इस विधि की उपयोगिता से 2070 तक ऊर्जा के क्षेत्र में डिमांड पूरी होने के साथ कार्बन उत्सर्जन के समाधान में मिलेगी मदद
2070 और इससे आगे के ग्रामीण भारत के लिए ऊर्जा दक्षता एवं हरित हाइड्रोजन विषय उत्कल यूनिवर्सिटी भुवनेश्वर में आयोजित की गई कार्यशाला
कार्यशाला में कार्वन उत्सर्जन दुनिया के लिए खतरा, इसके समाधान और चुनौतियों पर विशेषज्ञों ने किया मंथन
ब्रुनल यूनिवर्सिटी यूके के प्रयासों से ओडिशा में आयोजित की गई कार्यशाला
वर्तमान में प्रति व्यक्ति एनर्जी डिमांड चाहे कम,लेकिन 2070 तक करीब 7600 गीगा वाट होगी डिमांड
पूरे देश के लिए ओडिशा है बिजली का उत्पादन का अहम केंद्र, भारत की औसत से तीन गुणा कार्बन उत्सर्जन इसी प्रदेश में
अगले 10 वर्ष में अन्य राज्यों में बिजली सप्लाई को लेकर ओडिशा के साथ हो चुके हैं एमओयू
तब इन हालात में वर्तमान के मुकाबले ओडिशा में कार्बन उत्सर्जन के हालात होंगे और गंभीर
राजेश शांडिल्य/ एनडी हिंदुस्तान
भुवनेश्वर।भविष्य में विकास का पहिया कितनी गति से रफ्तार पकड़ेगा,इसे तय करेगी किसी भी देश की जीरो कार्बन ऊर्जा और ऐसी ऊर्जा बनाने में ब्रह्मस्त्र बनेगी फोटोकेटालिसिस विधि। वर्तमान में जिन साधनों से ऊर्जा प्राप्त की जा रही है,उसमें सबसे बड़ी चिंता इसकी प्राप्ति के साथ कार्बन का उत्सर्जन है,जोकि पर्यावरण और मानवीय जीवन के लिए गंभीर विषय है। भविष्य में ऊर्जा की बढ़ती डिमांड और इसकी प्राप्ति जीरो कार्बन हो, इन विषय पर दुनियाभर के वैज्ञानिक चिंतित हैं और इसका समाधान निकालने के लिए मंथन चल रहा है। माना जा रहा है कि इस गंभीर चिंता से निजात दिलाने में फोटोकेटालिसिस विधि ब्रह्मस्त्र बन सकती है। इस विषय को लेकर ओडिशा की उत्कल यूनिवर्सिटी भुवनेश्वर में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में देश-विदेश के वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और अपने विचार रखते हुए योजनाओं के साथ भविष्य के रोड मैप को रखा। यहां सोलर हाइड्रोजन की पैदावार से ग्रामीण भारत में ऊर्जा की उपलब्धता विषय पर भारतीय मूल के वैज्ञानिक एवं ब्रूनल यूनिवर्सिटी यूके के प्रोफेसर डा.हरजीत सिंह ने भी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि वे सारी विधियां, जिनसे हाइड्रोजन बन सकती है,उनमें सबसे नई फोटोकेटालिसिस है।
प्रख्यात वैज्ञानिक डा.हरजीत सिंह के अनुसार फोटोकेटालिसिस सबसे सक्षम विधि है,क्योंकि इससे भरपूर मात्रा हाइड्रोजन बनाई जा सकती है,वह भी बिना किसी दुर्लभ खनिज को प्रयोग किए। उन्होंने कहा कि ऊर्जा के विकेंद्रीकरण के लिए भारत जैसे बड़े देशों में यह विधि बहुत उपयुक्त साबित होगी। इस क्षेत्र में पूरी दुनिया में विशेषतौर पर यूके,अमेरिका और जर्मनी में बहुत अनुसंधान एवं नवाचार पर काम चल रहा है।
एफसीडीओ यूनाइेड किंगडम के प्रयासों से आयोजित इस कार्यशाला में ब्रूनल यूनिवर्सिटी यूके के प्रोफेसर डा.हरजीत सिंह, क्वींस यूनिवर्सिटी बेलफास्ट से डा.नेथन स्किलन, एनआईटी त्रीचि के प्रोफेसर सुरेश सीवान, आर्केटिक यूनिरेबल भारत के डा.अंशुल पनेरी, हिल्ड इलेक्ट्रिक इंडिया के डा. विवेकानाथन,नीति आयोग भारत सरकार के सदस्य जगदानंद, जीवन रेखा परिषद के मनोरंजन मिश्रा एवं मधु स्मिता मिश्रा, इरमा आनंद की देवा स्मिता बेज एवं कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के उपेंद्र सिंघल,मदन मोहन छाबड़ा,राजेश शांडिल्य, बाबा बंदा सिंह बहादुर इंजीनियरिंग कालेज के महक दीप पन्नु ,उत्कल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार एवं अन्य अधिकारी मौजूद रहे।
