फिलहाल भाजपा के चहेते जाट नेता धुमन सिंह की हालत तनु वैड्स मनु के राजा अवस्थी जैसी…
यहां कइयों को एक चुनाव लड़ना नसीब नहीं हुआ और सौभाग्यशाली हैं नायब सैनी
2014 से अब तक सैनी अलग अलग सीटों से चुनाव लड़े और जीते,चौथी जगह भी है उनके लिए मानी जा रही है पूरी तरह से सुरक्षित
पिछले दस साल में विधायक,मंत्री,सांसद,प्रदेशाध्यक्ष और सीएम बनने का अवसर मिला
इस बार भाजपा चौकस,क्योंकि 2019 में 75 पार की खुमारी को तब 50 सीटों पर हुई हार ने उतारा था
लाड़वा में बिल्ली के भाग से छींका टूट भी सकता था,मगर इस बार तो आकाश में टंगा दिख रहा है
एनडी हिंदुस्तान संवाददाता
चंडीगढ़। हरियाणा के छह जिले और 25 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा क्या इस बार भी किसी जाट लीडर को चुनाव लड़ाने में इच्छुक नहीं ? या यह मान लिया जाये की हरियाणा के इतने बड़े क्षेत्रफल में भाजपा को जाट लीडरशिप की आवश्यकता नहीं। वह स्थिति तब दिख रही है,जब इन छह जिलों में जाट समुदाय का ठीक ठाक संख्या बल है। हम बात कर रहे हैं उत्तरी हरियाणा के 6 जिलों की,जिसमें पहाड़ी क्षेत्र से सटा पंचकूला के कालका से अगर चला जाए और तराई में अंबाला,यमुनानगर,कुरुक्षेत्र,कैथल और करनाल जिले के पानीपत से सटे घरौंडा विधानसभा तक आएं तो सूबे के इन छह प्रमुख जिलों में 25 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। रोचक पहलू यह है कि जो राज्य महज 7 जिलों से शुरु हुआ था और अब छह जिलों में एक भी जाट चेहरा नहीं। दस साल सत्ता में रहने के बाद भी हरियाणा की सत्तारुढ़ भाजपा वहां जाट लीडरशिप तैयार नहीं कर पायी या माना जाए कि जो एक, दो चेहरे हैं,उन्हें मौका देने के मूड में नहीं है। 2024 विधानसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे से पहले यह सवाल लाजिमी बनता है कि कालका से घरौंड़ा के बीच भाजपा इन 25 सीटों पर किसी जाट चेहरे को टिकट देगी भी या नहीं ?
2019 में 75 पार की खुमारी,तब 50 पर हुई हार ने उतारी थी
सत्तारूढ़ दल भाजपा इस समय हरियाणा विधानसभा चुनाव-2024 में जीत की हेट्रिक लगाने के लिए कई तरह सर्वे और नए नए प्रयोग कर रही है।इसी के साथ में संघ और संगठन के मापदंड पर खरे उतरने वाले जिताऊ चेहरों पर फोकस है। क्योंकि पिछली बार 75 पार की खुमारी मर खप कर 50 सीटों पर हुई हार ने उतरी थी।इनमें कई सीटों पर भाजपा की जीत का आंकड़ा इतना कम था कि मतगणना के अंतिम चरण तक इस बात को लेकर धक धक मची रही कि ये सीट भी गई, ओह वो सीट भी शायद गई… खैर 2019 जैसी नौबत या 2024 में उससे भी बुरी स्थित का सामना ना करना पड़े, इसको लेकर भाजपा विशेषकर जातीय समीकरणों का भी हिसाब लगा रही है,क्योंकि किसी भी उपेक्षा हुई तो उसकी क्षति दूसरी सीटों पर भी भुगतनी पड़ सकती है।
राजनीतिक समझ की दृष्टि से हरियाणा में जाट सामुदाय काफी चौकन्ना वोटर माना जाता है। जिन छह जिलों की यहां चर्चा हो रही है,अगर इनमें कैथल के अलावा अन्य पांच जिलों में शामिल पंचकूला,अंबाला,यमुनानगर,कुरुक्षेत्र,और करनाल क्षेत्र में बड़ी संख्या में होने के बावजूद जाट समुदाय उतना आक्रामक नहीं,जितना की जाट लैंड या अन्य कई इलाकों में अलग प्रभाव दिखता है। यही कारण है जाट आंदोलन के दौरान भी यह पांच जिले काफी शांत दिखे थे। मगर इस मामले में अपवाद की तरह देखने जाने वाले इन क्षेत्रों के वोटरों की संख्या का बल चुनावी समीकरणों को उलझाने और बदलने की ताकत पिछले चुनाव परिणामों में दिखाता रहा है।
