आयोजक एक बार गीता जयंती में से ब्रह्मसरोवर निकाल कर देखें,हकीकत आंखों से सामने आ जाएगी कहां खड़े हो
मनोरंजन और व्यंजन का नाम गीता महोत्सव नहीं है,काश सबक लेते नंदा जी के विजन से
आधुनिक कुरुक्षेत्र को जो आज मुकाम हासिल है,उसमें भारत रत्न नंदाजी का अतुलनीय योगदान
पूर्व प्रधानमंत्री नंदाजी के केडीबी चेयरमैन होते हुए गीता जयंती महोत्सव की हुई थी 1989 में शुरुआत
नंदाजी ने पहले आयोजन नहीं पहले ग्राउंड तैयार किया था,पहले कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड बनवाया,फिर कुरुक्षेत्र को लोकसभा सीट और फिर कराया ब्रह्मसरोवर का कायाकल्प,इसके बाद हुई थी गीता जयंती की शुरुआत
2016 से गीता जयंती महोत्सव को अंतरराष्ट्रीय आयोजन के रुप मनाया जाता है,मगर ट्रैफिक मैनेजमेंट से लेकर,टायलेट ब्लाक,और पार्किंग जोन तक पूरा ढांचा अस्तव्यस्त
साभारः एबीपी न्यूज लाइव पर वरिष्ठ पत्रकार राजेश शांडिल्य का लेख
एनडी हिन्दुस्तान नेटवर्क
कुरुक्षेत्र। गीता का गूढ़ वाक्य है क्या लेकर आए थे क्या लेकर जाओगे…यह वाक्य दरकिनार है और अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव आयोजन से ज्यादा लिप्सा के साथ वे भी तैयार हैं। पहली बार होगा जब अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के लिए प्राधिकरण अस्तित्व में आया है। अब अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव की गतिविधियां बोर्ड चलाए या प्राधिकरण? जरूरी है,उत्सव व्यवस्थित,मर्यादित और गरिमा के अनुकूल हो। गीता जयंती की शुरुआत इसी उद्देश्य से हुई थी। उद्देश्य फलीभूत हो, इसका इंतजार बरसों से हो रहा है। विशेषकर गीता के प्रति आस्था रखने वालों को। मगर इनका सपना तब टूटता है, जब व्यवस्था से जुड़ी शक्तियां गीता से पहले खुद की ब्रांडिंग में तल्लीन दिखती हैं। खेल आयोजन से संबंधित ठेके देने और लेने का शुरु हो जाता है,पद हासिल करने और दिलाने के प्रति लार टपकती है।
गीता महोत्सव के पुख्ता प्रबंधों से ज्यादा रुचि निजी एजेंडे के इर्द गिर्द घूमती है।जब गीता जयंती महोत्सव की आवश्यकताओं को पूरा करने से ज्यादा फोकस इन बातों पर होगा तो परिणाम ढाक के तीन पात जैसा होना लाजिमी ही बनता है। एक दशक से ज्यादा वक्त से गीता जयंती महोत्सव की कमान उन हाथों में है,जिनका सबसे ज्यादा फोकस धर्म संस्कृति और गीता पर है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कई विदेश यात्राओं के दौरान संबंधित देशों के राष्ट्राध्यक्षों को गीता जी की अनमोल प्रति ही भेंट की थी। और दुनिया में इससे बड़ी ब्रांडिंग गीता की और कोई हो नहीं सकती थी।
आयोजकों ने साल 2016 में गीता जयंती महोत्सव को अंतरराष्ट्रीय आयोजन बनाने की पहल की थी। तब से अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के बैनर तले इस महोत्सव की रुपरेखा तैयार होती है,मगर अंतरराष्ट्रीय मानदंडों पर व्यवस्था गौण रहती है। व्यवस्थाओं पर उठे सवाल के कारण मुख्य आयोजक कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड हर बार टारगेट पर रहता है। राज्य में तीसरी बार भाजपा सरकार ने जब 13 नवंबर से शीतकालीन सत्र की शुरुआत की तो पहले ही दिन एक बार फिर विधानसभा के पटल पर गीता जयंती महोत्सव की व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए।इसके व्यवसायीकरण का मुद्दा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष अशोक अरोड़ा ने उठाया।हालांकि इसके पीछे भाजपा से जुड़े एक व्यक्ति पर –शक जताया जा रहा है। कहा जा रहा है,उन्होंने विरोधी पार्टी को यह मुद्दा उठाने के लिए तथ्य दिए थे।
