां वेद उपनिषदों की रचना हुई। महाराजा कुरु ने हल जोत कर धर्म का बीज रोपित किया और पौराणिक कुरुजांगल प्रदेश से यह क्षेत्र धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र बना। महाभारत की वो रणभूमि जिसके बीच खड़े होकर विश्व को कर्म का संदेश गीता के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने दिया। इस तरह की अनेक पौराणिक,एतिहासिक घटनाक्रमों का साक्षी है कुरुक्षेत्र। इन्हीं में एक विशेष घटनाक्रम है ऋषि दधीचि का इस भूमि पर अस्थिदान।यह अस्थि दान महर्षि दधीचि ने क्यों किया था? यह घटनाक्रम धर्मग्रंथों के पन्नों से बाहर निकल कर एक विशालकाय प्रतिमा के माध्यम से जल्द नजर आने वाला है। धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में देश-दुनिया से आने वाले लोगों को यह जीवंत मूर्ति कुरुक्षेत्र के महत्व के साथ महर्षि दधीचि के अस्थिदान की महान गाथा दर्शाएगी ।
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव-2023 से पहले धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में स्थापित होगी महर्षि दधीचि की प्रतिमा
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव-2023 से पहले धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में एक करोड़ की लागत से तैयार की जा रही महर्षि दधीचि,देवराज इंद्र और वज्र के साथ सूर्य देवता को स्थापित करने की योजना है। इससे पहले आज यानी वीरवार को सन्निहित सरोवर तट पर भूमि पूजन किया गया,ताकि अगले दिनों में इस मूर्ति का प्लेटफार्म तैयार कर इसके ऊपर पूरे प्रसंग से जुड़े पात्रों की प्रतिमाओं स्थापित किया जा सके।संभव है कि गीता महोत्सव के दौरान दिसंबर 2023 में इसका लोकार्पण होगा।
इवा योन्ने मेडे डीमारोस से भारतीय संस्कारों में रची बसी महिला बनी साबित्री बाई खानोलंकर
भारतीय सेना के सर्वोच्च सैन्य वीरता पद परमवीर चक्र पर कुरुक्षेत्र से संबंधित इस घटनाक्रम का एक मुख्य चिह्न इसी वज्र का निशान होता है। और यह पदक युद्ध के दौरान, बहादुरी व शौर्य का परिचय देने वाले सैनिकों को वज्र के निशान वाले परमवीर चक्र से नवाजा जाता है। इस पद पर यह चिह्न डिजाइन किया था सावित्री बाई ने। यह नाम किसी भारतीय महिला का नहीं,बल्कि हंगरी मूल के पिता और रुसी मूल की माता की बेटी इवा योन्ने मेडे डीमारोस की बदौलत परमवीर चक्र पर चिह्नित किया गया था। स्विटजरलैंड में जन्मी इस इवा का विवाह भारतीय सैन्य अधिकारी महाराष्ट्रीयन चितपावन ब्राह्मण कुल में पैदा हुए विक्रम खानोलंकर से हुआ था। विवाह के उपरांत इवा ने अपने आपको पूर्ण रुप से भारतीय संस्कारों में उतार लिया था।
पुस्तकालय की वजह से इवा को भारतीय संस्कृति में पैदा हुई थी रुचि
इवा के जन्म के बाद उनकी माता निधन हो गया था। पिता एक पुस्कालयध्यक्ष थे। इसी की वजह से इवा का ज्यादातर समय पुस्तकालय में गुजरता था,जहां उसे तरह तरह की पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिला और इन्हीं में से कुछ पुस्तकों के माध्यम से उसकी रुचि भारतीय संस्कृति में पैदा हुई। दरअसल, एक विदेशी दौरे के दौरान इवा का परिचय ब्रिटेन की सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण ले रहे विक्रम खानोलंकर से हुआ था। यह पहले भारतीय थे,जिनसे वह मिली थी,लेकिन विक्रम खानोलंकर के भारत आने के बाद उनका पत्र व्यवहार चलता रहा और कुछ समय पश्चात दोनों विवाह के सूत्र में बंध गए थे।
संयोग से उन्हीं की बेटी के देवर सोमनाथ शर्मा को मिला था पहला परमवीर चक्र
भारत की आजादी के बाद भारतीय सेना के एक उच्चाधिकारी हीरा लाल अटल की चाहत थी कि सेना में सेवाओं के दौरान साहसिक कार्य करने वालों को ब्रिटिश विक्टोरिया क्रॉस जैसे महत्व के पदक मिले। यह खास तरह के पदक तैयार करने का उन्होंने जिम्मा सावित्री बाई खानोलंकर को दिया था। इस जिम्मेदारी का निर्वहन साबित्री बाई ने बाखूबी किया था। संयोग से यह पहला परमवीर चक्र सम्मान सावित्री बाई खानोलंकर की बेटी के देवर मेजर सोमनाथ शर्मा को 1950 में पहले गणतंत्र दिवस पर मरणोपरांत प्रदान किया गया था।
सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र पर इसलिए मिला वज्र को स्थान
सावित्री बाई खानोलंकर को पदक के रूपांकन के लिये देवराज इंद्र का वज्र सबसे ज्यादा योग्य लगा, क्योंकि यह वज्र महर्षि दधीचि की अस्थियों से बना था।इसी वज्र के लिये महर्षि दधीचि ने देह का त्याग का किया था। महर्षि दधीचि की अस्थियों से बने शस्त्र वज्र को धारण कर देवताओं के राजा इंद्र वज्रपाणी कहलाए और पौराणिक घटना के अनुसार उन्होंने वृत्रासुर का संहार किया।