Friday, November 22, 2024
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सुप्रीम कोर्ट का मोदी सरकार को झटका,इलेक्ट्रोरल बांड योजना असंवैधानिक

by Newz Dex
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एनडी हिंदुस्तान संवाददाता

दिल्ली।देश की शीर्ष अदालत के एक फैसले ने मोदी सरकार को बड़ा झटका देते हुए इलेक्टोरल बांड योजना को असंवैधानिक करार दिया और इसे रद कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक कहा है। इसी के साथ इलेक्शन डोनेशन में पारदर्शिता एवं जनता के सूचना के अधिकार का हनन बताया है। इसी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सरकार को घेरने के लिए विपक्ष को बैठे बिठाए बड़ा मुद्दा मिल गया है।अगले दिनों में इसे मुद्दे को लेकर विपक्ष भरपूर रुप से भुनाने की फिराक में रहेगा। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद से आगामी चुनावों को लेकर वर्तमान केंद्र सरकार काफी मजबूत स्थिति में है। इस बात से सत्ता पक्ष जहां निश्चिंत दिख रहा था,वहीं विपक्ष में बेचैनी थी,लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विपक्ष के तेवर आक्रामक होने वाले हैं।

मोदी सरकार 2 जनवरी 2018 में यह योजना लायी थी,जिसके तहत राजनीतिक दलों को चंदा दिया जा सकता है। भारत का कोई भी नागरिक और एजेंसी-बांड को अधिकृत बैंक एसबीआई से खरीद सकता है और ये बैंक द्वारा धन जारी करने के साथ साथ बांड को खरीदने की व्यवस्था की गई। इसी के तहत 1 हजार, 10 हजार, एक लाख के अलावा 10 लाख रूपए और एक करोड़ मूल्य के बांड खरीद किए जा सकते हैं। इस योजना के अनुसार राजनीतिक दलों को चुनावी बांड जारी होने से 15 दिन के भीतर इनकैश कराना होगा। इसमें विवाद इस बात का भी रहा कि बांड के माध्यम से इलेक्शन डोनेशन देने वाले का नाम और अन्य जानकारी गोपनीय थी।

इस स्कीम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी,जहां केंद्र सरकार की ओर से सलिसिटर जनरल तुषार मेहता इस बांड योजना से राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने की बात बता रहे थे और पहले नकद चंदा और बांड योजना के आने से चंदे की गोपनीयता इलेक्शन डोनेशन करने वालों के हित में बात रख रहे थे हुए इस बात की पैरवी कर रहे थे कि चंदा देने वाले नहीं चाहते कि उनके दान देने के बारे में दूसरे राजनीतिक दलों को इसकी सूचना मि्ले,क्योंकि नाम सामने आने के बाद वे दूसरे राजनीतिक दलों की नाराजगी से बच सकते हैं। इस तर्क पर पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट कर दिया था,क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में इस सुनवाई कर रहे न्यायाधीशों का कहना था कि अगर यही बात है तो फिर सत्ताधारी दल विपक्षी राजनीतिक दलों के चंदे की जानकारी क्यों ले रहा है है ? इस लिहाज से विपक्ष क्यों नहीं ले सकता चंदे की जानकारी यह सवाल भी उठा था।

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