‘विश्वव्यापिनी हिन्दू संस्कृति’ विषय पर व्याख्यान आयोजित
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र, 26 दिसंबर। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा ‘‘विश्वव्यापिनी हिन्दू संस्कृति’’ विषय पर व्याख्यान के प्रथम भाग का आयोजन किया गया। व्याख्यान में दिशा कंसल्टेंट्स एवं भारती वेब (प्रा.) लिमिटेड के निदेशक प्रशांत पोल मुख्य वक्ता रहे। संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने अतिथि परिचय कराते हुए बताया कि हिन्दू संस्कृति में प्राचीन काल से ही गहरी आस्था रही है। हिन्दू संस्कृति की प्राचीनता, उसका स्थायित्व, सहिष्णुता, उसकी विशेषताएं, लचीलापन, कर्म तथा पुनर्जन्म का सिद्धान्त, संयुक्त परिवार, अनेकता में एकता ऐसी अनेक विशेष बातें जिनके कारण से सर्वाधिक प्राचीन हिन्दू संस्कृति की झलक विश्व के अनेक देशों में प्राप्त होती है।
उन्होंने बताया कि मुख्य वक्ता प्रशांत पोल 35 से अध्कि देशों में प्रवास कर चुके हैं। वे मेल्ट्रोन (महाराष्ट्र इलैक्ट्रोनिक्स डिवेल्पमेंट कार्पोरेशन) में संशोधन विभाग प्रमुख हैं। उन्होंने अनेक उत्पाद विकसित किए जिनमें बालासोर के मिसाइल्स फायरिंग इंटरिम टेस्ट रेंज के लिए विशेष उपकरण विकसित किया। वे अनेक मल्टीनेशनल टेलीकॉम और आई.टी. कम्पनियों के सलाहकार रहे। प्रशांत पोल केन्द्रीय सड़क परिवहन और जहाजरानी मंत्रालय में आई.टी. टास्क फोर्स सदस्य हैं। उन्होंने लोकमत, तरुण भारत, विवेक, एकता, पांचजन्य, आर्गेनाइजर आदि पत्रिकाओं में स्तंभ लेखन भी किया है। उनकी दो पुस्तकें ‘‘वे पन्द्रह दिन’’ और ‘‘भारतीय ज्ञान का खजाना’’ चर्चित रही हैं। उन्होंने बताया कि आज के व्याख्यान का दूसरा भाग 2 जनवरी 2021 को सायं 4 बजे आयोजित किया जाएगा।
मुख्य वक्ता प्रशांत पोल ने कहा कि हिन्दू संस्कृति पूरे विश्व का सिरमौर है। विश्व के अनेक देशों में हिन्दू संस्कृति इतनी समृद्ध थी कि आज भी वहां हिन्दू मंदिर और हिन्दू परम्पराएं मिलती हैं। उन्होंने प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. अंगद मेडीसिन द्वारा लिखित पुस्तकों का संदर्भ देते हुए कहा कि 10वीं शताब्दी से पूर्व भारत का पूरे विश्व के व्यापार में बोलबाला था। 11वीं शताब्दी के प्रारंभ में पूरे विश्व के व्यापार का लगभग 32.6 प्रतिशत हिस्सा भारत के पास था। जब पूरे विश्व में भारतीय लोग व्यापार करते थे तो स्वाभाविक है कि भारतीयों के पद्चिह्न सारे विश्व में रहे। ऐसे बहुत से प्रमाण मिल चुके हैं। भारत के पूर्व में भारतीयों के पद्चिह्न किस प्रकार पड़े, इसका उन्होंने विस्तारपूर्वक वर्णन किया।
उन्होंने कम्बोडिया देश का उदाहरण देते हुए बताया कि कम्बोडिया के राष्ट्रध्वज में हिन्दू मंदिर है। इसके अलावा विश्व का सबसे बड़ा प्रार्थना स्थल जोकि हिन्दू मंदिर है, वह भी कम्बोडिया में ही है। ऐसे अनेक देशों में शिलालेखों से मिले प्रमाण हैं कि हमारे पद्चिह्न कितने मजबूत थे। ऐसे अनेक पद्चिह्न सारे दक्षिण पूर्व में मिलते हैं। उन्होंने बताया कि कम्बोडिया संपूर्णतः हिन्दू राष्ट्र था। यहां वेदों के सूक्त गाए जाते थे। यहां पर राजभाषा ही नहीं वरन् लोकभाषा भी संस्कृत थी। हिन्दुत्व की समृद्धि का इस बात से भी पता चलता है कि आज भी अनेक देशों में हिन्दू कैलेंडर चलता है।
उन्होंने यवद्वीप का उदाहरण देते हुए बताया कि यवद्वीप में हिन्दू परम्परा बहुत प्राचीन है। जावा को शक्तिशाली साम्राज्य आजीशक नामक हिन्दू राजा ने बनाया। सुमात्रा में त्रिविषय नाम का सशक्त, शक्तिशाली साम्राज्य अनेकों वर्षों तक रहा। ये द्वीप केवल समृद्ध नहीं थे बल्कि समता, समरसता से भी भरपूर थे। इन सारे साम्राज्यों में हिन्दू राजाओं की संस्तुति की अपनी ताकत थी, जिसके आधार पर वहां की सारी प्रजा हिन्दू बन गई और हिन्दुत्व को अपने आप में समेट लिया व हिन्दुत्व को मानने लगे। थाइलैंड में भगवान राम को मानते हैं और वहां हिन्दू संस्कृति के सारे संदर्भ में मिलते हैं। इंडोनेशिया में आज भी रामलीला होती है।
आज भी सिंगापुर में पुराने हिन्दू मंदिर और प्रतीक बहुतायत में मिलते हैं। भारत और चीन के सम्बन्धों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि चीन में अनेक जगहों पर हिन्दू मंदिर मिलते हैं। मंगोलिया हिन्दू संस्कृति को मानता है। वहां आज भी भारतीय मंदिर बहुत मिलते हैं। मंगोलिया में राष्ट्र ध्वज को स्वयंभू कहा जाता है। इसके अतिरिक्त इंडोनेशिया भ्रूनई, लाओस, वियतनाम, मलेशिया आदि देशों में भी हिन्दू संस्कृति और हिन्दू मंदिर बहुत मिलते हैं। ये सभी देश प्राचीन समय में हिन्दू राष्ट्र ही थे। वहां वेद की ऋचाएं गाई जाती थीं। मंगल सूक्त मंदिरों से बोले जाते थे।
उन्होंने कहा कि ऐसी महान हिन्दू संस्कृति के बारे में सभी भारतीयों को गर्व करना चाहिए और आज के संदर्भ में यह भी अत्यंत आवश्यक है कि हिन्दू संस्कृति का ज्ञान विद्यार्थियों और भावी पीढ़ी को भी होना अत्यंत आवश्यक है। संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने वक्ता एवं देशभर से जुड़े सभी श्रोताओं का धन्यवाद किया और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना के साथ व्याख्यान का समापन हुआ।