Friday, November 22, 2024
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कुरुक्षेत्र में अब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चरखा भी बना सोलर चरखा

by Newz Dex
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कुरुक्षेत्र के खादी ग्रामोद्योग संघ मिर्जापुर में ट्रायल के लिए आया सोलर चरखा और कामगारों को दिया जा रहा है प्रशिक्षण

सोलर चरखे से खादी के धागे की कताई बढ़ने से कामगारों की कमाई भी बढ़ेगी  

न्यूज डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र, 11 दिसंबर। समय परिवर्तन के साथ समाज के हर क्षेत्र में परिवर्तन आया है। यहां तक कि काम करने की तकनीकों और मशीनरी में भी बदलाव हो रहे हैं। ऐसा ही कुछ खादी उद्योग से जुड़े केन्द्रों में भी हो रहा है। उल्लेखनीय है कि खादी अब केवल नेताओं तथा चंद लोगों तक सीमित नहीं है। अब तो खादी ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना ली है। कुरुक्षेत्र के गांव मिर्जापुर में संचालित खादी ग्रामोद्योग संघ नरड़ के सचिव सतपाल सैनी ने बताया कि ऐसा ही सब कुछ खादी उत्पादन केन्द्रों में मशीनरी के परिवर्तन के साथ हुआ है। उन्होंने दावा किया कि आधुनिक तकनीक से बने खादी के कपड़े देश विदेश में उच्च कोटि के ब्रांडिड कपड़ों को भी चुनौती दे रहे हैं।

सैनी ने बताया कि खादी की पहचान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चरखे से बनी हुई है। वैसे तो भारत में चरखे का इतिहास बहुत पुराना है। वर्ष 1908 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के मन में चरखे को देशव्यापी पहचान दिलवाने का ख्याल आया। स्वदेशी आंदोलन के दौरान चरखा हर घर में लोकप्रिय हो गया और फिर वक्त के साथ चरखा भारत की पहचान बन गया लेकिन आज़ादी के बाद चरखा वक्त के साथ पीछे छूटता चला गया। सचिव सतपाल सैनी ने बताया कि अब महात्मा गांधी के चरखे की लुप्त होती लोकप्रियता का पुनर्जन्म हो रहा है क्योंकि अब गांधी जी का चरखा सोलर अवतार ले चुका है।

उन्होंने विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि हाथ से चलने वाले चरखे से एक दिन में औसतन 30 से 32 हैंक्स सूत तैयार किया जा सकता है। एक हैंक का मतलब एक हजार मीटर धागा होता है। खादी ग्रामोद्योग की तरफ से चरखा चलाने वाले को एक हैंक सूत की कताई करने पर 4 रुपये दिये जाते हैं। इस हिसाब से हाथ से चरखा चलाने वाले कामगारों की एक दिन की कमाई औसतन सौ से सवा सौ रुपये तक ही होती है। सैनी ने कहाकि समय परिवर्तन के साथ सोलर चरखे से सूत तैयार करने वाले परिवारों की ज़िंदगी बदल सकती है क्योंकि एक सोलर चरखे से एक दिन में सौ से सवा सौ हैंक्स सूत का धागा तैयार किया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि सोलर चरखा चलाने वाले परिवार की एक दिन की आमदनी 400 से 500 रुपये तक हो सकती है। उन्होंने सोलर चरखे की तकनीक के बारे में बताया कि इस सोलर चरखे में सोलर पैनल के अलावा बैटरी भी लगी होती है जो सूरज की रोशनी से ही चार्ज होती है। ऐसे रात के वक्त भी सोलर चरखा कई घंटों तक काम कर सकता है। उन्होंने कहाकि सोलर चरखा देश में सूत का धागा तैयार करने वाले साढ़े 12 लाख कामगार लोगों की ज़िंदगी में क्रांतिकारी बदलाव लाने की ताकत रखता है। सतपाल सैनी ने बताया कि फ़िलहाल कुरुक्षेत्र में उनके यूनिट के पास एक सोलर पैनल चरखा ट्रायल के लिए आया है। जिसमें कामगारों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है और फिर नियमित रूप से सोलर चरखों को स्थापित कर उत्पादन प्रारम्भ हो जायेगा।

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