आज मुद्दे की बात ये है कि भाजपा उत्तरी हरियाणा की किसी सीट से जाट चेहरे को उतारेगी भी या नहीं,इस पर भाजपा के जाट चेहरों के साथ उनके समर्थकों और विशेषकर विपक्ष की भी नजर रहेगी। अमूमन हर चुनाव में जाट और गैर मुद्दा हरियाणाभर में चर्चा बनता रहा है।बेशक हर राजनीतिक दल इस तरह के फार्मूले को नकारता हो,मगर सियासतदानों की मंशा और टिकटों के वितरण में स्थिति हर बार सबके सामने होती है। बेशक तमाम सीटों की तस्वीर टिकट वितरण के बाद ही स्पष्ट होगी,मगर जो बात सामने आ रही है,उससे लग रहा है भाजपा इस बार अपने विरोधी खेमों को कई सीटों पर उलझाने वाले जातीय समीकरणों के हिसाब से टिकट वितरण करने वाली है,जिसका अंदाजा भाजपा के विरोधी सियासी दलों को भी नहीं होगा। यानी जो बात सामने आ रही है कि कई सीटों पर परंपरा टूट सकती है। अब राजनीतिक पंडितों का यह कयास सही साबित होगा या गलत ? इसका फैसला तो टिकटें फाइनल होने पर ही होगा।
भाजपा के चहेते धुमन की अब तक हसरत अधूरी, मगर इस बार दहीं हांडी फोड़ने की जुगत पूरी
तमाम उधेड़बुन के बीच भाजपा का चहेता और पुराना जाट चेहरा इस बार दहीं हांडी फोड़ने के लिए पूरी जुगत में है। 2009 से 2019 के बीच हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव हो या 2024 के हो चुके लोकसभा चुनाव। इस जाट नेता की हसरत अब तक अधूरी ही रही। हम बात रहे है कुरुक्षेत्र जिला के पूर्व भाजपा अध्यक्ष धुमन सिंह किरमिच की। धुमन सिंह वर्तमान में हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन है और पिछले चार साल से लाडवा विधानसभा क्षेत्र पर नजरे गड़ा कर सक्रिय थे। भाजपा के एक दिग्गज की थपकी के कारण उन्हें उम्मीद थी कि इस बार भाजपा का मन अवश्य पसीजेगा और बिल्ली के भागों छींका टूटेगा। वैसे तो धुमन सिंह किरमिच इस बार लोकसभा की टिकट पर मजबूती से दावेदारी जता रहे थे,मगर ऐन किनारे पर आकर किश्ती गोता खा गई और लोकसभा चुनाव से चंद दिन पहले कांग्रेसी नेता प्रख्यात उद्योगपति नवीन जिंदल कोयले की कालिख उतार कर ना केवल भाजपा में शामिल हुए,बल्कि टिकट पाकर कुरुक्षेत्र का लोकसभा क्षेत्र से चुनाव भी जीत गए।बेशक जीत का अंतर बहुत कम रहा।
यहां तो आकाश में जा टंगा है छींका
इसके बाद धुमन सिंह ने फिर से लाड़वा सीट पर फोकस किया और उन्हें उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव 2024 में टिकट पक्की । अब छींका ही अगर आकाश में टंगा हो तो कब टूटे और कैसे नसीब हो,वही ताजा स्थिति लाडवा विधानसभा सीट की बन चुकी है।