Wednesday, April 16, 2025
Home Chandigarh सप्त सिंधु क्षेत्र का इतिहास संघर्ष का प्रतीक रहा है: डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

सप्त सिंधु क्षेत्र का इतिहास संघर्ष का प्रतीक रहा है: डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

by Newz Dex
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एनडी हिन्दुस्तान

पंचकूला-चंडीगढ़। हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी एवं पंजाबी समाज सभ्याचारिक मंच, पंचकूला के संयुक्त तत्वावधान में पी.डब्ल्यू.डी. ऑडिटोरियम, सेक्टर-1, पंचकूला में बैसाखी के सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम के आरम्भ में मुख्यमंत्री हरियाणा के ओ.एस.डी. श्री भारत भूषण भारती, मुख्य अतिथि, हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति के कार्यकारी उपाध्यक्ष, डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री, अध्यक्ष, विशिष्ट अतिथि डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी, निदेशक, हिंदी एवं हरियाणवी प्रकोष्ठ, पूर्व सांसद श्री अविनाश राय खन्ना, श्री एन.आर. मुंजाल व श्रीमती रंजीता मेहता ने माँ हिंगलाज की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलित कर तथा माँ हिंगलाज की आरती गाकर सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत की।
पंजाबी समाज सभ्याचारिक मंच के अध्यक्ष श्री आर.पी. मल्होत्रा ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए मंच की गतिविधियों से अवगत करवाया।
इस अवसर पर अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष, डॉ. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि सप्त सिंधु क्षेत्र का इतिहास संघर्ष का इतिहास रहा है इसी संघर्ष में से खालसा पंथ की स्थापना हुई। सन् 1100 के आसपास अफगानिस्तान में खत्री साम्राज्य था लेकिन बाद में धीरे-धीरे अन्य लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया लेकिन खत्री समाज ने संघर्ष किया और वह धीरे-धीरे पंजाब की तरफ आ गए। जलियांवाला बाग हत्याकांड भी बैसाखी के दिन किया गया था। पाकिस्तान में सबसे बड़ा तीर्थ स्थान माँ हिंगलाज देवी का माना जाता है। उन्होंने बताया कि यहाँ पर माता सती के सिर का ऊपरी हिस्सा हिंगलाज में गिरा था, जिस कारण यह स्थान एक सिद्ध पीठ के रूप में उभर कर सामने आया।
एक जर्मन स्कॉलर ने बहुत ही अच्छी पुस्तक हिंगलाज देवी के ऊपर लिखी है। उनका मानना है कि खत्री समाज के लोग ही सबसे ज्यादा जाते हैं हिंगलाज देवी के मंदिर में। सप्त सिंधु क्षेत्र के पश्तूनों, बलोचों, खत्रियों और सिन्धियों ने मजहब तो बदल लिया लेकिन किसी न किसी रूप में या फिर किसी न किसी अंश रूप में अपनी सनातन परम्पराओं को भी पकड़े रखा। इसलिए देसी मुसलमान अभी भी हिंगलाज देवी मंदिर को नानी का घर कहते हैं। हिंगलाज माँ जहाँ पर विराजमान हैं वह एरिया मरुस्थल एरिया है तथा पैदल ही यात्रा करके जाना पड़ता है। चैत्र मास में नवरात्रों पर तथा बैसाख माह में गुरु गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी जिस कारण यहाँ पर इन दो महीनें में मेलों जैसा ही माहौल रहता है। हिंगलाज की पहाड़ियों को 84 का आंकड़ा भी माना जाता है क्योंकि माना जाता है कि यहाँ पर 84 पहाड़ियों की शृंखला है। इस तीर्थ स्थल पर हिंगलाज देवी के मंदिर के अतिरिक्त शंकर का मन्दिर, गणेश, काली माता मंदिर भी है।
बैसाखी के इसी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करने के लिए हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी तथा पंजाबी समाज सभ्याचारिक मंच द्वारा आज का यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इसके अलावा मोहिनी सचदेवा, विजय सचदेवा, वीना अरोड़ा, सुरेन्द्र अरोड़ा, अनीता, अविनाश मेहता, रेखा, के.के. सरीन, वीना कपूर, दीपा अरोड़ा, रेणु अब्बी, शशि चंदा, सुनीता मुंजाल, उषा कपूर, आभा शाहनी, नीलम धवन, विरेन्द्र गग्नेजा आदि ने बैसाखी का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष के ऊपर अपनी-अपनी प्रस्तुतियों के अलावा भांगड़ा और गिद्दा भी प्रस्तुत किए गए जो कि हमारी सांस्कृतिक समृद्धि के प्रतीक हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के समापन सत्र में डॉ. विजेन्द्र कुमार, संयोजक ने समारोह में पधारे सभी अतिथियों/श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। सांस्कृतिक कार्यक्रम का मंच संचालन राजेश मल्होत्रा ने किया ।

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