22 जनवरी 2024 तक इस तरह के कई अनूठे घटनाक्रमों को साक्षी बनने वाले हैं रामभक्त
500 वर्ष का इंतजार यह सब्र कम थोड़े है,भव्य मंदिर और अयोध्या धाम का कायाकल्प इसी का प्रताप
केवल हम नहीं,दुनिया देख रही है,वह बात अलग कि 500 साल की प्रतीक्षा के बाद बेसब्री से हो रहा है 22 जनवरी का इंतजार
एनडी हिंदुस्तान
इन दिनों अयोध्या जी धाम में एक प्रसंग बहुत प्रमुखता से चर्चा में है। खबर है कि अयोध्या में गिद्धों पक्षियों का एक बड़ा झुंड देखा जा रहा है जो पहले कभी नहीं देखा गया। वैसे गिद्ध नामक पक्षी, जिसे चील भी कहा जाता है, लुप्तप्राय: हो गया है। ठंड के मौसम में उसका भोजन उपलब्ध न होने के कारण गिद्ध वैसे भी बाहर नहीं आता। चर्चा यह भी हो रही है कि भगवान राम के भव्य मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा के समय के निकट होने पर गिद्धराज जटायु के झुण्ड का प्रकट होना कोई संयोग है या चमत्कार ? यदि इस घटना को भगवान राम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से जोड़ कर देखा जाये तो मन अपने आप कह उठेगा कि गिद्धों के झुंडों का अयोध्या धाम में आना न तो कोई संयोग है और ना ही कोई चमत्कार। यह राम मंदिर में भगवान राम के प्रतिष्ठित होने के शुभ अवसर पर रामायण के एक स्वाभाविक एवम् आवश्यक पात्र का रामलला के निमंत्रण पर शुभ आगमन है।
आप देखेंगे तो पायेंगे कि पांच सौ वर्षों के संघर्षों और बलिदानों के उपरांत भगवान राम का अपने निवास रूपी मंदिर में प्रतिष्ठापन का महत्व त्रेता युग में उनके वनवास के बाद अयोध्या वापसी तथा उनके राजतिलक से किसी भी प्रकार से कम नहीं है। उस अवसर पर भी भगवान राम ने अपने सभी प्रिय पात्रों को स्वयं निमंत्रित किया था जिसमें सबसे प्रमुख पात्र केवट भी थे। अब श्री रामजन्मभूमि मंदिर न्यास ऐसे सभी व्यक्तियों को निमन्त्रण पत्र भेज रहा है जिनका रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ में योगदान रहा है। परंतु श्री रामजन्मभूमि मंदिर ट्रस्ट के अपनी सीमाएँ हैं। ट्रस्ट की त्रेता युग के पात्रों को निमंत्रित करने की सामर्थ्य नहीं है। यह कार्य रामलला स्वयं कर रहे हैं।
हम सब जानते है लंका विजय में भगवान राम का सहयोग करने वाले हनुमान और जामवन्त सरीखे वानर और भालू थे। परंतु इनमें एक अहम पात्र गिद्धराज जटायु भी थे जिन्होंने मां जानकी को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। जटायु ने ही भगवान राम को मां जानकी के रावण द्वारा हरण की सही सूचना दी। जटायु श्री राम की पिता दशरथ के मित्र थे जिस कारण भगवान राम उन्हें पिता तुल्य मानते थे। भगवान राम जटायु के त्याग के कारण स्वयं को उनका ऋणी मानते थे। इसी कारण भगवान राम ने अपने स्वयं के हाथों से गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार कर उसे निर्वाण प्रदान किया और वह गति दी जो उनके पिता दशरथ को भी प्राप्त नहीं हुई।
अबिरल भगति मागि बर गीध गयउ हरिधाम।
तेहि की क्रिया जथोचित निज कर कीन्ही राम॥
भगवान राम मर्यादा का पालन तो करते ही हैं वह किए हुए उपकार को भी कभी नहीं भूलते। भगवान राम ने पितातुल्य अपने प्रिय पात्र को अपनी प्राण प्रतिष्ठा के शुभ अवसर पर स्वयं निमंत्रित किया है। इसमें संयोग या चमत्कार जैसा कुछ नहीं है। और यदि यह संयोग अथवा चमत्कार है तो ऐसे संयोग और चमत्कार बाईस जनवरी तक आप खूब देखेंगे।
साभारः श्री केवल कृष्ण गोयल जी (लेखक की रचनाओं का कई समाचार पत्रों में प्रकाशन हो चुका हैं एवं देश के एक राष्ट्रीयकृत बैंक के उच्चाधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हैं)