सांझी, संझया, कनागत परले पार.. देखण चाल्लो हे सांझी के लणिहार
न्यूज़ डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र: लोकजीवन में सांझी लुप्त होती एक ऐसी लोककला है जिसको सदियों से बनाते हुए आ रहे हैं। इस लोककला को गोबर और मिट्टी से प्राकृतिक स्वरूप में बनाया जाता है। इसकी साज-सज्जा के लिए जहां एक ओर नैसर्गिक रंगों का प्रयोग होता है वहीं पर दूसरी ओर प्रतीकों के माध्यम से भी सांझी की साज-सज्जा की जाती है। लोक प्रतीक सांझी की सजावट में चार चांद लगाने का कार्य करते हैं। यह जानकारी विरासत में आयोजित सांझी उत्सव के संयोजक डॉ. महासिंह पूनिया ने दी।
उन्होंने बताया कि सांझी एक प्राकृतिक लोककला है, इसमें जो भी रंग एवं सामग्री प्रयोग होती है वह पर्यावरण के लिए बिल्कुल भी नुकसानदायक नहीं है। मिट्टी एवं गोबर से बनी सांझी के ऊपर गेरूए एवं सफेद रंग का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी के सितारों एवं सांझी के अंग-प्रत्यंगों को इन्हीं रंगों से सुसज्जित किया जाता है। पहले दीवार पर गोबर लगाया जाता है और उसके ऊपर मिट्टी से बनी हुए सितारों एवं अंग-प्रत्यंगों से सांझी बनाई जाती है। डॉ. पूनिया ने बताया कि सांझी के लिए अनेक प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है। इसके अंदर मिट्टी की चिडय़ा बनाई जाती, सांझी की सखी धुंधी बनाई जाती है। सांझी के सजने संवरने के लिए कंघा एवं शीशा बनाया जाता है, पारिवारिक उन्नती की परिचायक सीढ़ी बनाई जाती है, हवा करने के लिए बीजणा बनाया जाता है। सौम्यता एवं शीतलता प्रदान करने के लिए चन्द्रमा का निर्माण किया जाता है। रोशनी एवं जीवन के लिए सूर्य बनाया जाता है। गतिशीलता एवं उत्सुकता के लिए चिडिय़ों का निर्माण किया जाता है। उत्साह एवं उल्लास का प्रतीक मोर बनाया जाता है। उन्होंने कहा कि हरियाली एवं सौहार्दता का प्रतीक तोता बनाया जाता है। पारिवारिक समृद्धता के लिए कमल का निर्माण किया जाता है। शुभता के लिए स्वास्तिक चिह्न बनाया जाता है। फलने-फूलने के लिए बेल-बूटे बनाये जाते हैं। विष्णु एवं लक्ष्मी के पांव की छाप के लिए पैरों के प्रतीक बनाये जाते हैं। पावनता एवं पवित्रता के लिए कलश का निर्माण किया जाता है। डॉ. पूनिया बताया कि इसके अतिरिक्त पशु धन की खुशहाली के लिए गाय एवं बैल बनाये जाते हैं। सांझी के पैरों में जौ बीजे जाते हैं जो पारिवारिक उन्नति का परिचायक है। इस प्रकार लोकजीवन में सांझी स्वयं दुर्गा एवं शक्ति का प्रतीक है। लोककला की दृष्टि से सांझी लोकजीवन की ऐसी प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है जिसमें आंचलिकता के दर्शन होते हैं।
चित्तण-मांडणा प्रतियोगिता का आयोजन
सांझी उत्सव में चित्तण-मांडणा प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें टैगोर एवं शक्ति स्कूल कनीपला के छात्रों ने भाग लिया। उन्होंने हरियाणवी चित्तण मांडणों के माध्यम से लोकजीवन की सांस्कृतिक झांकी प्रस्तुत की। छात्रों ने अहोई माता, कलश, सांझी, चांद, सूरज, स्वास्तिक, विवाह निमंत्रण, देव उठणी ग्यास आदि का चित्रण कर लोक चित्तण मांडणों को प्रस्तुत किया। चित्तण मांडणों की प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को 11 अक्टूबर को सम्मानित किया जायेगा।
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स्कूली छात्रों के लिए खेलों का आयोजन
विरासत सांझी उत्सव में छात्रों ने मटका दौड़ एवं रस्साकस्सी प्रतियोगिता में भाग लिया। विरासत की ओर से जो छात्र सांझी उत्सव को देखने के लिए आते हैं उनके लिए लोक पारंपरिक खेलों का आयोजन किया जाता है। उसी कड़ी में आज मटका दौड़ एवं रस्साकस्सी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें छात्रों की अपेक्षा छात्राओं ने बाजी मारी।