मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा दसवें अंतराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आधुनिक भौतिकवादी जीवन में योग के महत्व पर योग संवाद कार्यक्रम संपन्न
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र।मनुष्य प्रकृति या परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है और मनुष्य के पिण्ड व ब्रह्माण्ड में बीज रूप में जो सम्पूर्ण ज्ञान, संवेदना, सामर्थ्य, पुरुषार्थ,सुख, शान्ति व आनन्द सन्निहित है, उसका पूर्ण प्रकरीकरण व जागरण केवल योगविद्या एवं योगाभ्यास से ही संभव है। आज विश्व समुदाय के सम्मुख उपस्थित हिंसा, अपराध, आतंकवाद, युद्ध, नशा, भ्रष्ट आचरण व भ्रष्टाचार, विचारधाराओं का चरम संघर्ष,अन्याय, अमानवीय असमानता, स्वार्थपरता, अहंकार एवं अकर्मण्यता जैसी विकराल एवं ज्वलंत समस्याओं का एकमात्र समाधान योग है। यह विचार दसवें अंतराष्ट्रीय योग दिवस मे मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित आधुनिक भौतिकवादी जीवन में योग के महत्व पर आयोजित योग संवाद कार्यक्रम योग मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्जवलन से हुआ। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने सामूहिक योगाभ्यास किया। विद्यार्थियों ने विभिन्न आसन एवं यौगिक क्रियाओ का अद्भुत प्रदर्शन किया।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा पूरे जीवन को एक शब्द में कहें या परिभाषित करें तो वह है – अभ्यास। जैसे हमारे सोचने, विचारने, खाने-पीने, कमाने, बोलने व जीने के अभ्यास होते हैं, वैसा ही हमारा जीवन हो जाता है। एक योग के प्रतिदिन के अभ्यास से हमारे जीवन के सभी अभ्यास श्रेष्ठ, परिष्कृत व दिव्य हो जाते हैं। अतः नियमित योगाभ्यास ही एक स्वस्थ, समृद्ध, सफल व सुखी आदर्श जीवन का आधार है। जीवन को दो शब्दों में कहें तो यह है – दृष्टि व आचरण। योगी की दृष्टि भी बहुत ऊँची, शुद्ध, सात्विक व श्रेष्ठ होती है तथा योगी का आचरण भी शुद्ध, सात्विक, पवित्र व श्रेष्ठ होता है। दृष्टि व आचरण की शुद्धता, श्रेष्ठता, पवित्रता व दिव्यता ही जीवन का अन्तिम लक्ष्य है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा जब शरीर शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है, तो मन स्पष्ट, केंद्रित होता है और तनाव नियंत्रण में रहता है। आध्यात्मिक कल्याण, आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर की प्राप्ति योग और ध्यान के स्तंभ हैं। भारतीय धर्म और दर्शन में योग का अत्यधिक महत्त्व है। आध्यात्मिक उन्नति या शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिये योग की आवश्यकता एवं महत्त्व को प्राय: सभी दर्शनों एवं भारतीय धार्मिक संप्रदायों द्वारा एकमत से स्वीकार किया गया है। योग भारतीय ज्ञान की हजारों वर्ष पुरानी शैली है। श्रीमदभगवत गीता में अनेकों बार योग शब्द का उल्लेख किया गया है। महर्षि पतंजलि सहित अनेक मनीषियो और अन्य उपासको की दृष्टि से जीव और परमात्मा का मिलन ही योग बताया गया है। योग के इसी महत्त्व को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा योग की बढ़ती स्वीकारोक्ति को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस तरह की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत लोगों तथा समाजों एवं संस्कृतियों के मध्य सांस्कृतिक एवं सभ्यागत वार्ता बनाए रखने में मदद करती है और इस स्वीकृति से पूरे विश्व को लाभ पहुँचता है। कार्यक्रम का समापन शांतिपाठ से हुआ। कार्यक्रम में आश्रम के सदस्य, विद्यार्थी एवं अनेक योग साधक उपस्थित रहें।