‘विश्वव्यापिनी हिन्दू संस्कृति विषय पर व्याख्यान का आयोजन
संदीप गौतम/न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र, 2 जनवरी। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा ‘‘विश्वव्यापिनी हिन्दू संस्कृति’’ विषय पर व्याख्यान के द्वितीय भाग का आयोजन किया गया। व्याख्यान में दिशा कंसल्टेंट्स एवं भारती वेब (प्रा.) लिमिटेड के निदेशक प्रशांत पोल मुख्य वक्ता रहे। संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने अतिथि परिचय कराते हुए बताया कि प्रशांत पोल विश्व के विभिन्न देशों में कहां-कहां गए और इन देशों में हिन्दू संस्कृति के पद्चिह्न कहां-कहां पाए गए, इसका उनके पास अथाह खजाना है। व्याख्यान के प्रथम भाग में प्रशांत पोल ने भारत के पूर्व के देशों में हिन्दू संस्कृति के पद्चिह्नों का उल्लेख किया था।
विषय की प्रस्तावना रखते हुए विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सचिव अवनीश भटनागर ने कहा कि प्रशांत पोल ने 35 से अधिक देशों की केवल यात्रा ही नहीं की है वरन् उन देशों में हिन्दू संस्कृति को जिया है। प्रशांत पोल ने लोकमत, तरुण भारत, विवेक, एकता, पांचजन्य, आर्गेनाइजर आदि पत्रिकाओं में स्तंभ लेखन किया है। उनकी पुस्तक ‘‘वे पन्द्रह दिन’’ हिन्दी, मराठी और गुजराती में प्रकाशित हो चुकी हैं। एक अन्य पुस्तक ‘‘भारतीय ज्ञान का खजाना’’ भी प्रकाशित हुई है। मराठी में इस पुस्तक का चौथा संस्करण प्रकाशित हुआ है। वे महाकौशल विश्व संवाद केन्द्र के कार्याध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा कि विश्व में हिन्दू संस्कृति के पद्चिह्न कहां-कहां हैं, स्वाभाविक रूप से यह उनकी जिज्ञासा थी, जिसे उन्होंने जीवन का ध्येय बना लिया।
मुख्य वक्ता प्रशांत पोल ने कहा कि विश्व की खुशहाली की कामना करने वाला यह हिन्दू समूह सारे विश्व में अपने पद्चिह्न रखने के बाद भी कहीं पर भी तिरस्करणीय नहीं हुआ, इसलिए आज सारे विश्व में जो लहर निर्माण हो रही है, वह हिन्दुत्व के प्रति आकर्षण की लहर है। विश्व में हिन्दुत्व बढ़ रहा है। हिन्दुत्व बनने की परम्परा भी बढ़ रही है। इसलिए आने वाला भविष्य हिन्दू संस्कृति का भविष्य है, यह निश्चित है। उन्होंने कहा कि भारत की खोज वास्कोडिगामा ने की, यह कहना सही नहीं होगा बल्कि कहना चाहिए कि विश्व की खोज भारत ने की। प्राचीन समय से भारत के लोग सारे विश्व में जाते थे और व्यापार करते थे। पश्चिम के देश भारतीय नौकानयन के क्षेत्र में अत्यंत प्रवृर्द्ध थे। उन्होंने समृद्ध बंदरगाह मुंबई के उपनगर नाला सोपारा, एनरॉन के कारण प्रसिद्ध हुआ दाभोल, गुजरात का सूरत का वर्णन करते हुए बताया कि इन बंदरगाहों से पश्चिम के देशों में समुद्री यातायात होता था। वह यातायात भारत में समृद्धि लाता था। जहां-जहां पर भारतीय नाविक या व्यापारी गए, उन्होंने अपनी प्रथाएं, अपनी संस्कृति वहां पर बसाई और हिन्दुओं के पद्चिह्न, हिन्दुओं की सभ्यता, संस्कृति आज भी सब जगह दिखती है।
उन्होंने प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डॉ. हरिभाऊ वाकणकर के बारे में कहा कि डॉ. वाकणकर जब इंग्लैंड गए तो लंदन के म्यूजियम में उन्हें वास्कोडिगामा की ओरिजनल डायरी का अनुवाद मिला। जिसमें स्पष्ट रूप से वास्कोडिगामा ने लिखा है कि वह अफ्रीका के झांजीबार तक तो पहुंच गया लेकिन उससे आगे भारत में कैसे जाना, यह उसे नहीं मालूम था। झांजीबार के किनारे बंदरगाह पर एक विशाल जहाज खड़ा था, जिसमें पूछताछ पर पता चला कि वह भारत के चंदन नाम के व्यापारी का है। उसने दूरभाषीय के माध्यम से चंदन से बातचीत की तो उसे कहा गया कि वह भारत जा रहा है, वे भी पीछे-पीछे आ सकते हैं। इस प्रकार से वास्कोडिगामा भारत में पहुंचा।
उन्होंने कहा कि भारत में जहाज बनाने की एक बहुत बड़ी परम्परा थी। इसका उदाहरण इस बात से मिलता है कि पूरे विश्व में जितने अच्छे जहाज बनते होंगे, यह भारत में ही थे। यह कथन भारतीय का नहीं बल्कि विदेशी लोगों ने लिखकर रखा था। बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी आने के बाद ब्रिटेन की रानी ने सारी सत्ता अपने हाथ में ले ली, उसके बाद भी अंग्रेज भारतीय जहाजों के बारे में खौफ रखते थे। कई लोगों ने लिखा है कि भारतीय जहाज बनते रहे तो हमारे उद्योगों पर उसका असर होगा, इसलिए ये बंद होने चाहिए। ब्रिटेन की रानी ने सारी सत्ता हाथ में लेने के एक वर्ष पश्चात अध्यादेश निकाला कि भारत में जहाज नहीं बनेंगे। इस प्रकार हमारी जहाज बनाने की परंपरा का अंत रानी ने किया।
उन्होंने कहा कि लेटिन या दक्षिण अमेरिका के बहुत सारे देशों की अपनी संस्कृति थी, जिसे ‘माया’ या ‘इनका’ संस्कृति कहा जाता है। लेकिन वहां अब उत्खनन के पश्चात हिन्दू भगवान की जो प्रतिमाएं सामने आ रही हैं, उससे स्पष्ट हो रहा है कि वे लोग हिन्दू संस्कृति को मानने वाले थे। उन्होंने कहा कि यूरोप में अनेक घुमन्तू जातियों का डी.एन.ए. देखेंगे तो वह भारत से मिलता-जुलता मिलेगा। अनेक घुमन्तू जातियों का शब्द संग्रह भारतीय प्रांतों के शब्दों से मिलते हैं। उन्होंने इटली के शहर वेनिस के बारे में कहा कि वहां के इतिहास से पता चलता है कि वहां से भारत के साथ व्यापार होता था। इतिहास खंगालेंगे तो पाएंगे कि 2 हजार वर्ष पूर्व भारत के साथ व्यापार के कारण इटली के दो शहर वेनिस और जिनोआ समृद्ध हुए थे। संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने वक्ता एवं देशभर से जुड़े सभी श्रोताओं का धन्यवाद किया और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना के साथ व्याख्यान का समापन हुआ।