दरअसल, यह लगभग फाइनल माना जा रहा है कि इस बार लाड़वा सीट से कोई और नहीं,बल्कि हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी चुनाव लड़ेंगे। तनु वैड्स मनु फिल्म का वो संवाद तो शायद आपको याद हो,जिसमें राजा अवस्थी (जिम्मी शेरगिल) फिल्म के हीरो डाक्टर शर्मा (माधवन) पर कटाक्ष करते हुए बोलता है, आप ठीक कर रहे हो डाक्टर साहब, यहां एक बार घोड़ी पर चढ़ना नसीब नहीं हुआ और आप दूसरी बार घोड़ी पर चढ़ने की तैयारी कर रहे हैं,… अगर इस बार भी धुमन सिंह को टिकट नहीं मिली और नायब सैनी की लाड़वा से टिकट घोषित होते ही वह भी अपने सीएम नायब सैनी से पूछ सकते हैं आप ठीक हो सैनी साहब हमें 2009 से 2024 के बीच हुए लोकसभा और विधानसभा के आठ चुनावों में एक बार भी चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला और आप 2014 से 2024 तक नारायणगढ़,कुरुक्षेत्र,करनाल और अब लाडवा में आकर चौथा चुनाव लड़ रहे हो।
उड़ान भरने के लिए यहां इस कारण से फैलाए जा रहे हैं उम्मीदों के पंख
मजेदार बात यह है कि इन 25 विधानसभा क्षेत्रों में अब तक केवल लाडवा सीट थी,जहां भाजपा के पास जाट चेहरा भी था और जातीय समीकरण भी सटीक बैठते थे। खैर,अब धुमन सिंह और उनके समर्थकों को लग रहा है कि उन्हें भाजपा थानेसर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाए सकती है। इनका मानना है कि इसका संदेश जाट समुदाय में भी सही जाएगा और यहां से वह मजबूत उम्मीदवार के रुप में कड़ी टक्कर देकर सकारात्मक परिणाम ला सकते है। हालांकि यह संभव इसलिए बताया जा रहा है कि तमाम सर्वे रिपोर्ट में थानेसर से भाजपा के दो बार के विधायक एवं वर्तमान राज्यमंत्री सुभाष सुधा की सर्वे रिपोर्ट गड़बड़ाई हुई बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि उनकी टिकट कट सकती है। हालांकि यह असंभव सी बात लगती है,क्योंकि सुधा का दावा है कि थानेसर में दो बार विधायक रहते हुए और 20 साल नगर परिषद का चेयरमैन रहते हुए उन्होंने रिकार्ड विकास कार्य कराए हैं। सुधा और उनके समर्थक मानते हैं कि यह सभी विकास कार्य ऐतिहासिक हैं। सुधा परिवार एवं उनके समर्थकों का दावा है कि थानेसर की जनता भी उन्हें खूब पसंद करती है और वे हर समय जनता की सेवा में संलिप्त रहते है।
अगर इस बार भी टिकट नहीं मिली तो जाट वोटरों में इसका क्या संदेश जाएगा
अब इन हालात में भाजपा के चहेते इस जाट चेहरे को इस बार भी मौका मिलेगा या नहीं ? अगर इस बार भी टिकट नहीं मिली तो जाट वोटरों में इसका क्या संदेश जाएगा ? क्या विपक्ष भी इसे मुद्दा बना सकता है ? थानेसर सीट पर धुमन सिंह के लिए बड़ी चुनौती केवल सुभाष सुधा ही नहीं,बल्कि एक और नाम है। माना जा रहा है कि अगर सुभाष सुधा की टिकट कटी तो भाजपा उनकी जगह पर पंजाबी चेहरे को चुनाव लड़ा सकती है। इसका कारण यह है कि यहां से चार बार अशोक अरोड़ा और दो बार सुभाष सुधा पंजाबी समुदाय के होने के कारण जीत हासिल कर चुके है। भाजपा की ओर से इस बार विश्व हिंदू परिषद के नेता मदन मोहन छाबड़ा चुनाव लड़ने के इच्छुक है और आलाकमान तक उनका प्रोफाइल पहुंचा हुआ है।
किसका सपना टूटेगा,किसका होगा साकार ?
किसका सपना टूटेगा,किसका साकार होगा ? भाजपा का इस समय पूरा फोकस सत्ता हासिल करने की हैट्रिक पर है। तीसरी बार सत्ता में वापसी के लिए मजबूत रणनीति बनाने पर भाजपा का जोर लग रहा है।भाजपा इस अपने सपने को मुंगेरी लाल के हसीन सपने के की तरह से नहीं,बल्कि पुख्ता रणनीति और सूझबूझ के बूते पर सिद्ध करने की जुगत में है।