रत्नावली समारोह में पर्यटन एवं होटल मैनेजमेंट विभाग छात्रों ने लगाया देशी खाने का स्टॉल
एनडी हिन्दुस्तान
कुरुक्षेत्र। हरियाणवी संस्कृति को लेकर विश्वविद्यालय प्रांगण में विभिन्न कलाकारों द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रस्तुतियां दी जा रही हो और वहां हरियाणवी खानपान की बात ना हो भला कैसे हो सकता है? इसी बात को पूरा करने के लिए हरियाणवी शुद्ध, सात्विक देशी खाना खिलाने का जिम्मा उठाया है, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पर्यटन एवं होटल मैनेजमेंट विभाग के बैचलर इन होटल मैनेजमेंट के विद्यार्थियों ने जो कंवीनर डॉ. राहुल गर्ग के नेतृत्व में कार्य कर रहे है।
हिसार के गांव कंवारी से लगातार पांच वर्षाे से रत्नावली समारोह देखने के लिए आ रहे नवीन कुमार ने कहा कि रत्नावली के कारण ही हरियाणी वास्तविक संस्कृति बची हुई है, हम अब रत्नावली में आते हैं तो महसूस होता कि हम मूल हरियाणी हैं।
डॉ संदीप धनखड़, डॉ. मनजीत कुमार संयुक्त रूप से बताया कि हरियाणवी शुद्ध, सात्विक को लेकर लोगों में बड़ा उत्साह है और रत्नावली के पहले और दूसरे दिन विद्यार्थियों ने अच्छे पैसों का खाना खाया है जो तीसरे अधिक लोगों के खाना खाने का अनुमान है। उन्होने कहा कि विभाग के विद्यार्थियों की अथाह मेहनत का ही परिणाम ही की देश-प्रदेश से आये हुए लोगों को हरियाणवी शुद्ध, सात्विक खाना बेहद पंसद आ रहा है। पर्यटन एवं होटल मैनेजमेंट विभाग के छात्रों जिनमें सन्नी, रोहित, केशव, अर्जन, आदित्य, जतिन, सुभल, विनय, रितेश, साहिल, लोकेश, विद्यार्थीगण अपने अनुभवी प्राध्यापकों के साथ लोगों में हरियाणवी खान-पान की लालसा, जिज्ञासा का श्री गणेश कर रहे है।
इस अवसर डॉ. गर्ग ने बताया इस बार हरियाणवी खाने में नमकीन लस्सी, मीठी लस्सी, चटपटी चना बाकली, दही भल्ले, स्पेशल दाल मखनी, स्वादिष्ट बाजरा, रागी इडली सांभार, चोको चूनमा, कसूता चूरमा, शाही टुकड़ा जामुन और दोनों को मिलाकर एक नई स्वादिष्ट लस्सी सम्मिलित है। इसके साथ-साथ अलग से गोल गप्पों का विशेष प्रबंध किया गया है। स्टॉल पर हरियाणवी शुद्ध, सात्विक खाना खाना आगंतुकों को अपनी ओर अधिक आकर्षित कर रहा है। रत्नावली की पहुंच विभिन्न मीडिया के द्वारा लोगों तक पहुंच रही है और इसी पहुंच में हरियाणवी खान-पान की याद भी पहुंच रही है। हरियाणवी शुद्ध, सात्विक खाने की विशेष कसूता चूरमा के दर्शकों को खास पसंद आ रहा है। इस अवसर गुरुग्राम के सेक्टर-9 से पहुंचे डॉ. सुरेंद्र कुमार ने कहा कि हर वर्ष वे यहां रत्नावली में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेने आते है साथ में अपने हरियाणवी खाने का भी आनंद उठाते है। वे कहते कि प्रदेश की पहचान ही हमारा उच्च खान-पान ही रहा है। रत्नावली समारोह का आंनद लेने करनाल से पहुंचे डॉ. प्रदीप जाखड़ ने बताया कि जब प्रदेश के खान-पान की बात आती है तो सब खाने के बाद अगर आपने चूरमा नहीं खाया तो आपका स्वाद अधूरा ही रहेगा इसलिए चूरमा इस कमी को पूरा करता है खासकर चक्कर वाला चुरमा।
हिसार के गांव कंवारी से लगातार पांच वर्षाे से रत्नावली समारोह देखने के लिए आ रहे नवीन कुमार ने कहा कि रत्नावली के कारण ही हरियाणी वास्तविक संस्कृति बची हुई है, हम अब रत्नावली में आते हैं तो महसूस होता कि हम मूल हरियाणी हैं।
हरियाणवी हास्य नाटिकाओं के माध्यम से भ्रष्टाचार पर कसे व्यंग्य
रत्नावली के दूसरे दिन हरियाणवी हास्य नाटिका प्रतियोगिता का आयोजन कुवि के ओपन एयर थियेटर में किया गया । हास्य नाटिकाओं की टीमों में 20 से अधिक टीमों ने अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी। इस अवसर पर टीमों में समाज में फैल रहे भ्रष्टाचार को अपना मुख्य बिंदु बनाया। हरियाणवी बोली एवं भाषा का सुंदर स्वरूप हास्य नाटिकाओं में प्रस्तुत किया गया। इनमें से जहां कुछ नाटिकाएं बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं पर आधारित थी वहीं पर कुछ नाटिकाएं किसानी संस्कृति पर आधारित थी। नाटिकाओं के माध्यम से गरीब किसान की दुर्दशा, फसल की बबार्दी विषयों को प्रस्तुत किया गया।
इस मौके पर प्रस्तुत नाटिकाओं में सामाजिक समस्याओं को विशेष रूप से चिन्हित कर कुरीतियों को उजागर किया गया। गांव में बढ़ती हुई बेरोजगारों की फौज, विदेशो में पलायन करते युवा, अविवाहिम समस्या, नशा जैसे ज्वलंत मुद्दों को हरियाणवी बानगी के माध्यम से प्रस्तुत किया। ओपन एयर थियेटर खचाखच भरा हुआ था। हरियाणवी पंचों के माध्यम से दर्शकों को कलाकारों ने खूब लोटपोट किया। ओपन एयर थियेटर में प्रस्तुत की गई नाटिकाएं दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ गई।