न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र, 27 दिसंबर। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के भारत रत्न गुलजारी लाल नन्दा केन्द्र के दर्शनशास्त्र और नीतिशास्त्र विभाग और आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के बौद्धिक शाखा रेनासा युनिवर्सल के संयुक्त तत्वाधान में आनन्द मार्ग के प्रवर्तक श्री श्री आनन्दमूर्तिजी उर्फ श्री प्रभात रंजन सरकार के दर्शन, विज्ञान, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और साहित्य विषयों पर दो दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन 27-28 दिसम्बर को किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नेशनल फिलॉस्फी कांग्रेस के चेयरमेन और दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एस आर भट्ट थे और उन्होंने वेबिनार का उदघाटन भी किया । भारत रत्न गुलजारी लाल नन्दा केन्द्र के दर्शनशास्त्र और नीतिशास्त्र विभाग के निदेशक डॉ. सुरेन्द्र मोहन मिश्रा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और श्री श्री आनन्दमूर्तिजी के अवदानों के बारे में जानकारी सांझा की । कार्यक्रम की शुरुआत श्री प्रभात रंजन सरकार द्वारा रचित प्रभात संगीत से हुआ। प्रभात संगीत का गायन बंगलौर विश्वविद्यालय के संगीत विभाग के रिसर्च स्कोलर उमा कुमार ने किया। अपने उदघाटन भाषण में मुख्य अतिथि प्रो. एस. आर. भटृट ने कहा कि श्री श्री आनन्दमूर्तिजी का दर्शन अध्यात्म और विज्ञान पर आधारित है।
उन्होंने कहा कि श्री श्री आनन्दमूर्ति के आनन्दसूत्रम पुस्तक का अध्ययन करने पर मुझे ऐसा लगा कि जगत की सृष्टि मे अध्यात्म के साथ विज्ञान का महत्वपूर्ण भूमिका है । प्रो. भट्ट ने कहा कि सृष्टि की जो उत्पत्ति हुई है वह संचर यानि सूक्ष्म से स्थूल की ओर और प्रतिसंचर यानि स्थूल से सूक्ष्म धारा में हुई है। इस प्रक्रिया में ही भूमा मन-ईश्वरीय मन और अणु मन- जीवों के मन की सृष्टि हुई है।
मुख्य वक्ता के रुप में अमेरिका के डॉ. स्टेवन लांडो ने कहा कि मैटर से मन का निर्माण हुआ है। और श्री श्री आनन्दमूर्तिजी के अनुसार मैटर कॉसमिक चित से बना है और कॉसमिक चित भूमा चैतन्य का रुपान्तरित रुप है। जबकि जड़ विज्ञान का कहना है कि मैटर इनर्जी का रुपान्तरित रुप है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुनन्दिता भौमिक, कूचविहार पंचानन वर्मा विश्वविद्यालय की सहायक अध्यापिका डॉ. सुनन्दिता भौमिक ने की। जे.एन.यू के वैज्ञानिक और बायोटेक्नोलॉजी विभाग के भूतपूर्व डीन प्रो. उत्तम पति ने श्री श्री आनन्दमूर्तिजी के दर्शन माइक्रोवाइटा पर विस्तृत जानकारी दी। माइक्रोवाइटम् मानसिक तथा भैतिक दोनों स्तर का ही है। भौतिक स्तर में इलेक्टॉन से भी सूक्ष्मतर और मानसिक स्तर में इक्टोप्लाज्म अर्थात चित्ताणु से भी सूक्ष्मतर जिसे माइक्रोवाईटम या अणु जीवत् कहा जाता है। वैसे इसका अधिष्ठान सजीव और निर्जीव के बीच मे हैं । अन्यथा यह न तो सजीव और न ही निर्जीव है।
उन्होंने कहा कि श्री श्री आनन्दमूर्तिजी के अनुसार पोजिटिव माइक्रोवाइटम वह प्रत्येक की सर्वात्मक प्रगति या विकास में सहायक होगा। आध्यात्मिक प्रगति साधित है सहस्त्रार चक्र के माध्यम से। किसी ब्यक्ति के उपर पोजिटिव माइक्रोवाइटम प्रयोग करने के लिए सद्गुरु को बहुत परिश्रम करना पड़ता है। पोजिटिव माइक्रोवाइटम की सृष्टि में आध्यात्मिक साधना, सत्संग, आसन, प्राणायाम, भक्ति संगीत, ब्यापक शौच आदि काफी मदद करते हैं। सामान्यतः आध्यात्मिक साधना करने से मन ईश्वरमुखी होता है तथा मन नकारात्मक चिन्तन से दूर भागता है।
इस अवसर पर रेनासा युनिवर्सल के केन्द्रीय सचिव आचार्य दिव्यचेतनानन्द अवधूत, और दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बालागणपति, सिद्धो कान्हो विश्वविद्यालय, पुरुलिया के दर्शन विभाग के प्रो. राज कुमार मोदक, जे.एन.यू के स्कूल ऑफ संस्कृत एण्ड इण्डिक स्टडीज के वरिष्ठ प्रो. राम नाथ झा, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की संस्कृत विभाग की प्रो. विभा अग्रवाल, आई. आई. टी. गुवाहाटी के रसायनशास्त्र विभाग के प्रो. सुभेन्दु बाग और नॉर्थ बंगाल विश्वविद्यालय, सिल्लीगुड़ी के दर्शन विभाग के एसोसिटेट प्रो. और विभागाध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकान्त पाधी ने श्री श्री आनन्दमूर्तिजी के दर्शन और विज्ञान पर गंभीरतापूर्वक चर्चा की।