प्रधानमंत्री 4 फरवरी को ‘चौरी चौरा’ शताब्दी समारोहों का उद्घाटन करेंगे, टिकट भी होगी जारी
चौरी चौरा के इस कांड में पुलिस ने सैकड़ों लोगों को बनाया था अभियुक्त
सत्र न्यायालय के न्यायाधीश मिस्टर एचई होल्मस ने 9 जनवरी 1923 को सुनाया था 418 पेज का फैसला
न्यायाधीश ने फैसले में 172 अभियुक्तों को सजा ए मौत का हुकूम सुनाया था
दो को दो साल की कारावास और 47 को संदेह के लाभ में दोषमुक्त कर दिया था
इस फैसले के खिलाफ जिला कांग्रेस कमेटी गोरखपुर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अभियुक्तों की तरफ से अपील दाखिल की
इस अपील की पैरवी पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने की थी
मुख्य न्यायाधीश सर ग्रिमउड पीयर्स तथा न्यायमूर्ति पीगट ने सुनवाई शुरू की
30 अप्रैल 1923 को फैसला आया था,जिसमें 19 अभियुक्तों को मृत्यु दंड,16 को काला पानी की सजा हुई
इसके अलावा आठ लोगों को पांच व दो साल की सजा सुनाई गई थी
तीन लोगों को दंगा भड़काने के लिए दो साल की सजा तथा 38 को रिहा कर दिया गया था
न्यूज डेक्स इंडिया
दिल्ली,2 फरवरी। भारत की आजादी के लिये चल रहे आंदोलनों के बीच 100 साल पहले हुआ एक घटनाक्रम इतिहास के पन्नों पर दर्ज है, जिसे चौरी चौरा कांड कहा गया। इस कांड के 10 दिन बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को बीच में ही रोक दिया था। महात्मा गांधी के इस फैसले का देश के महान क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल सहित देशभर के अनेक क्रांतिकारियों ने विरोध किया था। दरअसल गांधी जी अहिंसा के साथ इस आंदोलन को चलाना चाहते थे,मगर 4 फरवरी 1922 को गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच भिडंत हो गई थी। इसके जवाबी हमलें में पुलिस स्टेशन में आग लगा फूंक डाला था। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान 3 नागरिक और 23 पुलिस कर्मी मारे गये थे। गुलाम भारत में हुए इसी घटनाक्रम को चौरी चौरा कांड का नाम दिया गया। ब्रिटिश राज में हुए चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों पर मुक़दमा चलाया गया था,तब इनकी अदालत में पैरवी पंडित मदन मोहन मालवीय ने की और इनका केस लड़ा था। पंडित मालवीय जी 172 अभियुक्तों में से 151 लोगों को फांसी से बचाने ले कामयाब हुए थे।
भोपा बाजार,गांधी टोपी पर सिपाही का पांव,विरोध,फायरिंग और थाने में आग
महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार, अंग्रेजी पढ़ाई छोड़ने और चरखा चलाकर स्वदेशी कपड़े बनाने की अपील की थी और यह सत्याग्रह आंदोलन पूरे देश में रंग ला रहा था। उस दिन शनिवार का दिन था और तारीख थी,4 फरवरी 1922। सत्याग्रही भोपा बाजार में एकत्रित हुए थे। थाना के सामने से जुलूस के रूप में जा रहे थे,मगर इस पुलिस थाना के तत्कालीन थानेदार गोपेश्वर सिंह ने इस जुलूस को अवैध मजमा घोषित कर दिया था। एक सिपाही ने एक प्रदर्शनकारी की गांधी टोपी को पांव से रौंदते हुए कड़ा संकेत देने का प्रयास किया था,मगर गांधी टोपी को रौंदता देख सत्याग्रही आक्रोशित हो गए थे। इन्होंने इसका विरोध किया तो पुलिस ने जुलूस पर फायरिंग शुरू कर दी। इस दौरान 3 सत्याग्रही मौके पर ही शहीद हो गए थे और 50 से अधिक जख्मी हुए।
गोलियां खत्म,उलटे पांव भागे पुलिस कर्मी,थाने में आग,थानेदार को भी बीच में फैंका
