साभार एबीपी न्यूज़
एनडी हिन्दुस्तान
जनवरी 2024 में समाजवादी पार्टी के महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य और शिवपाल सिंह यादव ने 1990 के जख्मों को कुरेदा था. इन दोनों नेताओं ने राम भक्तों पर हुई उस फायरिंग को सही ठहराया था. हालांकि, करीब 11 साल पहले खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव इस घटना पर गहरा दुःख जता चुके थे. अब स्वामी प्रसाद मौर्य और शिवपाल सिंह यादव के करीब 11 माह पुराने इस बयान पर चर्चा करने की नौबत इसलिए आई है, क्योंकि 26 नवंबर को जब भारत में संविधान दिवस मनाया गया, तब संभल की घटना पर दुख जताते हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का एक सियासी बयान सामने आया.
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि संभल में जो हुआ वह बेहद दुखद है. वहीं पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने भी इस घटना पर अफसोस जाहिर करते हुए राजनीतिक बयान दिया. उन्होंने अपने राजनीतिक दल समाजवादी पार्टी को सच्ची संविधानवादी पार्टी करार दिया. इसी के साथ उन्होंने अपने विरोधी सत्तारूढ़ दल भाजपा को भी लपेटे में लेते हुए टिप्पणी की.
यादव ने कहा कि भाजपा को संविधान दिवस का उत्सव मनाने का कोई हक नहीं, क्योंकि भाजपा सरकार ने संभल में जिस तरह का काम किया है, उससे कई लोगों की जान चली गई, न्याय नहीं मिल रहा. समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने आगे कहा कि संविधान का सच्चा उत्सव तभी है, जब कोई उसके रास्ते पर चले. सियासी दल एक दूसरे पर इस तरह के दोषारोपण करते हैं, वो राजनीतिक दलों के दाव-पेंच है, मगर सवाल घटनाक्रम का है. किसी राजनीतिक दल विशेष का नहीं.
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से एक सवाल तो बनता है कि जब कारसेवकों पर गोली चली थी, वह संविधान की रक्षा के लिए थी तो संभल में पेश आया घटनाक्रम क्या था? संभल में शाही जामा मस्जिद के सर्वे के लिए पहुंची एजेंसी क्या न्यायालय के आदेश पर नहीं गई थी? क्या उस समय शासन-प्रशासन की जो व्यवस्था थी, वह व्यक्ति विशेष के लिए और असंवैधानिक थी?
जब आपकी संविधानवादी पार्टी के दो दिग्गज नेता में एक आपके चाचाश्री माननीय शिवपाल यादव जी और दूसरे पार्टी माननीय स्वामी प्रसाद मौर्य ने जनवरी 2024 में एक सप्ताह के भीतर रामभक्तों पर चलाई गई गोली को सही बताया था. इन्होंने तत्कालीन संविधानवादी पार्टी (अखिलेश जी के कहेनुसार) सपा सीएम मुलायम सिंह यादव की सरकार का बचाव करते हुए कहा था कि तब जो कुछ हुआ संविधान की रक्षा के खातिर किया गया.
उस समय गोली चलाकर संविधान की रक्षा की गई थी, रामभक्तो को मौर्य ने अराजक कहा था
उस समय कारसेवकों पर गोली चला कर संविधान की रक्षा की गई थी, क्योंकि कोर्ट के आदेश का पालन जरुरी थी. प्रशासन की यथास्थिति बनाए रखने की जिम्मेदारी थी और अखिलेश यादव ने यहां तक कहा था कि इसलिए यह कार्रवाई होनी चाहिए थी. यहां तक की समाजवादी पार्टी के नेता मौर्य ने तो कारसेवकों को अराजतक तत्व कहने में भी गुरेज नहीं की थी.
मुलायम बोले थे कि मंदिर मस्जिद और देश की एकता के लिए चलाई गई थी गोली
देश 1990 के उस घटनाक्रम को बुरी याद के रूप में कभी नहीं भूलेगा. तब अयोध्या के हनुमान गढ़ी जा रहे कारसेवकों पर तत्कालीन समाजवादी सरकार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के आदेश पर गोली चलाई गई थी, क्योंकि 30 अक्टूबर 1990 को संविधानवादी पार्टी की सरकार के आदेश पर यह फायरिंग हुई थी. इस फायरिंग में पांच कारसेवकों की मौत हुई थी. हालांकि, उस दौरान अयोध्या में मौजूद कारसेवक संख्या अधिक मानते हैं.
आज मुलायम सिंह यादव दुनिया में नहीं हैं, लेकिन करीब 12 साल पहले वे भी इस घटना पर दुःख व्यक्त करते हुए यह कह चुके हैं कि उस समय गोली चलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि उनके सामने मंदिर मस्जिद और देश की एकता का सवाल था.
अखिलेश बाबू को यहां कार्रवाई में नजर आ रहा असंवैधानिक पेंच
काश! अखिलेश यादव संभल की घटना पर पीड़ित परिवारों को संबल देते हुए संभल जाते, लेकिन उन्हें कोर्ट के आदेश के बावजूद पुलिस प्रशासन की कार्रवाई में असंवैधानिक पेंच नजर रहा है. वह भी तब जबकि संभल हिंसा में जिन चार लोगों की मृत्यु हुई थी, उसकी रिपोर्ट में देसी तमंचों की गोली से मौत का तथ्य सामने आया है. उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी एके जैन इस घटनाक्रम को प्रायोजित मान रहे हैं, उनका कहना है कि इस तरह की घटना संभल में पहले कभी नहीं हुई थी. उन्होंने उपद्रवियों के देसी तमंचों से की गई फायरिंग, पथराव के लिए पहले से जमा किए पत्थरों और कानून व्यवस्था को प्रभावित करने की बात कही है.