पारम्परिक लोकगीतों में दिखी हरियाणवी संस्कृति की झलक
गलियारा सा केर आई रे भाती आवांगा…….
ग्रामीण परिवेश में बसती है प्रदेश की संस्कृति। संजय भसीन
ठण्डी पड़े फुहार मेरी ननदी, झूल घालदे बागां मां
संदीप गौतम/ न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र,1 जनवरी। हरियाणा कला परिषद द्वारा प्रत्येक सप्ताह आयोजित किए जा रहे आनलाईन कार्यक्रमों में नववर्ष के उपलक्ष्य में तीज-त्यौंहारों तथा शादी ब्याह में गाए जाने वाले हरियाणवी लोकगीतों को प्रस्तुत किया गया। हरियाणा के विभिन्न लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम को प्रदेश के विभिन्न गांवों फिल्माया गया। कार्यक्रम से पूर्व हरियाणा कला परिषद के निदेशक संजय भसीन ने नववर्ष की बधाई देते हुए कहा कि किसी भी प्रदेश की संस्कृति को जानने के लिए लोक कलाकारों को जानना बेहद जरुरी है। ग्रामीण परिवेश में ही प्रदेश की संस्कृति बसती है, जिसे लोक कलाकार जिंदा रखने का काम करते हैं।
हरियाणा कला परिषद द्वारा नववर्ष के मौके पर प्रदेशवासियों को हरियाणा की संस्कृति, परम्पराओं तथा शादी ब्याह के रीति-रिवाजों से अवगत करवाने के लिए लोकगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। जिसमें मोनिका, पूनम बागड़ी, बबली सांगवान, इंद्र लाम्बा, रीना, सरोज आदि लोक कलाकारों ने अलग-अलग प्रस्तुतियों के माध्यम से हरियाणा के दर्शन कराए। कार्यक्रम में सबसे पहले मोनिका और साथी कलाकारों द्वारा तीज के त्यौंहार पर गाया जाने वाला लोकगीत प्रस्तुत किया गया। हरी हरी घास और काले काले बादल, ठण्डी पडै फुहार मेरी ननदी, झूल घालदे बागां मां के माध्यम से महिला कलाकारों ने हरियाणवी तीज की महता को दर्शाया।
इसके बाद इंद्र लाम्बा और बबली सांगवान द्वारा प्रस्तुत लोकगीत मेरी कण्ठी लेजा भरया बहण का भात, मैं क्यूकर जाऊं न्योतन ना आई मेरे भात के द्वारा भात भरने के रिवाज को दिखाया। वहीं मेरी जेठानी के पांच भाई, मेरी मां का जाया सै एक के द्वारा बहन और भाई के प्यार को दर्शाया। गलियारा सा केर आई रे के भाती आवांगा, मेरा डूंगा मटका ए के दामण ल्यावांगा के माध्यम से महिला कलाकारो ने नृत्य प्रस्तुत कर भाई का इंतजार करती बहन के प्रेम के दर्शन कराए। बारात आने के दृश्य को भी कलाकारों ने बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया। बाजा ए नगाढ़ा रणजीत का ऐ जणो हाकिम आए, अपणी सीमा नै छोड़ म्हारे ब्याहण आए, मेरी सास का पांच पुतर, दो देवर दो जेठ सुणियो, जैसे गीतों ने भी ग्रामीण आंचल की संस्कृति को सबसे सांझा किया।
वहीं सुसरे के आगे बहुअड़ कैसे चालेगी, मैं तो गज का घुघंट काड़ मटक चालूंगी गीत के द्वारा नई नवेली दुल्हन के साथ अठखेलियां करती महिलाओं के हास्य को प्रस्तुत किया गया। एक के बाद एक प्रस्तुति मनमोहक रही। कार्यक्रम में न केवल लोकगीतों की प्रस्तुति रही, बल्कि मोनिका, बबली और पूनम बागड़ी ने सूत्रधार की भूमिका निभाते हुए हर रीति-रिवाज के बारे में विस्तार से बताया। अंत में हरियाणा कला परिषद के मीडिया प्रभारी ने बताया कि हरियाणा कला परिषद सदैव कला और कलाकारों के संरक्षण के लिए कार्य कर रही है। जिसके लिए कला परिषद द्वारा प्रत्येक सप्ताह सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इसी कड़ी में अगले सप्ताह नाटक सूर्य की अंतिम किरण से पहली किरण तक मंचित किया जाएगा।