27 अक्तूबर 2023 को भव्य द्वार का लोकार्पण
एक ईंट शहीद के नाम अभियान के प्रयासों से पूरा हुआ शहीद के नाम पर बनने वाले द्वार का निर्माण
न्यूज डेक्स संवाददाता
जम्मू/सांबा।आखिरकार वह दिन भी आ गया जब शहीद लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह के नाम पर शहीदी गेट बन कर तैयार हो चुका है। अमर शहीद लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह को समर्पित शौर्य का प्रतीक इस भव्य द्वार का लोकार्पण 27 अक्तूबर 2023 को केंद्रीय मंत्री डा.जितेंद्र सिंह द्वारा किया जाएगा। यह जानकारी समस्त भारत में चलाए जा रहे एक ईंट शहीद के नाम अभियान के राष्ट्रीय संयोजक एवं कर्तव्यनिष्ठ संस्था के अध्यक्ष संजीव राणा ने दी।उन्होंने बताया कि शहीद लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह की 79 वर्षीय बेटी शर्मिष्ठा द्वारा पिता की याद में सांबा में शहीद स्मारक बनाने की मांग कर रही थी। उनकी इस पीड़ा को एक ईंट शहीदों के नाम अभियान व कर्तव्यनिष्ठ संस्था की बैठक में रखा गया था।इस प्रस्ताव को मंजूरी देने के बाद उन्होंने शहीद स्मारक अभियान के लिए अपनी तरफ से एक पहली ईंट भी सौंपी। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के लिए सबसे पहले लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह ने कुर्बानी दी थी।
उन्होंने बताया कि देश की जनता को यह पता होने चाहिए कि जम्मू कश्मीर की रक्षा के लिए सबसे पहले उनके पिता नारायण सिंह ने अपनी कुर्बानी दी थी। वहीं शहीद की बेटी शर्मिष्ठा ने बताया कि वह अभी अपने पति रिटायर्ड कर्नल बलवंत सिंह के साथ हमीरपुर में ही रह रही हैं, लेकिन पिता के सम्मान के लिए अपना संघर्ष जारी है। उन्होंने एक ईंट शहीद के नाम अभियान के संयोजक संजीव राणा का भी आभार जताया।
चिंताजनक है कि बहुत कम लोग जानते हैं-राणा
संजीव राणा ने कहा कि लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह के बारे में हममें से बहुत ही कम लोग जानते होंगे, क्योंकि वह सेना के उन वीर अफसरों में से एक थे, जिन्होंने अक्टूबर 1947 में सेना के लिए लड़तेहुए अपनी जान न्योछावर कर दी थी। वह राज्य बल के सबसे बेहतरीन अधिकारियों में से एक थे, जिन्हें ब्रिटिश के अंडर बर्मा ऑपरेशन के दौरान अपनी सेवाओं के लिए आर्डर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर से भी सम्मानित किया गया था।
आने वाली पीढ़ी को मालूम हो यह इतिहास
अक्तूबर, 1947 आते-आते कश्मीर की फिजा इतनी जहरीली हो गई थी कि जब पाकिस्तान ने मजहबी नारों के साथ जम्मू-कश्मीररियासत पर हमला कर दिया था, तब महाराजा का मुस्लिम सैन्यबल हथियारों के साथ एकाएक शत्रुओं के साथ हो गया था। उससमय रियासती सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह को उनके मुस्लिम सैनिकों ने मजहबी उन्माद में अन्य हिंदू सैनिकों केसाथ निर्ममता से मौत के घाट उतार दिया और पाकिस्तानी इस्लामी आक्रांताओं से जा मिले थे। उनकी बटालियन के सैनिको का हीकाम था, जिन्होंने कम संख्या में होने के बावजूद विद्रोहियों को दो दिन तक रोक कर रखा था।