कार्बन उत्सर्जन दुनिया के लिए खतरा और इसके निपटने के लिए चुनौतियां प्रति व्यक्ति भारत में एनर्जी डिमांड चाहे कम है,परंतु कुल मात्रा एनर्जी डिमांड की 2070 तक लगभग 7600 गीगा वाट होगी। ओडिशा में जहां बिजली का उत्पादन पूरे देश के लिए हो रहा है, प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन भारत की औसत से तीन गुणा है। आने वाले दस वर्षों में ओडिशा में अन्य राज्यों में बिजली सप्लाई को लेकर कई एमओयू हो चुके हैं औऱ अगले दस वर्षों में इन प्रोजेक्ट पर काम पूरा होना है। तब इन हालात में वर्तमान के मुकाबले कार्बन उत्सर्जन के मामले में और गंभीर हालात ओडिशा में होंगे। इन तमाम तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए भुवनेश्वर की उत्कल यूनिवर्सिटी में विशेषज्ञों ने इस गंभीर समस्या पर फोकस करते हुए इससे निपटने और भविष्य योजनाओं और तैयारियों पर रिपोर्ट प्रस्तुत की। वहीं भविष्य में बिजली उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए अक्षय ऊर्जा के विभिन्न माध्यमों की जरूरत पर जोर दिया,जिसमें प्रमुखता सोलर और हाईड्रोजन पर चिंतन किया।
वर्तमान ग्रिड सिस्टम,इसे सुचारु बनावे,संरक्षण और नवीनीकरण के लिए चाहिए बड़ा बजट
इस अवसर पर विषय विशेषज्ञों ने जोर दिया कि इस विषय पर केंद्रीयकरण ना करके लोकल स्तर पर ग्राम पंचायत और निकाय स्तर पर बिजली उत्पादन और वितरण का काम होना चाहिए।उन्होंने कहा कि वर्तमान ग्रिड सिस्टम को सुचारु बनाए रखने,संरक्षण और नवीनीकरण के लिए 2040 तक बहुत बड़े बजट की आवश्यकता होगी। सोलर फोटोकैटालिटिक तकनीक भारत के लिए बहुत उपयुक्त है,क्योंकि यह ना केवल हाइड्रोजन बनाएगी,बल्कि गंदे पानी को उपयोग करके उससे साफ पानी भी बनाएगी। इससे ऊर्जा और पानी दोनों की समस्या का उचित समाधान हो सकेगा। इस विधि से कार्बन उत्सर्जन शून्य होगा,जोकि जरुरी है भारत को अपने 2070 के वायदे को पूरा करने के लिए।
क्या है 2070 का वायदा ?
भारत की अर्थ व्यवस्था 2070 तक जीरो कार्बन होगी।इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयास जारी हैं।
आदीवासी क्षेत्र का किया विशेषज्ञों की टीम ने दौरा
ब्रूनल यूनिवर्सिटी लंदन के द्वारा प्रायोजित ओडिशा के नयागढ़ जिला के दशपल्ला ब्लाक के आदीवासी गांव उडासरा और जानीसाही में सोलर एनर्जी से संचालित दो कोल्ड स्टोरेज का अवलोकन किया। उल्लेखनीय है कि कृषि के क्षेत्र में कार्य कर रही ग्रामीण महिला किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ब्रूनल यूनिवर्सिटी लंदन द्वारा सोलर एजर्जी से संचालित दो कोल्ड स्टोरेज स्थापित किये,ताकि इन जगहों पर किसानों की फसल को अधिक समय तक स्टोर कर मार्केट तक पहुंचाया जा सके और फसल का अधिक दाम मिल सके। टीम से भेंट के दौरान महिला किसानों से इस बात की पुष्टि भी की है कि सोलर एनर्जी संचालित कोल्ड स्टोर लगने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति में कई गुणा सुधार हुआ है और जो फसल 70 प्रतिशत से ज्यादा नष्ट हो जाती थी,वह अब शतप्रतिशत सुरक्षित है। महिला किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ब्रूनल यूनिवर्सिटी के प्रयासों की ग्रामीणों ने सराहना की।