सवाल यह उठ रहा है कि गीता जयंती महोत्सव की शुरुआत के कदम 40 वर्षों की ओर बढ़ रहे हैं,मगर यह आयोजन अब तक उस स्तर का क्यों नहीं बना,इस पर सवाल भी खड़े होते हैं। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव प्राधिकरण के उपाध्यक्ष गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद ने भी इस बात पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि कुरुक्षेत्र को आज भी वह स्थान नहीं मिल रहा,जो मथुरा-वृंदावन,वैष्णो देवी,बद्रीनाथ जैसे अन्य कई प्रमुख धर्मस्थलों को मिला है। अपनी इस चिंता के पीछे उन्होंने कारण भी स्पष्ट किया है। उनका कहना है कि जब भी वह बाहर दूसरे राज्यों या देशों में धार्मिक कार्यक्रमों में भागीदार बनते हैं तो अक्सर श्रद्धालुओं से पूछ लेते हैं कि आपमें से कितने लोग कुरुक्षेत्र दर्शन के लिए गए हैं,इनमें से मुश्किल से 10 से 15 लोग हाथ उठाते हैं।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 से स्वामी ज्ञानानंद महाराज गीता जयंती महोत्सव में बतौर मार्गदर्शक भूमिका निभा रहे हैं,जबकि 2016 में पहले अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव की हाईपावर कमेटी के प्रमुख रहे। उनके नेतृत्व में मारिशस,इंग्लैंड,कनाडा,आस्ट्रेलिया और श्रीलंका में भी अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव जैसे आयोजन हो चुके हैं। राज्य सरकार ने हाल ही में गीता जयंती महोत्सव के आयोजन को लेकर एक प्राधिकरण बनाया है। इसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री हैं और उपाध्यक्ष स्वामी ज्ञानानंद महाराज।
अब जैसी चिंता स्वामी जी को कुरुक्षेत्र को लेकर है,उसी तरह एक चिंतन का विषय अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव को लेकर भी बनता है। सदियों से कुरुक्षेत्र का सूर्यग्रहण मेला विश्वभर में विख्यात रहा। यहां इस मेले में भगवान श्रीकृष्ण, गुरुनानक देव और मुगल शासक अकबर, अहिल्याबाई होल्कर और मराठा पेशवाओं सहित कई महान दार्शनिकों, रीवा, दरभंगा, कश्मीर, पटियाला,नाभा,जींद जैसी बड़ी रियासतों के राजा महाराजाओं के आगमन और इनके द्वारा घाटों, मंदिरों और भवनों के निर्माण के पुख्ता उल्लेख मिलते हैं। यह सब घटनाक्रम कुरुक्षेत्र के महत्व को दर्शाते हैं। कुरुक्षेत्र के सूर्यग्रहण मेले का यह महत्व तब भी था, जब ना प्रिंट मीडिया था,ना इलेक्ट्रानिक मीडिया और ना सोशल मीडिया जैसे प्रचार प्रसार के तंत्र उपलब्ध होते थे।
2003 के एक सूर्यग्रहण मेले में रिकार्ड भीड़ उमड़ी थी। देश के एक अग्रणी अखबार के लिए उस समय मेला कवरेज के दौरान एक विदेशी नागरिक ने पूछा था कि इतने लोगों को कैसे आमंत्रित किया जाता है। उस विदेशी नागरिक के लिए कौतुहल का विषय केंद्र भीड़ से ज्यादा यह था कि यह आते किसके बुलावे पर हैं,क्योंकि देश के विभिन्न राज्यों के अलावा इस मेले में नेपाल और भूटान के मूल निवासी श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं,वह भी चुनिंदा को छोड़कर अधिकांश बिना किसी सरकारी और गैर सरकारी निमंत्रण पर।
