Thursday, November 21, 2024
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पुरोहित के पुत्र हेमू से सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य का संघर्ष

by Newz Dex
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अब सरकार राज्याभिषेक दिवस मनाएगी,दिल्ली हरियाणा भवन में 7 अक्तूबर को होगा भव्य समारोह

संभवतः हरियाणा सरकार पहली बार मना रही है इस स्तर पर यह कार्यक्रम

सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के पिता राय पूर्ण दास भार्गव करते थे पुरोहिताई, सन् 1516 में व्यापार करने के लिए अलवर के मछेरी गांव से आए थे रेवाड़ी

डॉ. इंदु राव सहित अनेक शोधार्थी मानते हैं कि हेमू ब्राह्मण थे,उनके पिता राय पूर्णदास भार्गव राजपुरोहित थे

राय पूर्णदास भार्गव की जागीरदारी माचेड़ी से नारनौल तक फैली

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल होंगे मुख्य अतिथि, केंद्रीय राज्य मंत्री देवूसिंह चौहान होंगें विशिष्ट अतिथि

वरिष्ठ पत्रकार राजेश शांडिल्य की फेसबुक वाल से

चंडीगढ़। संभवत यह पहली बार है जब हरियाणा सरकार सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य का राज्यभिषेक दिवस दिल्ली स्थित हरियाणा भवन में भव्य स्तर पर आयोजित करने जा रही है। अलवर जिला के पुरोहित के पुत्र से सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य तक का सफर काफी संघर्ष और वीरतापूर्ण रहा। हालांकि अग्रवाल समाज भी सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य को वैश्य समाज का मानते हुए समय समय पर आयोजन करती रही है,लेकिन इतिहासकारों और एक सदी से ज्यादा पुराने एक चित्र में उनके नाम के साथ उनके भार्गव गौत्र का उल्लेख मिलता है,जिसे इस खबर के साथ प्रकाशित किया जा रहा है।सम्राट हेमू के शुरूआती जीवन और हरियाणा के रेवाड़ी में आकर बसने के संबंध में इतिहासकारों का कहना है कि सम्राट हेमू का जन्म सन् 1501 में राजस्थान के अलवर जिले के ‘माछेड़ी’ गांव में राय पूर्ण दास भार्गव के यहां हुआ था। इनके पिता पुरोहिताई का कार्य करते थे। सन् 1516 में व्यापार करने के लिए मछेरी से रेवाड़ी चले आए,क्योंकि उस दौर में रेवाड़ी व्यापार का बड़ा केंद्र था।डॉ. इंदु राव सहित अधिकांश शोधार्थियों का यह स्पष्ट मत है कि हेमू ब्राह्मण थे और उनके पिता राय पूर्ण दास राजपुरोहित थे। उनकी जागीरदारी माचेड़ी से नारनौल तक फैली हुई थी। रेवाड़ी में रहते हुए ही सम्राट हेमू ने अपनी शिक्षा ग्रहण की और विभिन्न भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।

समारोह में सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य की स्मृति में जारी की जाएगी डाक टिकट

हरियाणा सरकार द्वारा आगामी 7 अक्तूबर को नई दिल्ली स्थित हरियाणा भवन में ‘संत महापुरूष सम्मान एवं विचार प्रसार योजना’ के अंतर्गत सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य के राज्याभिषेक दिवस के अवसर पर एक भव्य समारोह आयोजित किया जाएगा। इस समारोह में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल मुख्य अतिथि होंगें जबकि केन्द्रीय संचार राज्यमंत्री देवूसिंह चौहान विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित होंगें। इस समारोह में सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य की स्मृति में एक डाक टिकट जारी कर विमोचन किया जाएगा। इस संबंध में जानकारी देते हुए हरियाणा के सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग के महानिदेशक डॉ. अमित अग्रवाल ने बताया कि राज्य सरकार की ‘संत महापुरुष सम्मान एवं विचार प्रसार योजना’ के तहत यह आयोजन किया जा रहा है। समारोह में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सलाहकार प्रो. रविन्द्र शर्मा, केन्द्र सरकार के पूर्व सचिव विश्वपति त्रिवेदी, दिल्ली सर्कल की चीफ पोस्ट मास्टर जनरल मंजू कुमार सिंह सहित अन्य गणमान्य उपस्थित होंगे।

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के 22 युद्धों में लगातार विजयी रहे सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य

 सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य, जिन्हें हेमू के नाम से भी जाना जाता है, के संबंध में जानकारी देते हुए डॉ अमित अग्रवाल ने बताया कि आज से लगभग 450 वर्ष पहले, मध्यकालीन भारतीय इतिहास में, 22 युद्धों में लगातार विजयी रहे व अकबर की फौजों को हराकर दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले, सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य ऐसे हिन्दू राजा थे जिनमें वीरता, रणनीतिक कौशल और राजनीतिक दूर दृष्टि का अद्भुत मेल था। उन्होंने बताया कि कई इतिहासकारों ने उनकी शूरवीरता, निर्भीकता और सफलता के दृष्टिगत हेमू को मध्यकालीन भारत का नेपोलियन कहकर संबोधित किया है।

