‘‘उत्तिष्ठ भारत’’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन
संदीप गौतम/न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र, 9 जनवरी। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में ‘‘उत्तिष्ठ भारत’’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान में सुश्री अलकागौरी द्वि प्रांत संगठक विवेकानन्द केन्द्र (हरियाणा और पंजाब) मुख्य वक्ता रहीं। संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने व्याख्यान का संचालन करते हुए कहा कि विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान शिक्षा और संस्कृति से जुड़े अनेक प्रकार के आयोजन निरंतर करता है। संस्थान के ये कार्य भावी पीढ़ी, बालकों, पूर्व छात्रों तक पहुंचे, इस निमित्त संस्कृति ज्ञान परीक्षा का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष यह परीक्षा ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों तरह से आयोजित की जा रही है।
संस्थान की यह गतिविधियां संस्कृति महोत्सव के माध्यम से विद्यालय स्तर से लेकर अखिल भारतीय स्तर तक पहुंचती हैं। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद के विचार और कर्म युवाओं के प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं एवं युवाओं को ऊर्जा देते रहेंगे। स्वामी जी भी मानते थे कि अगर युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा प्रदान की जाए तो राष्ट्र के विकास को नए आयाम तक ले जाया जा सकता है। स्वामी विवेकानंद के विचार युवाओं के लिए एक गुरु की भांति तथा एक पथप्रदर्शक के रूप में हमेशा उनके साथ रहते हैं।
संस्थान के सचिव अवनीश भटनागर ने अतिथि परिचय कराते हुए एवं विषय की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि सुश्री अलका गौरी विवेकानंद केन्द्र में जीवनव्रती कार्यकर्ता हैं और हरियाणा व पंजाब में द्वि प्रांत संगठक के पद पर कार्यरत हैं। अवनीश भटनागर ने स्वामी विवेकानन्द के ‘‘उत्तिष्ठ जागृत….’’ के भाव को स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘उठो, जागो और जब तक लक्ष्य तक न पहुंच जाओ, तब तक रुकना नहीं।’ यह किसी भी व्यक्ति के जीवन के लिए, समाज और राष्ट्र के जीवन के लिए उसकी प्रगति का सूत्र हो सकता है। वास्तव में यह भारत के उत्तिष्ठ होने की, भारत के गौरव की, भारत की युवा पीढ़ी के मन में गौरव का भाव जाग्रत होने का एक अवसर है। स्वामी विवेकानंद ने कन्याकुमारी में स्थित विवेकानंद शिला स्मारक जहां शिला पर तपस्या करके एक प्रकार से भारतमाता के साक्षात दर्शन किए और आगे की कार्य योजना तय की, उस विवेकानंद शिला स्मारक की स्थापना का भी यह स्वर्ण जयंती वर्ष है।
मुख्य वक्ता अलकागौरी ने कहा कि ‘‘उत्तिष्ठ जाग्रत…..’’ कठोपनिषद् के इन शब्दों को स्वामी विवेकानंद ने उस समय के परिप्रेक्ष्य में रखा। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि अपने उपनिषदों के शाश्वत विचारों को आज की भाषा में जिसे लोग सरलता से समझें, ग्रहण कर पाएं, ऐसे शब्दों में लोगों के सामने रखना होगा। उन्होंने कहा कि समस्याओं के समाधान के लिए उनके मूल अर्थात् जड़ में जाना होगा। मूल में जाना है तो अपने उपनिषदों और वेदों पर ही विश्वास रखना होगा। उस सत्य का अन्वेषण करना पड़ेगा। वह सत्य क्या है, अपने पास ताकत क्या है, उस शक्ति को समझना, अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए उस सत्य का अन्वेषण बहुत आवश्यक है। यह सत्यान्वेषण अपने मूल ग्रंथों का भी करना है। उसमें क्या है यह ढूंढना है, आज उसका उपयोग कैसे कर सकते हैं, यह जीवन और अच्छा करने के लिए इस राष्ट्र का उद्देश्य पूर्ण करने के लिए उसे लगाना पड़ेगा।
उन्होंने पांच ‘स’ का उल्लेख करते हुए कहा कि सत्यान्वेषण, संकल्प, सकारात्मकता, संगठित कार्य, सक्रियता इन सबके माध्यम से भारत को विश्वगुरु बनाया जा सकता है। हम सभी इस राष्ट्र के कल्पतरु की ताकत बढ़ाने वाले हैं। यह राष्ट्र सबको सब कुछ दे सकता है। पूरे विश्व को देने की क्षमता इस राष्ट्र में है, लेकिन ऐसा करना है तो हमें इस राष्ट्र में अपने आपको लगाना पड़ेगा।
अलकागौरी ने स्वामी जी के शब्दों को पढ़ते हुए कहा कि ‘‘मैंने अपना लक्ष्य निर्धारित किया है और अपना संपूर्ण जीवन उसके लिए समर्पित कर दिया है। यदि मैं सफलता प्राप्त नहीं कर पाता तो उसे पूर्ण करने के लिए कोई अन्य आएगा और मुझे संघर्ष करते रहने में ही संतोष प्राप्त होगा।’’ आनंद सफलता प्राप्ति में अर्थात जो मैंने पूर्ण होते हुए देखा, उसमें नहीं है, बल्कि उस लक्ष्य के लिए मैं सतत् कार्यरत हूं। उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जो भी समस्याएं आती हैं, उन समस्याओं के लिए मैं जूझ रहा हूं, आगे जा रहा हूं, इस संघर्ष में निरंतर चलते रहने में ही आनंद है। वही आनंद का अनुभव हम सबको करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमें पाश्चात्य अन्धानुकरण रोकना होगा। यह अन्धानुक