Friday, October 18, 2024
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अखंड भारत महज सपना नहीं, बल्कि प्रत्येक हिंदुस्तानी में इसके लिए श्रद्धा और निष्ठा हैःक्षेत्र प्रचारक प्रमुख बनबीर

by Newz Dex
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पलायन के 1800 साल अपने देश इजराइल पहुंचने वालों और उनकी वेदना से सीखने की जरूरत

पंचकूला के अग्रवाल भवन में मनाया गया अखंड भारत संकल्प दिवस

एनडी हिंदुस्तान संवाददाता/दीपक शर्मा

पंचकूला। सामाजिक समरसता मंच द्वारा आयोजित अखंड भारत संकल्प दिवस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र क्षेत्र प्रचारक प्रमुख बनवीर सिंह ने कहा कि अखंड भारत महज सपना नहीं,बल्कि प्रत्येक हिंदुस्तानी में इसके लिए श्रद्धा और निष्ठा है। जिन आंखों ने भारत को भूमि से अधिक माता के रूप में देखा हो, जो स्वयं को इसका पुत्र मानता हो, उसकी रज को माथे से लगाता हो, वंदेमातरम् जिसका राष्ट्रघोष हो और राष्ट्रगान हो, ऐसे असंख्य अंतःकरण मातृभूमि के विभाजन की वेदना को कैसे भूल सकते हैं। उन्होंने कहा कि अखंड भारत के संकल्प को कैस त्याग सकते हैं। लाखों लाखों हृदय मातृभूमि के प्रेम में अखण्ड भारत के संकल्प को लेकर नित-नित आगे बढ़ रहे हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य वक्ता दिल्ली,हरियाणा,हिमाचल,पंजाब और जम्मू कश्मीर के क्षेत्र प्रचारक प्रमुख बनवीर सिंह मुख्यातिथि क्षेत्र  रेमंड ग्रुप के चेयरमैन तरसेम के रुबी, विशिष्ट अतिथि आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी मनीषा पंडित,सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार ने  दीप प्रज्वलन से किया। तत्पश्चात छात्राओं ने वंदे मातरम गीत पर शानदार प्रस्तुति दी।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता ने सर्वप्रथम उन लाखों बलिदानों को वंदन किया जिनकी वजह से भारत को स्वतंत्रता मिली। उनहोंने ऐसे लाखों लोग जो विभाजन की विभिषिका के शिकार हुए और उन हजारों बहन बेटियां को भी शत शत वंदन किया जिन पर इस दौरान कई तरह के अत्याचार हुए थे। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली है। यह छोटी घटना नहीं थी। मुख्य वक्ता ने कार्यक्रम में अनु रानी शर्मा द्वारा प्रस्तुत की गई अटल जी की कविता का जिक्र करते हुए कहा कि इस रचना में स्पष्ट कहा है कि जो पाया उसमें खो ना जाए,जो खोया है, उसे भूल ना जाए। यह दिन जो खोया उसको जानने का दिन है,क्योंकि 12 लाख लोग बलिदान हुए थे और छह करोड़ लोग बेघर हुए थे। बहुत सारी कहानियां हम सब लोगों ने इसके बारे में सुनी होंगी ।संबोधन के बीच मुख्य वक्ता ने विभाजन की विभीषिका झेल चुके एक राजपाल  नाम के व्यक्ति का जिक्र किया,जिनकी प्रिंटिंग प्रेस थी।वह विभाजन के बाद जब इधर आए और जब उनसे उनकी जन्मस्थली के बारे में जिक्र होता तो लायल पुर के उस इलाके की बात करते हुए उनका गला रुंध जाता था। बताते थे कि विभाजन से पहले के पूरे पंजाब में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग औऱ सरकारी नौकरियों में उसके गांव के लोग थे। जब यह शोर मचा कि पाकिस्तान बनेगा। फिर चर्चा हुई की उधर से हिंदू इधर आएंगे और इधर का मुस्लिम उधर जाएगा,लेकिन फिर पढ़े लिखे लोगों में चर्चा हुई कि हम नहीं जाएंगे,राजा बदलते रहते हैं। उन्हें आश्वासन भी मिलते थे कि कुछ नहीं होगा। मगर एक दिन आया जब बीस हजार की भीड़ ने राजपाल के गांव को घेरा। इसके बाद कौन मरा, कौन बचा कुछ पता नहीं लगा,राजपाल और उनके चाचा के अलावा परिवार के 37 लोग नहीं बच सके।एक  स्मृद्ध परिवार का एक झटके में सब तबाह हो गया था। मुख्य वक्ता ने कहा कि यह इकलौते राजपाल की कहानी नहीं है,लाखों लोग थे राजपाल जैसे। 

