फूल से ये चहचहाते, पेड़ की टहनी पे जो बेजुबान पंछियों का घर से निकाला कर दिया
मां चैखट पर बहुओं की हवेली हो गई, चार बेटों के रहते मां अकेली हो गई
तेरा मत्था चुम्मण मगरों मैनूं मीठे-मीठे शक्करपारे फिक्के लगदे ने…..
गिलहरी पेड़ के कानों में आकर कुछ तो कहती है……
न्यूज़ डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। किसी की परछाई से वो लिपट कर नहीं रहता, महंगा है जो सस्तों में लिपट कर नहीं रहता वक्त आने पर सारे बंधन तोड़ देता है बरगद कभी गमले में सिमट कर नहीं रहता। हिला देता है सर अपना मचल कर झूम जाता है गिलहरी पेड़ के कानों में आकर कुछ तो कहती है। इसी तरह की रचनाओं और शायरी का लुत्फ हरियाणा कला परिषद द्वारा आयोजित बसंत उत्सव की तीसरी शाम में श्रोतओं ने उठाया। गौरतलब है कि कला परिषद द्वारा बसंत आगमन पर 11 से 18 फरवरी तक आयोजित बसंत उत्सव में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर दर्षकों का मनोरंजन किया जा रहा है। इसी कड़ी में उत्सव के तीसरे दिन भरतमुनि रंगषाला में काव्य संध्या का आयोजन किया गया। जिसमें स्थानीय कवियों ने अपने काव्य पाठ से संध्या को सफल बनाया। इस अवसर पर हरियाणा संस्कृत अकादमी के निदेषक डा. सी.डी.एस. कौषल बतौर मुख्यअतिथि पहुंचे। वहीं विषिष्ट अतिथि के रुप में वरिष्ठ पत्रकार एवं कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के पूर्व सदस्य डा. सौरभ चैधरी उपस्थित रहे। हरियाणा कला परिषद के निदेषक नागेंद्र शर्मा ने पुष्पगुच्छ के माध्यम से अतिथियों का स्वागत किया। मंच का संचालन मीडिया प्रभारी विकास शर्मा द्वारा किया गया। काव्य संध्या की अध्यक्षता कवि कुलवंत सिंह रफीक ने की। वहीं अन्य कविवृंद में डा. दिनेष दधिचि, डा. कुमार विनोद, डा. देवेंद्र बीबीपुरिया, गायत्री कौषल, डा. बलवान सिंह, सुबे सिंह सुजान तथा प्रकाष कुरुक्षेत्री शामिल रहे। काव्य संध्या का आगाज शमा रोषन कर किया गया तथा कवि सम्मेलन का कुषल संचालन गायत्री कौषल द्वारा किया गया। काव्य संध्या में कवि प्रकाष कुरुक्षेत्री ने अपनी रचना पढ़ते हुए सुनाया काम जीवन में यही तो इक निराला कर दिया, पेड़ को पानी दिया और फिर उजाला कर दिया, फूल से चहचहाते पेड़ की टहनी पे जो बेजुबान उन पंछियों का घर निकाला कर दिया। एक बच्ची थी मेरी गोद में वो सोई थी, सब सुख अनवर्त भरी बज्म कहीं खोई थी, पेट की आग का जब जिक्र हुआ शेरों में इक तबायफ भी मेरी गजल सुनकर रोई थी। सुबे सिंह सुजान ने अपने काव्य पाठ में सुनाया कि जन्म से हर कोई सवाली है, बुद्धि से कोई भी ना खाली है, उसने पगड़ी अगर उछाली है फिर तो वो आदमी मवाली है। बलवान सिंह बादल ने भी अपनी रचनाओं के माध्यम से सभी ख्ूाब गुदगुदाया। बादल की कविता किसी की परछाई से वो लिपट कर नहीं रहता, महंगा है जो सस्तों में लिपट कर नहीं रहता, वक्त आने पर सारे बंधन तोड़ देता है बरगद कभी गमले में सिमट कर नहीं रहता। गायत्री कौषल की रचनाएं भी सभी को लुभाने में कामयाब रही। बिना सबब तो किसी को यूं आजमाते नही ंना दिल मिले तो फिर हम हाथ मिलाते नहीं किसी मुआलते में है ये जाके कहदो उन्हें ऐसे गैरों के नाज हम उठाते नहीं। रुत बसंती जो छाई मजा आ गया, सारे आलम पे छाई मजा आ गया। पंजाबी कवि देवेंद्र बीबीपुरिया ने भी अपने अनोखे अंदाज में काव्य संध्या को सफल बनाने में सहयोग दिया। जुगनू शबनम चन्न सितारे फिके फिके लगदे ने, मैनू तेरे अग्गे सारे फिके फिके लगदे ने, तेरी सौं तेरा मत्था चुम्मण तो मगरो मैनूं मीठे मीठे शक्करपारे फिके फिके लगदे ने। लौट कर जाना ही था पतझड़ को वापिस एक दिन, देखिए फिर से हुई हर शाख पेड़ों की हरी, दस्तखत अमरुद पर तोते ने फिर से कर दिए जाने उसकी चोंच में कितनी स्याही है भरी जैसी शायरी से डा. कुमार विनोद ने खूब समां बांधा। डा. दिनेष दधिचि की रचना अपना दिल खोलता नहीं कोई रस यहां घोलता नहीं कोई कद को सब नापते ही रहते हैं बात को तोलता नहीं कोई बोलकर सोचते हैं सब लेकिन सोच कर बोलता नहीं कोई ने भरपूर तालियां बटौरी। अंत में कवि कुलवंत सिंह रफीक ने अपनी रचनाएं सुनाकर महफिल को खुषनूमां बना दिया। तेरा दिदार की हो गया मैं सा कतरा नदी हो गया, कि पिलाया तू आबे हयात जहर वी जिंदगी हो गया जैसी रचनाओं का श्रोताओं ने भरपूर तालियों से स्वागत किया। कार्यक्रम के अंत में मुख्यअतिथि ने सभी कवियों को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।