Monday, November 25, 2024
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सकट गणेश चौथ व्रत ऋद्धि सिद्धि व सुख समृद्धि को देता है : डॉ. सुरेश मिश्रा

by Newz Dex
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न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र,30 जनवरी। कॉस्मिक एस्ट्रो के डॉयरेक्टर और श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली  कुरुक्षेत्र के अध्यक्ष डॉ . सुरेश मिश्रा ने बताया कि माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ‘ सकट चौथ ’ कहा जाता है। 31 जनवरी 2021  को माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि ,पूर्वाफ़ाल्गुनी नक्षत्र ,शोभन  योग व चन्द्रमा सिंह राशि में ‘ सकट गणेश चौथ ’ व्रत किया जायेगा। वक्रतुण्डी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ भी इसी चतुर्थी के नाम है।सकट चौथ के दिन श्री गणेश पूजन तथा व्रत रखने का विधान है। माघ मास में ‘भालचन्द्र’ नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। भगवान गणेश संकटों को हरण करते है इसलिए इसे सकट चौथ व्रत भी कहा जाता है। सकट चतुर्थी के दिन सभी महिलाएं सुख सौभाग्य और सर्वत्र कल्याण की इच्छा से प्रेरित होकर विशेष रूप से इस दिन व्रत का पालन करती है।

सकट गणेश  चौथ व्रत का पौराणिक आधार  :पदम पुराण के अनुसार यह व्रत स्वयं भगवान गणेश ने मां पार्वती को बताया था।  इस व्रत की विशेषता है कि घर का कोई भी सदस्य इस व्रत को कर सकता है। प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी ‘गणेश चतुर्थी’ कहलाती है, परन्तु माघ मास की चतुर्थी ‘सकट चौथ’ कहलाती है। नियमित रूप से व्रत करने से बुद्धि ,रिद्धि  एवं  सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही समस्त विघ्न बाधाओं का नाश भी होता है। संतान को भगवान श्री गणेश सभी कष्टों से बचाते हैं। श्री गणेश जी का पूजन छात्रों को अत्यन्त मेधावी बनाता है।
भगवान श्री गणेश को चतुर्थी का व्रत प्रिय है। चतुर्थी तिथि को भगवान श्री गणेश जी का जन्म हुआ था। इसी तिथि को कार्तिकेय जी के साथ पृथ्वी की परिक्रमा लगाने की प्रतिस्पर्धा में उन्होंने पृथ्वी की बजाय भगवान भोलेनाथ तथा मां पार्वती जी की सात बार परिक्रमा की थी। तब भगवान शिव जी ने प्रसन्न होकर देवों में प्रमुख मानते हुए उनको प्रथम पूजा का अधिकार दिया था। श्री गणेश विघ्नों का नाश करने वाले और रिद्धि  एवं  सिद्धि के दाता है । माता पार्वती ने भी भगवान शंकर के कहने पर माघ कृष्ण चतुर्थी को संकष्ट हरण श्री गणेश जी का व्रत रखा था। फलस्वरूप उन्हें गणेश जी पुत्र स्वरूप में प्राप्त हुए।

श्री गणेश पूजन विधि : प्रात:काल चौकी पर लाल वस्त्र बिछा कर भगवान श्री गणेश की सोने, चांदी, पीतल या मिट्टी से बनी मूर्ति स्थापित करें। उन्हें पीले वस्त्र तथा आभूषण धारण कराएं एवं बंदन पूजन करें। भगवान शिव एवं आदि शक्ति मां पार्वती का भी पूजन करें।
दिन भर निर्जला व्रत रखें। सांय काल चन्द्रमा को विशेष अर्घ्य देकर पूजन करें। प्रात:काल पूजन में तिलों को गुड़ के साथ मिला कर तिलों का पहाड़ बनाया जाता है।
उसके साथ ‘सकट माता’ का चित्र भी बनाते है।शुद्ध आसन पर बैठ कर सभी पूजन सामग्री चंदन, अक्षत, रोली, मौली, पुष्प माला, धूप, दीप एवं मोदक आदि से भगवान की पूजा की जाती है।
माताओं को बच्चों से भी भगवान श्री गणेश की पूजा करानी चाहिये। दूसरे दिन तिलकुट का प्रसाद सभी में वितरित किया जाता है।
मोदक से श्री गणेश का भोग लगाएं तथा 21 दूर्वा दल भी अर्पित करें।
तिल के दस लड्डू बनाकर, पांच लड्डू  भगवान गणेश को चढ़ावे और शेष पाँच ब्राह्मण  को दान दे देवें |
गुड़ में बने  सफेद तिल  के लड्डू और नैवैध  अर्पित करे- चावल के लड्डू भी चढ़ाएं |आरती करें तथा वस्त्र, अन्न और फल का दान करें।’ ॐ श्री गणेशाय: नमः ‘  मन्त्र का 108 बार जाप करें  I इस व्रत  एवं पूजन से प्रसन्न होकर भगवान गणेश अपने आराधकों को समस्त कार्यकलापों में  सिद्धि प्रदान करते हैं एवं उनके संकट हर लेते है। इसीलिये  सिद्धि  विनायक नाम सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। 

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