न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र,23 दिसंबर। कॉस्मिक एस्ट्रो के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र ) के अध्यक्ष डॉ.सुरेश मिश्रा ने बताया कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते है। इस दिन श्रद्धालु व्रत के साथ भगवान दामोदर की पूजा करते है। इस बार यह एकादशी अश्वनी नक्षत्र ,चंद्रमा मेष राशि ,सूर्य धनु राशि में शिव योग व क्रिसमस दिवस के साथ 25 दिसम्बर 2020 शुक्रवार को समस्त विश्व में धूमधाम से मनाई जायेगी। इसी दिन गीता जयन्ती भी मनाई जाती है और भगवान श्री कृष्ण की पूजा स्तुति करके श्रीमद्भगवद् गीता का पाठ एवं अध्ययन करना चाहिए I
धर्म ग्रंथों के अनुसार महत्व : महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन मोहग्रस्त हो गया था तब भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश देकर अर्जुन के मोह का निवारण किया था। उस दिन मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी तभी से इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार महत्व : मोक्षदा एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा ,यथा शक्ति दानादि करने से कायिक वाचिक और मानसिक पापों की निवृति होने से पुण्यों की प्राप्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्षदा एकादशी पर श्रीकृष्ण द्वारा कहे गए गीता के उपदेश से जिस प्रकार अर्जुन का मोह भंग हुआ था, वैसे ही इस एकादशी के प्रभाव से श्रद्धालु भक्त को काम ,क्रोध लोभ, मोह, ईर्ष्या ,द्वेष,अहँकार और समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है।
पद्म पुराण के अनुसार में ऐसा बताया गया है कि मोक्षदा एकादशी के व्रत के प्रभाव से जाने-अनजाने में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते है, मनुष्य ध्यान द्वारा अपने सत्य स्वरूप को जानकर परमेश्वर की सत्य भक्ति करने से पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है और पितरों को सद्गति मिलती है। माना जाता है कि इस व्रत की केवल कथा सुनने से ही हजारों यज्ञ का फल मिलता है।
पद्मपुराणमें भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर से कहते है-इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप आदि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी बडे-बडे पातकों का नाश करने वाली है। इस दिन उपवास रखकर श्रीहरि के नाम का संकीर्तन,भक्तिगीत,नृत्य करते हुए रात्रि में जागरण करें।
मोक्षदा एकादशी व्रत मुहूर्त-
एकादशी तिथि प्रारंभ- 24 दिसंबर की रात 11 बजकर 18 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 25 दिसंबर को देर रात 1 बजकर 55 मिनट तक
मोक्षदा एकादशी की कथा : पूर्वकाल में वैखानस नामक राजा ने पर्वत मुनि के द्वारा बताए जाने पर अपने पितरों की मुक्ति के उद्देश्य से इस एकादशी का सविधि व्रत किया था। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से राजा वैखानस के पितरोंका नरक से उद्धार हो गया। जो इस कल्याणमयी मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते है। प्राणियों को भवबंधन से मुक्ति देने वाली यह एकादशी चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा पढने-सुनने से वाजपेय यज्ञ का पुण्य फल मिलता है। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन ही कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद् गीता का उपदेश दिया था। अत: यह तिथि गीता जयंती के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन थोड़ी देर गीता अवश्य पढें। गीता रूपी सूर्य के प्रकाश से अज्ञान रूपी अंधकार नष्ट हो जाएगा।
भगवान् से यही प्रार्थना करें कि हम धर्म पथ पर चलते हुए जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त करें और माानव जीवन को सफल करें।