एनडी हिन्दुस्तान
कुरुक्षेत्र। विक्रमी संवत 2081 की समाप्ति एवं विक्रमी संवत 2082 के शुभारम्भ की पूर्व संध्या वह मातृभूमि सेवा मिशन के तत्त्वाधान मे आयोजित द्विदिवसीय कसर्यक्रम के शुभारम्भ पर श्रीमदभगवदगीता जन्मस्थली ज्योतिसर में लोक मंगल के निमित्त वैदिक यज्ञ एवं सनातन धर्म एवं संस्कृति में पर्व एवं परम्पराओ का वैश्विक महत्व पर विचार गोष्ठी समन्न।
कुरुक्षेत्र संस्कृत वेद विद्यालय एवं मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने संयुक्त रूप एक सस्वर वैदिक मंत्रोच्चारण कर लोक मंगल के निमित्त वैदिक यज्ञ मे आहुति डाली। इस अवसर पर ज्योतिसर तीर्थ का सम्पूर्ण वातावरण शंख ध्वनि, वैदिक मंत्रोच्चारण एवं सनातन उद्घोष से गुंजायमान हो गया।
29 मार्च 2025 कुरुक्षेत्र
धर्म एवं संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा समान होती है। संस्कृति से ही देश, जाति या समुदाय के उन समस्त संस्कारों का पता चलता है जिनके आधार पर वह अपने आदर्शों, जीवन मूल्यों आदि का निर्धारण करता है।भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम और समृद्ध संस्कृतियों में से एक है। सनातन धर्म एवं संस्कृति आध्यात्मिकता, विविधता, सहिष्णुता और परंपराओं का अनूठा संगम है, जो मानव जीवन को संतुलित और समृद्ध बनाती है।सनातन धर्म एवं संस्कृत्ति विश्व की सबसे प्राचीन धर्म एवं संस्कृति है। यह विचार विक्रमी संवत 2081 की समाप्ति एवं विक्रमी संवत 2082 के शुभारम्भ की पूर्व संध्या पर मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा तत्वाधान द्विदिवसीय कार्यक्रम के शुभारम्भ अवसर पर श्रीमदभगवदगीता जन्मस्थली ज्योतिसर में लोक मंगल के निमित्त वैदिक यज्ञ एवं सनातन धर्म एवं संस्कृति में पर्व एवं परम्पराओ का वैश्विक महत्व विषय पर मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित एक विचार गोष्ठी में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ वैदिक ब्राम्हचारियों द्वारा ज्योतिसर तीर्थ पूजन एवं सर्वदेव उपासना से हुआ। कुरुक्षेत्र संस्कृत वेद विद्यालय एवं मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने संयुक्त रूप एक सस्वर वैदिक मंत्रोच्चारण कर लोक मंगल के निमित्त वैदिक यज्ञ मे आहुति डाली। इस अवसर पर ज्योतिसर तीर्थ का सम्पूर्ण वातावरण शंख ध्वनि, वैदिक मंत्रोच्चारण एवं सनातन उद्घोष से गुंजायमान हो गया। भारत के अनेक प्रांतो के श्रद्धालु इस मंगल क्षण के साक्षी बने। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा सनातन धर्म की परंपराएं, त्योहार, रीति-रिवाज और संस्कार हमारे जीवन को समृद्ध बनाते हैं। हमारे सामाजिक और पारिवारिक जीवन में सामंजस्य एवं खुशियाँ लाते हैं। अपनी जड़ों और संस्कृति से जुड़े रहना और समय-समय पर अपने आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्म व्याख्या करना हमारे जीवन को सजीव और ऊर्जावान बनाता है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता कुरुक्षेत्र विश्वविद्यलय के संस्कृत विभाग के पूर्वाध्यक्ष डा. राजेश्वर प्रसाद मिश्र ने सनातन धर्म एवं संस्कृति में पर्व एवं परंपराओ का वैश्विक महत्व बताते हुए कहा भारत का इतिहास और संस्कृति प्रवाहशील है और यह मानव सभ्यता की शुरूआत तक जाता है।सनातन धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे प्राचीन धर्म है। परम्परगत वैदिक धर्म जिसमें परमात्मा को साकार और निराकार दोनों रूपों में पूजा जाता है। ये वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय, और दर्शन समेटे हुए है।भारत का इतिहास और संस्कृति प्रवाहशील है और यह मानव सभ्यता की शुरूआत तक जाता है।
जब हम सनातन धर्म के मूल विचारों और उसके आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं को अपने जीवन में शामिल करते हैं, तो हम संतुलित और पूर्ण जीवन की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। भगवद गीता, उपनिषद, वेद आदि धार्मिक ग्रंथों में वर्णित ज्ञान और आदर्श हमें आत्मचिंतन और आत्मनियंत्रण के माध्यम से आत्म विकास के मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
डा. राजेश्वर प्रसाद मिश्र ने विक्रमी संवत के सन्दर्भ एवं महत्व पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहाभारत, जिसे ‘अनेकता में एकता’ का प्रतीक माना जाता है, उसकी आत्मा उसकी समृद्ध और विविध संस्कृति में बसती है। यह मात्र परंपराओं, रीति-रिवाजों और संस्कारों का संगम नहीं, बल्कि जीवन का एक अनमोल दर्शन है, जो हमें आत्मीयता, सह-अस्तित्व और प्रेम का पाठ पढ़ाता है। भारतीय संस्कृति न केवल प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है, बल्कि यह समय के साथ खुद को ढालने और विकसित करने की अद्वितीय क्षमता भी रखती है। यह संस्कृति विश्व को शांति, सहिष्णुता और आध्यात्मिकता का संदेश देती है। प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य आचार्य सतीश कौशिक ने बतौर अति विशिष्ट अतिथि उद्बोधन दिया। आभार ज्ञापन कार्यक्रम के संयोजक आचार्य नरेश ने किया।इस अवसर पर लोक मंगल के निमित्त आयोजित यज्ञ में वीरेंद्र गोलन मुख्य यज्ञमान रहे। कार्यक्रम का संचालन समाजसेवी विजय सैनी ने किया। कार्यक्रम में सुरेंद्र सिंह, देशराज शर्मा, आचार्य संजय, सुखदेव, बल्लाराम, आचार्य जोगिंदर, एडवोकेट हनुमान दास, धर्मपाल सैनी सहित अनेक धार्मिक, सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि एवं गणमान्य जन उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन शांति पाठ से हुआ।