रेवाड़ी में सम्राट हेमू ने अपनी शिक्षा ग्रहण की, विभिन्न भाषाओं का प्राप्त किया ज्ञान

सम्राट हेमू के शुरूआती जीवन और हरियाणा के रेवाडी में आकर बसने के संबंध में प्रकाश डालते हुए बताया कि इतिहासकारों के अनुसार सम्राट हेमू का जन्म सन् 1501 में राजस्थान के अलवर जिले के ‘मछेरी’ नामक एक गांव में राय पूर्ण दास भार्गव के यहां हुआ था। इनके पिता पुरोहिताई का कार्य करते थे व सन् 1516 में व्यापार करने के लिए मछेरी से रेवाड़ी चले आए। रेवाडी उन दिनों एक अच्छा-खासा व्यापार केन्द्र था और रेवाड़ी में रहते हुए ही सम्राट हेमू ने अपनी शिक्षा ग्रहण की और विभिन्न भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।डॉ. इंदु राव सहित अधिकांश शोधार्थियों का यह स्पष्ट मत है कि हेमू ब्राह्मण थे और उनके पिता राय पूर्ण दास राजपुरोहित थे। उनकी जागीरदारी माचेड़ी से नारनौल तक फैली हुई थी।

सम्राट हेमू ने एक ही दिन में अकबर की फौजों को हराकर दिल्ली की फतेह

उन्होंने बताया कि इतिहासकारों के अनुसार सम्राट हेमू ने अपने जीवनकाल के दौरान इटावा, काल्पी, बयाना आदि सूबों पर बडी ही सरलता से कब्जाकर कर वर्तमान उत्तर प्रदेश के मध्य एवं पश्चिमी भागों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। इसके बाद 6 अक्टूबर, 1556 को तुगलकाबाद के पास मात्र एक दिन की लडाई में हेमू ने अकबर की फौजों को हराकर दिल्ली को फतेह कर लिया। तत्पश्चात 7 अक्टूबर, 1556 को सम्राट हेमू का दिल्ली के पुराने किले (जो वर्तमान में प्रगति मैदान के सामने हैं) में अफगान तथा राजपूत सेना नायकों के सानिध्य में पूर्ण धार्मिक विधि-विधान से राज्याभिषेक किया गया।

सम्राट हेमू ने उत्तर भारत में हिन्दू राज की स्थापना की

महानिदेशक ने बताया कि सम्राट हेमू ने शताब्दियों से विदेशी शासन की गुलामी में जकडे भारत को मुक्त कराकर हेमचन्द्र विक्रमादित्य की उपाधि धारण की और दक्षिण भारत में स्थापित विजय नगर साम्राज्य की तर्ज पर उत्तर भारत में हिन्दू राज की स्थापना की। सम्राट हेमू ने अपने चित्रों वाले सिक्के ढलवाये, सेना का प्रभावी पुनर्गठन किया और बिना किसी अफगान सेना नायक को हटाए हिन्दू अधिकारियों की नियुक्ति की और सम्राट हेमू अपने कौशल, साहस और पराक्रम के बल पर ‘हेमचन्द्र विक्रमादित्य’ के नाम से देश की शासन सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर आसीन हुए। इनकी सेना में हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग शामिल थे।

हेमू की बढ़ती शक्ति के डर से अकबर ने काबुल लौट जाने की तैयारी की थी

डॉ. अमित अग्रवाल ने पानीपत की दूसरी लड़ाई का जिक्र करते हुए बताया कि इतिहासकारों के अनुसार सम्राट हेमू की बढ़ती शक्ति के डर से अकबर अपने सेनापतियों की सलाह पर काबूल लौट जाने की तैयारी में था परंतु उसके संरक्षक बैरमखॉं ने एक ओर मौका लेने की जिद की। इसके बाद 5 नवम्बर, 1556 को पानीपत के मैदान में सम्राट हेमू और अकबर की सेनाएं आमने-सामने आ डटीं। इतिहासकारों का कहना है कि भय और सुरक्षा के विचार से अकबर और बैरमखां ने स्वयं इस युद्ध में भाग नहीं लिया और वे दोनों युद्ध क्षेत्र से 8 से 10 मील की दूरी पर रहें। किंतु सम्राट हेमू ने स्वयं अपनी सेना का नेतृत्व किया। भयंकर युद्ध में प्रारंभिक सफलताओं से ऐसा लगा कि मुगल सेना शीघ्र ही युद्ध के मैदान से भाग जाएगी लेकिन दुर्भाग्यवश इस युद्ध में सम्राट हेमू बुरी तरह घायल हो गए और उनकी हार हो गई।

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