नैतिक शिक्षण आज की आवश्यकताः प्रो. कैलाश चन्द्र शर्मा
भारतीय ज्ञान से बहुत कुछ सीखने की जरूरतः आशीष पांडे
अच्छे नेतृत्व और प्रेरणा के लिए ज्ञान को फिर से जोड़ने की जरूरतः डॉ. अंबिका जुत्शी
कुवि में चल रही 5वीं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन वाणिज्य विभाग द्वारा तकनीकी सत्र आयोजित
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र, 22 दिसंबर। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के चल रही 5वीं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन वाणिज्य विभाग में रिविजटिंग भगवद्गीता इन टाईम्स ऑफ कोविड-19 पेनडेमिकः लैसन्स फॉर लीडरशिप, बिजनेस एंड सोसाईटी विषय पर पर विशेष तकनीकी सत्र आयोजित किया। पहले सत्र में, अटलांटा से आईटी उद्यमी और संस्कृत विद्वान विश्रुत आर्य ने कहा कि हमें संकट के समय धर्म का पालन करना चाहिए। भगवद्गीता हमें यह समझने में मदद करती है कि धर्म क्या है, अच्छा और बुरा क्या है, और जीवन में धार्मिक कार्य करने का फैसला क्या लेना है।
डेकिन यूनिवर्सिटी मेलबर्न की डॉ. अंबिका जुत्शी ने कहा कि अच्छे नेतृत्व और प्रेरणा के लिए ज्ञान को फिर से जोड़ने की जरूरत है। सफलता पाने के लिए, जल्दी से बदलने की जरूरत है। टीसीएस के पूर्व सीईओ और हिंदू यूनिवर्सिटी ऑफ अमेरिका के अध्यक्ष प्रो. कल्याण विश्वनाथन ने कहा कि गीता अच्छे जीवन के साथ-साथ बुरे समय में भी जीवन का महान साथी है। यह केवल हिंदुओं के लिए एक पुस्तक नहीं है, बल्कि सभी लोगों को इसकी शिक्षाओं से लाभ उठाना चाहिए। भारत का अतीत गौरवशाली था और वर्तमान पीढ़ी को अपने दैनिक जीवन में गीता के मूल्यों को आत्मसात करना चाहिए।
बैंगलोर के प्रो. बी. महादेवन ने कहा कि हम यदि कोई कार्य करतें है तो उस कार्य के परिणाम पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। इसलिए हमें हमेशा कार्य करना चाहिए परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए । नेतृत्व हमेशा सामने से करना चाहिए और महामारी और संकट के समय अनुकूलनशीलता की आवश्यकता है। लामर विश्वविद्यालय, हास्टन (यूएसए) के विवेक शंकर नटराजन ने कहा कि गीता सभी समस्याओं का समाधान प्रदान करती है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि जीवन में किसी भी तरह की स्थिति का सामना करने के लिए व्यक्ति को हर समय तैयार रहना चाहिए।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, प्रो. कैलाश चंद्र शर्मा ने कहा कि युवाओं को गीता से सबक सीखने की जरूरत है और उन्हें कम बातचीत करनी चाहिए और अधिक काम करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि नैतिक शिक्षण आज की आवश्यकता है और शैक्षिक संस्थानों में पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए।
एक विशेष सत्र में आईआईटी मुंबई के डॉ. आशीष पांडे ने कहा कि व्यवस्थित शोध करने के लिए भारतीय ज्ञान से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। उन्होंने कई उदाहरण दिए जिसमें अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार कैसे किया जा सकता है और शोध की समस्याओं को हल करने के लिए तर्क और तर्क की गुणवत्ता का उपयोग कैसे किया जा सकता है।
इस तकनीकी सत्र में भारत, इंडोनेशिया, मलावी, यूएई, ऑस्ट्रेलिया, आदि के 100 से अधिक शोधकर्ताओं ने नेतृत्व, व्यवसाय और समाज आदि विषयों पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। इन समानांतर सत्रों की अध्यक्षता पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के प्रो. गुरचरण सिंह और प्रो. मंजीत सिंह ने की। श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय पलवल के प्रो. ऋषिपाल और प्रो. ज्योति राणा और बीपीएस खानपुर कलां की प्रो. इप्शिता बंसल ने भी सत्र की अध्यक्षता की। एचपी विश्वविद्यालय शिमला के प्रो. राजकुमार ने सत्र का समापन भाषण दिया। हरियाणा के केंद्रीय विश्वविद्यालय के डॉ. दिनेश चहल ने भी अंत में अपने विचार प्रकट किए।