न्यूज डेक्स संवाददाता।
कुरुक्षेत्र,31 जुलाई। भगवान परशुराम कालेज में अमर शहीद उधम सिंह की शहीदी दिवस और सुर सम्राट मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि पर पर कॉलेज प्राचार्य डॉ. योगेश्वर जोशी ने दोनों विभूतियों के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने इनके महान कार्यों को स्मरण करते हुए कॉलेज प्रांगण में पौधारोपण किया। उन्होंनेबताया कि शहीद उधम सिंह एक महान् क्रांतिकारी थे जिन्होंने जलियांवाला बाग में हुए सैकड़ों भारतीयों की नृशंस हत्या करने वाले पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ. डायर को मार कर इस हत्याकांड का बदला लिया। उन्हें इस कार्य को अंजाम देने के लिए 21 वर्षों का इंतजार करना पड़ा। 26 दिसंबर, 1939 को लंदन में हुए एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने जनरल डायर को गोली मारकर वर्षों पुरानी अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। इस हत्या के लिए उन्हें दोषी करार देते हुए 31 जुलाई 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार जब उन्हें फांसी की सजा दी गई तब उनके चेहरे पर डर की परछाई तक नहीं थी, बल्कि वे अपनी प्रतिज्ञा पूरी होने के कारण बेहद प्रसन्न थे। इन्ही महान् क्रांतिकारियों के कारण आज हम आजाद भारत में स्वतंत्रतापूर्वक सांस ले रहे हैं। भारत के 135 करोड लोग ऐसे क्रांतिकारियों के सदैव ऋणी रहेंगे। दूसरी ओर, आज भारत के प्रसिद्ध पार्श्व गायक मोहम्मद रफी साहब जी की पुण्यतिथि है। रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर 1924 को अमृतसर के समीप कोटला सुल्तान सिंह नामक गांव में हुआ। बचपन में उनका मन पढ़ाई की बजाय संगीत में अधिक लगता था। बचपन से ही उनकी आवाज में वह जादू था कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता था। कुछ समय बाद उनका परिवार लाहौर चला गया, लेकिन भारत विभाजन से पूर्व उन्होंने मुंबई का रुख कर लिया और धीरे-धीरे उनकी आवाज देश के कोने-कोने में गूंजने लगी। विभाजन के बाद उन्होंने धर्मनिरपेक्ष भारत में ही रहने का निश्चय किया। जब 1948 में गांधीजी की हत्या हुई तब उन्होंने गांधीजी की याद में रचित गीत ‘सुनो सुनो ए दुनिया वालो बापू की ये अमर कहानी’ से सारे भारत के जनमानस के हृदय को झकझोर दिया। रफी साहब को भारतीय फिल्म जगत का एकमात्र ऐसा पार्श्वगायक माना जाता है जिन्होंने अपने समय के सभी प्रसिद्ध अभिनेताओं को अपनी
आवाज देकर शिखर तक पहुंचाया। चाहे वह शास्त्रीय संगीत हो, देश भक्ति गीत हो, ग़ज़ल, कव्वाली या फिर रोमांटिक गीत हो, उनके गाये ऐसे हजारों गीत आज भी हमारा मनोरंजन करते हैं। उनके महान् कार्यों के लिए उन्हें पद्दमश्री दिया गया। 31 जुलाई 1980 को हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया। ये दोनों महान् विभूतियां धर्मनिरपेक्ष भारत के क्षितिज पर चमकते हुए सितारों के समान है। इस अवसर पर भगवान परशुराम कॉलेज के प्राध्यापक डॉ. सौरभ, डॉ. दिलबाग सिंह, प्रोफेसर नितेश, डॉ. प्रशांत शर्मा, गोविंदा, राजू आदि उपस्थित रहे।