न्यूज डेक्स संवाददाता
दिल्ली।“ शैक्षणिक नेतृत्व को संस्थागत प्रबंधन में नीडो-गवर्नेंस हेतु उद्यमशीलता कौशल सीखना चाहिए”I ये शब्द नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट के प्रवर्तक प्रो. मदन मोहन गोयल, पूर्व कुलपति एवं कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने कहे। वह भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग (एनसीआईएसएम) के सहयोग से राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान (एनआईईपीए) दिल्ली द्वारा भारतीय चिकित्सा प्रणाली के तहत विश्वविद्यालयों के वरिष्ठ शैक्षणिक प्रशासकों/कॉलेजों के प्राचार्यों के लिए नेतृत्व क्षमता विकास कार्यक्रम के प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। उन का विषय “संस्थागत प्रबंधन में नीडो-गवर्नेंस एवं नैतिकता ” था I प्रो. मधुमिता बंद्योपाध्याय ने स्वागत भाषण दिया और पूर्व कुलपति एम.एम. गोयल की उपलब्धियों पर एक प्रशस्ति पत्र प्रस्तुत किया।
प्रो. गोयल ने कहा किउच्च शिक्षा संस्थानों में आवश्यक-शासन के लिए चिंता किए बिना काम करने हेतु हमें केवल प्रतिबद्धता नहीं, बल्कि समर्पण के साथ आत्म-जागरूक होना होगा। प्रो. गोयल ने कहा कि संस्थागत प्रबंधन में नीडो-गवर्नेंस की नई कहानी हेतु हमें स्ट्रीट स्मार्ट (सरल, नैतिक, कार्य-उन्मुख, उत्तरदायी और पारदर्शी) शैक्षणिक नेतृत्व देना होगा”। प्रो. गोयल ने बताया किआधुनिक समाज की चुनौतियाँ एक ऐसी शासन प्रणाली बनाने की माँग करती हैं जो आज लैंगिक तटस्थ साहित्य के साथ सतत मानव विकास को बढ़ावा दे।प्रो. गोयल का मानना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को रोजगार के लिए शिक्षा को पर्याप्त बनाने हेतु हमें इसके कार्यान्वयन में चुनौतियों को कम कर के सुशासन सुनिश्चित करने के लिए अच्छी तरह से परिभाषित सार्वजनिक-निजी-भागीदारी (पीपीपी) मॉडल को अपनाना चाहिए।
प्रो. गोयल ने बताया कि पेपरवेट के साथ खेलने के सशक्तिकरण हेतु विकेंद्रीकरण दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो हमारे प्रयासों में सर्वश्रेष्ठ से बेहतर होने के लिए पर्याप्त है ।नीडोनोमिस्ट प्रो. गोयल ने बताया कि शासन में सुधार हेतु सरकार की प्रभावशीलता और दक्षता बढ़ाने के लिए हमें गीता-आधारित नीडोनोमिक्स को समझना और अपनाना होगा।प्रो. गोयल ने बताया कि भारतीय शैक्षिक शासन प्रणाली में हर बीमारी के लिए वैदिक गोलियाँ हैं और गीता और अनु-गीता रामबाण हैं।प्रो.गोयल ने उचित ठहराया कि भारत में कार्य संस्कृति बनाने हेतु सप्ताह में एक बार डिजिटल उपवास सहित अवकाश संस्कृति को पवित्र दिन की संस्कृति में बदलने की आवश्यकता है ।