एफएफडीसी के विशेषज्ञ दिखा रहे हैं स्वाबलंबन का रास्ता
संदीप गौतम/न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। दिव्यांग विद्यार्थियों में असीम प्रतिभा है, आवश्यकता है थोड़े प्रोत्साहन की, यह उक्ति समग्र शिक्षा द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविर में चरितार्थ होती दिखी जहां इन विद्यार्थियों ने अपने हाथों अगरबत्तियां और गुलाब जल बनाकर दिखाया। प्रशिक्षण के लिए आए फ्रेग्रेन्स एंड फ्लेवर डेवलपमेंट सेंटर कन्नौज के सहायक निदेशक डा. एपी सिंह और उनकी टीम भी बच्चों के रिस्पांस को देख हैरान है। बुधवार को गुर्जर धर्मशाला में दिव्यांग विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई यह अगरबत्ती प्रदर्शित की गईं। प्रशिक्षण के अंत में शिविर के दौरान विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई सभी वस्तुओं को प्रदर्शनी व बिक्री के लिए रखा जाएगा। शिविर का आयोजन हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद के तत्वावधान में किया जा रहा है। जिला परियोजना समन्वयक रामदिया गागट ने देर शाम प्रशिक्षणार्थियों से मुलाकात की और अनुभव सांझा किये।
उन्होंने सभी व्यवस्थाओं की समीक्षा की और विद्यार्थियों को अधिक से अधिक सुविधाएं मुहैया कराने के निर्देश दिए। कार्यक्रम प्रभारी एपीसी संजय कौशिक ने बताया कि शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेश के दिव्यांग विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में व्यावसायिक प्रशिक्षण शिविर गुर्जर धर्मशाला में 14 फरवरी को शुरू हुआ था। यह 10 दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण 23 को सम्पन्न होगा। कैम्प में सुगन्ध एवं सुरस विकास केंद्र कन्नौज के विशेषज्ञ प्रशिक्षण दे रहे है। विद्यार्थियों के रहने, खाने व प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था समग्र शिक्षा द्वारा की गई है। एफएफडीसी के सहायक निदेशक डा. एपी सिंह ने बताया एफएफडीसी के वैज्ञानिक डॉ ज्ञानेंद्र सिंह, कमलेश कुमार, तकनीकी सहायक अभिषेक द्विवेदी व राहुल कुमार की टीम विद्यार्थियों को सुगंध आधारित उद्योग की बारीकियां सीखा रही है। पहले चरण में गुलाब जल व अगरबत्ती बनाना सिखाया गया है जबकि प्रशिक्षण के माध्यम से विद्यार्थी हवन सामग्री, शंकु और इत्र बनाने के साथ साथ गुलाबजल, गुलकंद, गुलाल, फेस पैक और परफ्यूम बनाना सीख सकेंगे।
अगरबत्ती, धूपपट्टी, हवनसमग्री, शंकु और इत्र बनाने के साथ साथ गुलाबजल, गुलकंद, गुलाल, फेस पैक और परफ्यूम बनाना सीख सकेंगे। एफएफडीसी कन्नौज की ओर से सभी विद्यार्थियों और स्पेशल टीचर्स को प्रशिक्षण किट प्रदान की गई जिसमें प्रशिक्षण साहित्य के साथ कुछ बुनियादी कच्चे माल भी है। दिव्यांग विद्यार्थियों से मुखातिब वैज्ञानिकों ने बताया प्राचीन काल से गुलाब का उपयोग औषधीय रूप से पोषण और इत्र के स्रोत के रूप में किया जाता रहा है। प्राचीन यूनानियों, रोमनों, और फोनीशियन ने बड़े सार्वजनिक गुलाब के बागों को महत्वपूर्ण माना। गुलाब जल शर्बत व मिठाइयों में प्रयुक्त किया जाता है और इससे चेहरे की सुंदरता बढ़ाने, आंखों में डालने के साथ-साथ विभिन्न दवाइयों में भी इस्तेमाल किया जाता है।
गुलाब तेल, सेंट बनाने व ऑफ सीजन में गुलाब जल बनाने में काम लिया जाता है। गुलाब से गुलकंद भी बनाया जाता है। गुलाब जल एक बहुत अच्छा क्लींजर है। गुलाब की देशी किस्म जवाला नूरजहां और रोजडंस्कीना अछी किस्म मानी जाती है। डॉ एपी सिंह ने बताया कि गुलाब जल बनाने के डेग एवं भपका विधि का प्रयोग सिखाया गया। इस विधि में तीन अवयव डेग, भपका एवं चोगा होते हैं। डेग एवं भपका कॉपर के बने होते हैं. एवं चोंगा बाँस के ऊपर सुतली एवं रस्सी लपेटकर बनाया जाता है। यह प्राचीन विधि होने के साथ-साथ परम्परागत भी है। उन्होंने बताया कि इन दिनों अगरबत्ती का व्यवसाय भी बहुत तेजी से बढ़ रहा है। प्राचीन समय से ही आराधना के लिए संगन्धित जड़ी-बूटियों का उपयोग होता रहा है। आज के समय में अगरबत्ती पूजन का सबसे सुविधाजनक माध्यम है। अगरबत्तियों का उपयोग अब केवल पूजा में ही नहीं वरन् वातावरण को सुगन्धित करने, ध्यान व योग में तथा मच्छर