Monday, November 25, 2024
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जलता हुआ दीपक एक व्यक्ति के निजी संघर्ष की महत्ता को भी अभिव्यक्त करता है – डा. श्रीप्रकाश मिश्र

by Newz Dex
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दीपोत्सव के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा सद्भावना संवाद कार्यक्रम आयोजित

एनडी हिंदुस्तान

कुरुक्षेत्र – भारतीय दर्शन में दीपक देह का प्रतिनिधित्व करता है। दीप का विधान ऋग्वेद में मिलता है। दीपक देह है, तेल उसका जीवन और बाती उसकी सांस। जलता हुआ दीपक यानी जीवित मनुष्य। इस मान्यता को हमारे साहित्य, कला और लोक-जीवन में प्रमुख स्थान मिला है। दीपावली के जलते हुए दीपक हमारी आंतरिक जीवंतता को व्यक्त करते हैं। दीपक की झूमती-मदमाती लौ का स्वरूप हमारे द्वारा परिकल्पित आत्मा के स्वरूप जैसा है। इस रूप में ये दीपक आत्मा के आनंद को अभिव्यक्त करते हैं। यह विचार मातृभूमि मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने दीपोत्सव के उपलक्ष्य में    मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित सद्भावना संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किये।  कार्यक्रम का शुभारम्भ दीपों के प्रज्ज्वलन से हुआ। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के बच्चों ने प्रदूषण मुक्त दीपावली मनाई। बच्चों ने दीपों से सम्पूर्ण आश्रम परिसर को सजाया।
 डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा दीपावली उत्सव भी है और पर्व भी है। उत्सव का संबंध भौतिक आमोद से है। पर्व का संबंध उसके भावनात्मक पक्ष से है, जिसे हम आध्यात्मिक स्पर्श लिया हुआ कह सकते हैं। इसमें हमें नैतिकता और आंतरिकता का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। शायद यही वह मुख्य कारण है, जिसने इसे इस देश का प्रमुख पर्व बना दिया है। दीपावली ही नहीं, बल्कि हमारे यहां की कोई भी पूजा दीपक के बिना संपन्न नहीं होती। पूजा में दीपक तो आरती में भी दीपक। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह पवित्र प्रकाश ही नहीं देता है, बल्कि यह देव के समक्ष आत्मा के उत्सर्ग के भाव को भी अभिव्यक्त करता है।जलता हुआ दीपक एक व्यक्ति के निजी संघर्ष की महत्ता को भी अभिव्यक्त करता है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा दीपक की ज्योति का  प्रकाश हमारे अंतर्मन को अज्ञानता के अंधकार से दीपावली ही नहीं, बल्कि हमारे यहां की कोई भी पूजा दीपक के बिना संपन्न नहीं होती। पूजा में दीपक तो आरती में भी दीपक। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह पवित्र प्रकाश ही नहीं देता है, बल्कि यह देव के समक्ष आत्मा के उत्सर्ग के भाव को भी अभिव्यक्त करता है। इससे बड़ा समर्पण भला और क्या हो सकता है। दीपक के अर्थ का विस्तार यहीं तक सीमित नहीं है। इसके साथ हमारा क्रियापरक संबंध भी है। इसकी ज्योति की पीली आभा हमारी आत्मा को उजास से भरकर एक अलग ही प्रकार की अनुभूति कराती है। यह अनुभूति ज्ञानपरक भी होती है और पारलौकिक भी। यहां ज्योति का यह प्रकाश हमारे अंतर्मन को अज्ञानता के अंधकार से मुक्त करता है। हमें विवेकशील बनाता है। कार्यक्रम में बच्चों ने रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी।  कार्यक्रम में रामपाल आर्य, देव अनेजा, शुभकारण कम्बोज, सत्यवान कौशिक, अमन खन्ना ,सुरभि, रीता कन्यान सहित अनेक सामाजिक धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।

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