यह स्वरूप पिछले 35 वर्षों में करोड़ों खर्च करके भी गीता जयंती का क्यों नहीं बन रहा,यह यक्ष प्रश्न आयोजकों के सामने है। अब कोई मार्ग दर्शक बने या उपाध्यक्ष यह व्यवस्था का हिस्सा हो सकता है,लेकिन यहां बड़ा सवाल विजन का है और मजबूत उदाहरण सूर्यग्रहण मेले के रुप में आयोजकों के समक्ष है। तपस्या में कमी है या ध्यान किधर है ? इसका उत्तर अनजान बनकर नहीं,बल्कि आंखें खोलकर जानने की आवश्यकता है। सुंदर सजावट को गीता महोत्सव नहीं कहा जा सकता, किसी क्राफ्ट बाजार,सांस्कृतिक कार्यक्रम और भीड़ के पैमाने को भी सफल गीता महोत्सव नहीं कहा जा सकता। गीता महोत्सव का अस्तित्व गीता जयंती से है और जयंती का अस्तित्व गीता जी बलबूते है।गीता महोत्सव का महत्व मनोरंजन और व्यंजन से ऊपर है,जब तक इस आयोजन में आने की इच्छा श्रद्धालुओं में जागृत नहीं होगी।
महोत्सव के विविध रंगों के आवरण में गीता जी अंतरध्यान दिखती हैं। सच में अगर कुरुक्षेत्र तीर्थ और गीता जयंती उत्सव को सूर्यग्रहण मेले की तरह बुलंद करना है तो भारत की राजनीतिक में राज ऋषि कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारत रत्न गुलजारी लाल नंदा के विजन से काम करना होगा। उन्होंने कुरुक्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए पहले ग्राउंड तैयार किया था,आधुनिक कुरुक्षेत्र को जो मुकाम हासिल है,उसमें नंदाजी के योगदान अतुलनीय है। उन्होंने हरियाणा के स्वतंत्र राज्य बनने के बाद 1968 में पहली शुरुआत महाभारत कालीन 48 कोस कुरुक्षेत्र यानी वर्तमान के (पानीपत,करनाल,कुरुक्षेत्र,कैथल और जींद जिला में स्थित) तीर्थों के जीर्णोद्धार और संरक्षण के लिए कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड (केडीबी)के गठन कराने से की थी। इसी के साथ कैथल लोकसभा सीट का नाम बदलकर कुरुक्षेत्र संसदीय सीट कराया। सूर्यग्रहण मेले पर मुगल शासक अकबर के साथ आए उनके दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने कुरुक्षेत्र के जिस ब्रह्मसरोवर को लघु समुंदर कहा था,उस उपेक्षित ब्रह्मसरोवर का कायाकल्प पूर्व प्रधानमंत्री नंदा जी ने कराया। दशकों से इसी भव्य ब्रह्मसरोवर पर गीता जयंती महोत्सव के रंग सबके सामने होते हैं। इसमें से अगर ब्रह्मसरोवर निकाल लिया जाए तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि गीता महोत्सव का स्वरुप कैसा होगा।
नंदाजी को आजीवन कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया था,मगर इस बीच उनके परिवार या रिश्तेदार की बोर्ड में किसी प्रकार की भागीदार नहीं रही और उन्होंने स्वयं स्वास्थ्य कारणों से 90 के दशक में इस्तीफे की पेशकश तत्कालीन हरियाणा सरकार से की थी। उनके बाद हरियाणा के गवर्नर ही बोर्ड के चेयरमैन और सीएम डिप्टी चेयरमैन बनने की परंपरा शुरु थी। मगर कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड का चेयरमैन पद छोड़ने से पहले वह एक ऐसा महोत्सव देकर गए जो आज अंतरराष्ट्रीय का दर्जा हासिल कर चुका है। पहली बार वर्ष 1989 में केडीबी के चेयरमैन रहते हुए उनके कार्यकाल में ही गीता जयंती महोत्सव की शुरुआत हुई थी। 1995 के बाद इस उत्सव की ब्रांडिंग में गीता जयंती-कुरुक्षेत्र उत्सव नाम जुड़ा था। यह उनकी तपस्या का परिणाम है कि जिला से प्रदेश,राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आयोजन बनने तक का सफर गीता महोत्सव ने तय किया।मगर भारत रत्न नंदाजी द्वारा दिया गया मूल नाम मिटा दिया गया और गीता जयंती से अब इस उत्सव का नाम गीता महोत्सव हो चुका है। काश, गीता जयंती के बाद 1992 में शुरु हुए ताज महोत्सव आगरा से आयोजकों ने सबक लिया होता तो आज जो कहा जा रहा है,वह कहने की नौबत नहीं आती।वैसे प्राधिकरण के उपाध्यक्ष ने जो चिंता जताई है,उसका हल खोजकर दूर किया जा सकता है।वरना नौ दिन चले ढाई कोस का प्लेटफार्म तैयार है।