गोली खत्म होने पर पुलिसकर्मी थाने की ओर उलटे पांव भागे थे। फायरिंग से भड़की भीड़ ने पुलिस का पीछा कर दौड़ाया था। वहीं थाना के पास एक दुकान से केरोसीन तेल का टीन उठाकर थाने में उड़ेकर आग लगा दी गई थी। थानेदार ने भागने की कोशिश की तो भीड़ ने उसे भी पकड़कर आग में फेंक दिया। इस कांड में एक सिपाही मुहम्मद सिद्दिकी भाग निकलने में सफल हो गया था और उसी ने गोरखपुर के तत्कालीन कलेक्टर को पूरे घटनाक्रम की सूचना दी थी।
19 पुलिस वाले और थाने में वेतन लेने आए चार चौकीदारों सहित 23 मारे गये
पुलिस थाना फूंकने की इस घटना में थानेदार गुप्तेश्वर सिंह, उप निरिक्षक सशस्त्र पुलिस बल पृथ्वी पाल सिंह, हेड कांस्टेबल वशीर खां, कपिलदेव सिंह, लखई सिंह, रघुवीर सिंह, विशेशर राम यादव, मुहम्मद अली, हसन खां, गदाबख्श खां, जमा खां, मगरू चौबे, रामबली पांडे, कपिल देव, इंद्रासन सिंह, रामलखन सिंह, मर्दाना खां, जगदेव सिंह, जगई सिंह, और उस दिन वेतन लेने थाने पर आए चौकीदार बजीर, घिंसई,जथई व कतवारू राम मारे गये थे।
यह दोषी ठहराए और हुई फांसी
अब्दुल्ला, भगवान, विक्रम, दुदही, काली चरण, लाल मुहम्मद, लौटी, मादेव, मेघू अली, नजर अली, रघुवीर, रामलगन, रामरूप, रूदाली, सहदेव, सम्पत पुत्र मोहन, संपत, श्याम सुंदर व सीताराम को घटना के लिए दोषी मानते हुए फांसी दी गई थी
पंडित दशरथ प्रसाद द्विवेदी ने दी थी गांधी को सूचना
इस घटनक्रम की सूचना गोरखपुर जिला कांग्रेस कमेटी के उपसभापति पंडित दशरथ प्रसाद द्विवेदी ने चिट्ठी लिखकर महात्मा गांधी को दी थी। इस घटना को हिंसक मानते हुए महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया था।
पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने फांसी की सजा से बचाये थे 151 लोग
चौरी चौरा के इस कांड में पुलिस ने सैकड़ों लोगों को अभियुक्त बनाया। गोरखपुर सत्र न्यायालय के न्यायाधीश मिस्टर एचई होल्मस ने 9 जनवरी 1923 को 418 पेज के निर्णय में 172 अभियुक्तों को सजाए मौत का फैसला सुनाया। दो को दो साल की कारावास और 47 को संदेह के लाभ में दोषमुक्त कर दिया। इस फैसले के खिलाफ जिला कांग्रेस कमेटी गोरखपुर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अभियुक्तों की तरफ से अपील दाखिल की, जिसका क्रमांक 51 सन 1923 था। इस अपील की पैरवी पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने की। मुख्य न्यायाधीश सर ग्रिमउड पीयर्स तथा न्यायमूर्ति पीगट ने सुनवाई शुरू की। 30 अप्रैल 1923 को फैसला आया था। इसमें 19 अभियुक्तों को मृत्यु दंड, 16 को काला पानी, इसके अलावा बचे लोगों को आठ, पांच व दो साल की सजा दी गई। तीन को दंगा भड़काने के लिए दो साल की सजा तथा 38 को रिहा कर दिया गया था।
अब मोदी करेंगे चौरी चौरा शताब्दी समारोह का उद्घाटन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गोरखपुर, उत्तर प्रदेश स्थित ‘चौरी चौरा’ शताब्दी समारोहों का 4 फरवरी, 2021 को दिन में 11 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उद्घाटन करेंगे। 4 फरवरी को ‘चौरी चौरा’ कांड के 100 पूरे हो रहे हैं। चौरी चौरा की घटना देश के स्वाधीनता संघर्ष में मील का पत्थर सिद्ध हुई थी। इस अवसर पर प्रधानमंत्री चौरी चौरा को समर्पित एक डाक टिकट भी जारी करेंगे। इस उद्घाटन कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उपस्थित रहेंगे। राज्य सरकार की योजना उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में शताब्दी समारोहों और विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन की है। यह आयोजन 4 फरवरी 2021 से शुरू होंगे और एक वर्ष तक 4 फरवरी, 2022 तक जारी रहेंगे।