संदीप गौतम/न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र, 4 अगस्त। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा मंगलवार को ‘भारतीय संस्कृति में शक्ति उपासना’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। संस्थान द्वारा आयोजित सातवें व्याख्यान में डॉ. राजेश्वर प्रसाद मिश्र, अधिष्ठाता शैक्षणिक, महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, मूदड़ी, कैथल मुख्य-वक्ता रहे। संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने अतिथि परिचय कराते हुए बताया कि संस्थान सांस्कृतिक प्रचार-प्रसार की दृष्टि से अपनी गतिविधियांे को संपन्न करता है। प्रमुख गतिविधि संस्कृति ज्ञान परीक्षा है जिसमें गत वर्ष 22.5 लाख भैया-बहिनों एवं आचार्यों ने भाग लिया है। ऐसी ही एक गतिविधि है संस्कृति महोत्सव जिसमें कथा-कथन, तात्कालिक भाषण, प्रश्न मंच इत्यादि का आयोजन होता है। ये प्रतियोगिताएं विद्यालय स्तर, संकुल स्तर, प्रान्त स्तर, क्षेत्र और फिर अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित होती हैं। उन्होंने मुख्य वक्ता का परिचय कराते हुए कहा कि डॉ. राजेश्वर प्रसाद मिश्र वैदिक साहित्य, वैदिक संस्कृति, धर्म दर्शन जैसे विषयों के ज्ञाता हैं। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में प्राच्य विद्या विभाग के अधिष्ठाता रहे हैं। उन्होंने संस्कृत भाषा में गीत, श्लोक, मुक्त छंद जैसी रचनाएं रची हैं। भारत सरकार की संस्कृत भाषा सलाहकार समिति में भी दायित्व वहन कर रहे हैं। तत्पश्चात ब्रह्मपुरी आदर्श विद्या मंदिर जोधपुर के प्रधानाचार्य धर्मेन्द्र राघव ने ‘‘हिन्दु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना…..’’ गीत प्रस्तुत किया।
मुख्य वक्ता डॉ. राजेश्वर प्रसाद मिश्र ने कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व की ऐसी संस्कृति है जिसे विश्ववारा के नाम से जाना जाता है। भारत विश्वगुरु हमारी इसी संस्कृति के कारण बना था। संस्कृति और सभ्यता दो ऐसे शब्द हैं जिसमें संस्कृति हमारा अंतः तत्व है और सभ्यता बाह्य साधन। संस्कृति हमारी जीवन पद्धति है जिसे भारतीयों ने पुरातन काल से संभाला। संस्कृति के मूलभूत तत्व थे जिसके आधार पर इस संस्कृति का विश्व में परचम रहा, आज भी लोग उसे नमन करते हैं।
उन्होंने कहा कि संस्कृति के माध्यम से मनुष्य के चित्त और अंतःकरण का संस्कार और परिष्कार होता है। यह जीवन पद्धति है जिसमें आत्मा का संस्कार इसी संस्कृति के माध्यम से भारत में होता रहा। भारतीय संस्कृति में हम जिस शक्ति उपासना की बात आज तक करते रहे हैं वह दो प्रकार की है-सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक शक्ति लोक कल्याण के लिए है जबकि नकारात्मक शक्ति अनर्थकारी है। नकारात्मक शक्ति का सदैव विरोध हुआ है। भारतीय संस्कृति सकारात्मक शक्ति की उपासक रही है। इस शक्ति से ही अधर्म का उन्मूलन होता रहा है। उन्होंने रामायण और महाभारत के पात्रों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन पात्रों ने देवताओं से जो शक्तियां प्राप्त की थीं, वह धर्म की स्थापना और लोकमंगल के लिए थीं। भारतीय संस्कृति इसी शक्ति की सदैव उपासक रही है। सदियों से इसी शक्ति से ही भारत में अधर्म का उन्मूलन होता रहा है। इस शक्ति को हम बलोपासना भी कहें तो कोई दोष नहीं है। शक्ति की उपासना से ही आसुरी शक्तियां पराजित होती हैं।
उन्होंने भारत के माननीय प्रधानमंत्री के सैन्य बल को अस्त्र-शस्त्र से संपन्न करने की संकल्पना के बारे में कहा कि इसे भी प्रकारान्तर की भांति भौतिक शक्ति कह सकते हैं जो धर्म की स्थापना में, अपने राष्ट्र की और सृष्टि की सुरक्षा के लिए भौतिक शक्तियों का संवर्द्धन है। जिसकी उपासना भारतीय संस्कृति करती रही है।
डॉ. मिश्र ने वेद, पुराण, रामायण, हनुमान चालीसा, आदित्य हृदय स्तोत्र, भागवत पुराण स्कन्द, अग्नि पुराण में उल्लिखित श्लोकों में शक्ति उपासना के महत्व को समझाया और बताया कि भारतीय संस्कृति में सकारात्मक बल की उपासना वैदिक काल से की जाती रही है।
उन्होंने कहा कि हम शक्ति की उपासना सर्वत्र अपने जीवन के मंगल के लिए चाहे वह सामान्य जीवन हो, चाहे राष्ट्र जीवन हो या दाम्पत्य जीवन हो, जहां भी कहीं देखें हम उस शक्ति की उपासना हमेशा उसी रूप में करते रहे हैं। इसमें हम अपने अभीष्ट के लिए, अपने मंगल के लिए यह काम करते हैं। हमारी संस्कृति में शक्ति की सौभाग्य के रूप में पूजा की जाती है। भारतीय शक्ति में नारी शक्ति स्वरूपा होने से पूजनीय है। व्याख्यान के अंत में संस्थान के निदेशक एवं व्याख्यानमाला संयोजक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने देश के अनेक राज्यों राजस्थान, झारखंड, मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा व अन्य राज्यों से जु़ड़े संस्कृति प्रेमियों एवं सभी श्रोताओं का धन्यवाद किया और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना के साथ व्याख्यान का समापन हुआ।
फोटो – व्याख्यान देते हुए डॉ. राजेश्वर प्रसाद मिश्र अधिष्ठाता शैक्षणिक, महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, मूदड़ी, कैथल, संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह एवं गीत प्रस्तुति जोधपुर से धर्मेन्द्र यादव।
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मातृभूमी ,भारत माता ,हिमालय क्रीटिनी आदि संबोधन से ही भारतीय संस्कृती में शक्ती उपासना की गरिमा प्रगटित है। नारी शक्ती वंदनीय है इसलिए भारतीय संशकृती पूजनीय है ।। धन्यवाद।