Friday, November 22, 2024
Home Kurukshetra News नवरात्रों में देवी के रूप में पूजी जाती है सांझी माई

नवरात्रों में देवी के रूप में पूजी जाती है सांझी माई

by Newz Dex
0 comment


शक्ति के अलग-अलग स्वरूपों की प्रतीक है सांझी माता

शीशा छाई चुंदड़ी तारा छाई रात, सांझी चाली बाप कै, बुहाइयो हे राम

न्यूज़ डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र: लोकजीवन में सांझी दुर्गा के रूप में पूजी जाती है। सांझी माई को पार्वती के अवतार के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार नवरात्रों में सांझी की पूजा होती है। प्रथम नवरात्रे से पूर्व घर की दीवार पर गोबर का आधार बनाकर मिट्टी से सांझी माता तैयार की जाती है। इसकी पूजा के लोकजीवन में अलग-अलग स्वरूप विद्यमान हैं। सांझी माता की पूजा प्रथम नवरात्रे से शुरू होती है और नौवें नवरात्रे तक पूजी जाती है। दशमी यानि कि विजयदशमी के दिन सांझी को उतारकर दुर्गा माता की तर्ज पर पानी में विसर्जित कर दिया जाता है। यह जानकारी विरासत में आयोजित सांझी उत्सव के संयोजक डॉ. महासिंह पूनिया ने दी।
उन्होंने बताया कि लोकजीवन में प्रथम नवरात्रे पर एक डोली, एक थाल, एक कटोरा, एक बिजोरा, एक ढाल, एक तलवार, एक फूल के साथ सांझी माता की पूजा की जाती है। इसी प्रकार दसरे नवरात्रे पर बीरन, बेटी, बीजणी, बछेरी, बीज का चंद्रमा बीजोरा से सांझी की पूजा की जाती है। तीसरे नवरात्रे पर तीन तिबारी, चाँद-सूरज-तारा, तराजू, तीन गोला त्रिशूल के साथ पूजा की जाती है। डॉ. पूनिया ने बताया कि चौथे नवरात्रे पर सांझी माता की चौपड़, चरभर, चार वास्ते, चकलोटा-बेलन, चकमक, चरू-चरी, चीड़ा-चीड़ी के साथ पूजा की जाती है। इसी प्रकार पांचवे नवरात्रे पर पान-सुपारी, पाँच सिंघाड़े, पांच फूल, पत्तल-दोने, पाँच कुँवारे (लडक़े) के साथ सांझी की पूजा की जाती है। छठे नवरात्रे के दिन छाबड़ी, छतरी, छाछ-बिलौना के साथ सांझी माता पूजी जाती हैं। सातवें नवरात्रे के दिन सातिया, सातऋषि, साल, शमी से माता सांझी की पूजा की जाती है। उन्होंने बताया कि आठवें नवरात्रे पर सांझी माता को अठकली फूल, आम, आल, अन्नपूर्णा से पूजा जाता है। नौवें नवरात्रे के दिन निरसरणी नगाड़े की जोड़, नाव, नौ डोकरे-डोकरी, नल दमयंती से सांझी की पूजा की जाती है। डॉ. पूनिया ने बताया कि विजयदशमी के दिन शाम को सांझी का मुंह उतारने से पहले घर में देवी की कढ़ाई की जाती है और सांझी के खाने के लिए हलवा बनाया जाता है। सांझी के मुंह की पूजा एवं उसे हलवा खिलाने के पश्चात् उसे उतार लिया जाता है। तत्पश्चात् आस-पास की सभी बालिकाएं झुण्ड के रूप में पास के किसी तालाब या नदी में उसे एक सुराखदार मटके में रखकर, जिसमें जलते हुए चौमुखे दीपक रखे जाते हैं, विसर्जित कर दिया जाता है। उस समय के गीत का प्राकृतिक वर्णन देखने से ही बनता है – शीशा छाई चुंदड़ी तारा छाई रात, सांझी चाली बाप कै, बुहाइयो हे राम।

You may also like

Leave a Comment

NewZdex is an online platform to read new , National and international news will be avavible at news portal

Edtior's Picks

Latest Articles

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00