Friday, November 22, 2024
Home haryana पराली प्रबंधन के लिए करोड़ों कीमत के बायो-डीकम्पोजर की 5 लाख यूनिट खरीद पर अभय चौटाला ने उठाए सवाल,बताया किसान विरोधी निर्णय

पराली प्रबंधन के लिए करोड़ों कीमत के बायो-डीकम्पोजर की 5 लाख यूनिट खरीद पर अभय चौटाला ने उठाए सवाल,बताया किसान विरोधी निर्णय

by Newz Dex
0 comment

किसानो को इन बायो-डीकम्पोजर कैप्सूल का घोल बनाने और खेत मे छिडक़ाव करने पर लगभग एक हजार रूपये प्रति एकड़ करना पड़ेगा खर्च 

बायो-डी कंपोजर धान पराली जलाने से उत्पन्न प्रदूषण का नहीं है समाधान: अभय सिंह चौटाला

कहा – पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए प्रदेश सरकार पिछले कुछ वर्षों से किसानों पर जुर्माना लगाने और बायो-डीकम्पोजर से पराली गलाने जैसे अव्यावहारिक प्रयास कर रही है

समाधान – रोपाई पद्धति के मुकाबले धान की सीधी बिजाई पद्धति में कम अवधि वाली धान किस्मों को अपनाने से पराली प्रदूषण की समस्या हो सकती है खत्म 

सीधी बिजाई में धान की सभी किस्म 10 दिन जल्दी पक कर तैयार हो जाती है जिस कारण गेहूं फसल बुआई से पहले किसान को लगभग 45-50 दिन का समय धान पराली व फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मिलेगा

न्यूज डेक्स संवाददाता

चंडीगढ़। इनेलो के प्रधान महासचिव एवं ऐलनाबाद के विधायक अभय सिंह चौटाला ने हरियाणा सरकार द्वारा पराली प्रबंधन के लिए एक हफ्ते पहले खरीदे गए करोड़ों रूपये कीमत के बायो-डीकम्पोजर की पाँच लाख यूनिट पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह तकनीकी तौर पर अव्यावहारिक और किसान विरोधी निर्णय है। क्योंकि किसानों को इन बायो-डीकम्पोजर कैव्सूल का घोल बनाने और खेत मे छिडक़ाव करने पर लगभग एक हजार रूपये प्रति एकड़  खर्च करना पड़ेगा। 

इनेलो नेता ने कहा कि धान पराली का प्रबंधन किसानो के लिए वर्षों से गंभीर समस्या बनी हुई है क्योंकि धान की पराली पशु चारे के लिए उपयोगी नहीं होने और अगली फसल की बुआई की तैयारी मे 20 दिन से कम समय मिलने के कारण ही बड़ी मात्रा में किसान पराली जलाने के लिए मजबूर होते हैं। पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए प्रदेश सरकार पिछले कुछ वर्षों से किसानो पर जुर्माना लगाने और बायो-डीकम्पोजर से पराली गलाने जैसे अव्यावहारिक प्रयास कर रही हैं जिसके कारण अभी तक कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आए हंै। पूसा संस्थान का मानना है कि डीकम्पोजर घोल के छिडक़ाव से इसे पूर्णयता गलने के लिए 50 दिन का समय चाहिए। वहीं पंजाब कृषि विश्वविधालय द्वारा किये गये अनुसंधान बताते है कि डीकम्पोजर छिडक़ाव से कोई लाभ नहीं है। जबकि बिना बायो-डीकम्पोजर छिडक़ाव भी धान कटाई के बाद गहरी जुताई द्वारा पराली को भूमि मे दबाने और खेत मे समुचित नमी बनाए रखने से पराली 50 दिन मे ही गल जाती है। 

कृषि विज्ञानिकों के अनुसार रोपाई पद्धती के मुकाबले धान की सीधी बिजाई पद्धति में कम अवधि वाली धान किस्मों को अपनाने से पराली प्रदूषण की समस्या खत्म हो सकती है। सीधी बिजाई में धान की सभी किस्म 10 दिन जल्दी पक कर तैयार हो जाती हैं जिस कारण गेंहू फसल बुआई से पहले किसान को लगभग 45-50 दिन का समय धान पराली व फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मिलता है। इससे पराली जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और प्रदूषण में कमी आएगी, साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखने में मदद मिलेगी और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता भी कम होगी। सरकार धान की सरकारी खरीद का समय 10-30 सितम्बर तक का समय सुनिश्चित करे ताकि किसान स्वयं ही धान की सीधी बिजाई पद्धति में कम अवधि वाली धान किस्मों को अपना सकें। इससे लगभग एक तिहाई भू-जल, बिजली, डीजल, मजदूरी और खेती लागत में बचत के साथ पर्यावरण प्रदूषण भी कम होगा।

You may also like

Leave a Comment

NewZdex is an online platform to read new , National and international news will be avavible at news portal

Edtior's Picks

Latest Articles

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00