मुख्य वक्ता ने कहा कि 1800 साल पहले एक छोटे से देश इजराइल के नागरिकों को साम्राज्यवादियों द्वारा पलायन हुआ था। वहां यहूदी नहीं बचा,लेकिन यह इजराइलवासियों की वेदना ही थी, पीढ़ी दर पीढ़ी उनकी पीड़ा ही थी कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इजराइल पुनः स्थापित हुआ। ऐसा कहा जाता है कि जब एक यहूदी दूसरे यहूदी को पत्र लिखता था तो उसकी अंतिम लाइन में लिखता था कि अगले साल यरूशलम में मिलेंगे। उनकी इच्छा थी जिसको उन्होनें साकार किया। अखंड भारत हमारी वेदना है। 1940 के करीब जब मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की। नेहरू जी से इस संदर्भ में प्रश्न किया गया तो नेहरु जी ने कहा था कि “मूखौँ के स्वर्ग में रहते हैं जो विभाजन की बात करते हैं।” ऐसा क्या हुआ कि 7 साल में भारत का विभाजन हुआ।

आज भी भारत अखंड हो सकता है। जर्मनी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। भारत में अनुच्छेद 370 हटने से पूर्व भी यही धारणा थी कि नहीं हट सकता,लेकिन आज सब जानते है कि हट गया। कुछ लोग कहते हैं कि भारत का अखंड होना असंभव है,जबकि ये सही नहीं है। वे इतना कह सकते हैं कि भारत का अखंड होना असंभव है, मेरे इस जीवन तक। क्योंकि व्यक्ति के जीवन एवं राष्ट्र के जीवन के मापदंड अलग हैं। 1857 की क्रांति जब असफल हुई,तब लगता था कि अब अंग्रेजो का ही शासन रहेगा,लेकिन उस समय भी वासुदेव बलवंत फडके जैसे सेनानी थे, जो मानते थे कि भारत जरूर स्वतंत्र होगा। उन्होंने कहा कि 1905 में अंग्रेजों ने बंग बंग विभाजन की योजना बनाई थी, उद्देश्य बंगाल को दो भागों में बांटना था। सारे देश में इसका विरोध हुआ। त्रिमूर्ति लाल,बाल,पाल (लाला लाजपत राय,बालगंगाधर तिलक,बिपिन चंद्र पाल) के नेतृत्व में इस विरोध में हिंदू एवं मुस्लिम दोनों ने भाग लिया।विरोध इतना तीव्र था कि अंग्रेजों को 1911 में इसे वापस लेना पड़ा, लेकिन इसके 36 साल बाद देश का विभाजन हो गया और कुछ नहीं हो सका,जबकि उस समय अंग्रेज भी इतने मजबूत नहीं थे,जितने 1905 में थे,क्योंकि महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस भगतसिंह आदि सेनानियों के नेतृत्व से अनेक आंदोलन हुए और अंग्रेज सत्ता कमजोर पड़ चुकी थी। भले द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेज विजयी हुए,लेकिन उन्हें काफी क्षति झेलनी पड़ी थी। 

उन्होंने कहा कि इतिहास में देखते हैं कि 1905 में बंगाल का विभाजन धर्म के आधार पर करने का बीज बोया गया था। यह प्रयोग था,जिसकी फसल 1947 में खड़ी हुई और परिणाम सामने आया,क्योंकि धर्म के आधार पर विभाजन की तैयारी के बाद मार्च 1946 में जहां जहां हिंदू की संख्या कम थी वहां मारकाट शुरु हो गई। बंगाल,बिहार,गुजरात अमृतसर जैसे क्षेत्रों में एक जैसी कहानी सामने आई। 20 फरवरी 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने कह दिया था कि अंग्रेज 1948 में भारत को छोड़ कर चले जाएंगे। इसके बाद अचानक जुलाई में घोषणा हुई कि 15 अगस्त 1947 में ही चले जाएंगे और 17 अगस्त 1947 को उस ब्रिटिश वकील रेडक्लिफ ने लाइन खींची जो कभी भारत भी नहीं आया था। उन्होंने कहा कि सिंध, बलूचिस्तान, पख्तून पाकिस्तान से अवश्य अलग होंगे। यह गोली बंदूक बारुद के दम पर नहीं होगा। यह नैसिगर्क होगा। भारत के पड़ौसी देश नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका सांस्कृतिक रूप से भारत से जुड़े हैं। सत्तर के दशक में जब सिक्किम भारत से मिला तो किसी को नया नहीं लगा । क्योंकि हम सांस्कृतिक रूप से एक थे। निश्चित रूप से हम अद्वितीय होंगे। एकात्मता स्तोत्रम् की अंतिम पंक्ति अद्वितीयं भारतं स्मरेत् हम मानते हैं। इसका यही उद्देश्य है।

इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्यातिथि तरसेम के रुबी ने कहा कि अखंड भारत वह है, जो कभी था है और भविष्य में भी रहेगा। उन्होंने कहा कि जब अंहकार टकराते हैं तो इन हालात में परिवार और कई बार देश भी टूटते हैं। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि मनीषा पंडित ने कहा कि अखंड भारत कोई नया विचार नहीं है,यह हमारी सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है,जिसने हमें प्रेरणा दी है। कार्यक्रम में पीयूष जैन ने काव्य रचना जागदे रणा होओ,जागदे रैणा,जागदे रैणा वीर जवानों,यह धरती अवतारों की जागदे रैणा की भावपूर्ण प्रस्तुति दी। इस अवसर पर मौजूद रहे, जितेंद्र, जिला संयोजक, सुरेन्द्र विभाग संयोजक एवं विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख एवं गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।

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