Friday, November 22, 2024
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गजल गायकी से रोली बरुआ ने जमाया रंग

by Newz Dex
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हम तो हैं परदेश में देश में निकला होगा चांद……

कलाकार ही अपने प्रदेश की संस्कृति को जिंदा रखते है- संजय भसीन

-गज़ल संध्या से सजी कला परिषद की शाम, रोली बरुआ की गायकी ने बांधा समां

संदीप गौतम/न्यूज डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र,19 दिसंबर। संगीत मानव के लिए प्राण है। जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति के जीवन में संगीत का विशेष महत्व रहता है। ऐसे में ग़ज़ल गायकी से जब शाम में रंग भरे जाएं तो वास्तव में संगीत के महत्व का बोध हो जाता है। ऐसा ही कुछ देखने को मिला हरियाणा कला परिषद की साप्ताहिक आनलाईन संध्या में, जिसमें प्रसिद्ध ग़ज़ल गायिका रोली बरुआ ने ग़ज़लों को गुनगुनाया। गौरतलब है कि हरियाणा कला परिषद प्रत्येक सप्ताह अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रमों के द्वारा कला और संस्कृति के विस्तार में सहयोग दे रहा है। कोरोना महामारी के कारण आनलाईन आयोजित किए जा रहे कार्यक्रमों में कलाकारों को मंच मिलने के साथ-साथ लोगों को मनोरंजन का डोज भी मिल रहा है।

कला परिषद के निदेशक संजय भसीन का कहना है कि कलाकारों को मंच देने के लिए हरियाणा कला परिषद निरंतर प्रयासरत है। कलाकार ही अपने प्रदेश की संस्कृति को जिंदा रखते हैं, लेकिन कलाकारों को जिंदा रखने का दायित्व कला परिषद का है, जिसे निभाने के लिए हरियाणा कला परिषद निरंतर कलासाधकों के हित के लिए कार्य कर रही है। इसी दायित्व की पूर्ति के लिए ग़ज़ल संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें सूत्रधार हरियाणा कला परिषद के मीडिया प्रभारी विकास शर्मा रहे। कार्यक्रम में रोली बरुआ ने अपनी गायकी से ऐसा समां बांधा कि सभी ग़ज़लों के संमंदर में डूबते चले गए। आज की शाम महक रही है चंदन की तरह, हो गया मन ये गुलाबी खिले सुमन की तरह, जा रे पिया परदेश रे, तुम अपना रंजोगम अपनी परेशानी मुझे दे दो, तुम्हे गम की कसम इस दिल की रवानी मुझे दे दो आदि ग़ज़लों के माध्यम से रोली ने अपनी गायकी का जादू बिखेरा।

सुर और शब्दों के दरिया में गजल के चाहने वालों ने जमकर डुबकी लगाई और एक के बाद एक ग़ज़ल का सुरूर चढ़ता गया। ग़ज़लों में दोस्ती से शुरू हुई बात जब मोहब्बत तक पहुंची तो महफिल को चार चांद लग गए। हुस्न को चांद जवानी को कंवल कहते हैं, उनकी मूरत नजर आए तो ग़ज़ल कहते हैं, उफ ये उम्रभर तराशा हुआ संगेमरमर सा बदन, देखने वाले इसे ताजमहल कहते हैं और हम तो हैं परदेश में देश में निकला होगा चांद, क्या सह गई किसी की नजर कुछ पूछिए जैसी ग़ज़लों ने रोमांच पैदा किया। रोली बरुआ की गायकी ने न केवल हरियाणा कला परिषद की साप्ताहिक संध्या को रोशन किया, बल्कि चुनिंदा ग़ज़लों ने खूब माहौल बनाया। अंत में मीडिया प्रभारी विकास शर्मा ने सभी का धन्यवाद किया।  

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