एनडी हिंदुस्तान संवाददाता
कुरुक्षेत्र।युगपुरुष महाराजा अग्रसेन ने राजनीति का सुरक्षा कवच धर्मनीति को माना। उनका मानना था, राजनेता के पास शस्त्र है, शक्ति है, सत्ता है, सेना है फिर भी नैतिक बल के अभाव में जीवन मूल्यों के योगक्षेम में वे असफल होते हैं। इसीलिए उन्होंने धर्म को जीवन की सर्वोपरि प्राथमिकता के रूप में प्रतिष्ठापित किया। इसी से नए युग का निर्माण, नए युग का विकास वे कर सके। उनके युग का हर दिन पुरातन के परिष्कार और नए के सृजन में लगा था। सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों के नए संदर्भ जुड़े और परंपराये प्रतिष्ठित हुई। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संयोजक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने अग्रसेन जयंती के उपलक्ष्य में व्यक्त किये। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने महाराजा अग्रसेन के चित्र के समक्ष उन्हे नमन किया और उनकी शिक्षाओ को अपने जीवन में आत्मसात करने का संकल्प लिया।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कुशल शासकों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका लोकहितकारी चिंतन कालजयी होता है और युग-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। ऐसे शासकों से न केवल जनता, बल्कि सभ्यता और संस्कृति भी समृद्ध और शक्तिशाली बनती है। ऐसे शासकों की दृष्टि में सर्वोपरि हित सत्ता का न होकर समाज एवं मानवता होता है। ऐसे ही महान शासक थे महाराजा अग्रसेन। वे कर्मयोगी लोकनायक तो थे ही, संतुलित एवं आदर्श समाजवादी व्यवस्था के निर्माता भी थे। महाराजा अग्रसेन समाजवाद के प्रणेता, गणतंत्र के संस्थापक, अहिंसा के पुजारी व शांति के दूत थे।महाराजा अग्रसेन अग्रवाल जाति के पितामह है । धार्मिक मान्यतानुसार इनका जन्म आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम की 34वीं पीढ़ी में सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल के प्रतापनगर के महाराजा वल्लभ सेन के घर में द्वापर के अंतिम काल और कलियुग के प्रारंभ में आज से लगभग 5,195 वर्ष पूर्व हुआ था।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा महाराजा अग्रसेन के जन्म के समय गर्ग ऋषि ने महाराज वल्लभ से कहा था कि यह बहुत बड़ा राजा बनेगा। इसके राज्य में एक नई शासन व्यवस्था उदय होगी और हजारों वर्ष बाद भी इनका नाम अमर होगा।महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है। अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले व्यक्ति की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक निवासी उसे 1 रुपया व 1 ईंट देगा जिससे आसानी से उसके लिए निवास स्थान व व्यापार का प्रबंध हो जाए।महाराजा अग्रसेन ने एक नई व्यवस्था को जन्म दिया। उन्होंने पुन: वैदिक सनातन आर्य संस्कृति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य के पुनर्गठन में कृषि व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया। महाराजा अग्रसेन की शिक्षाओं को आत्मसात करके ही भारत एक विकसित एवं आत्म निर्भर राष्ट्र बन सकता है। कार्यक्रम का समापन कल्याण मंत्र से हुआ। कार्यक्रम में आश्रम के विद्यार्थी, सदस्य, कार्यकर्ता आदि उपस्थित रहे