श्री कृष्ण कृपा गौशाला में भागवत कथा के तीसरे दिन मुख्यातिथि के रूप में पहुंचे कुलपति डा. बलदेव व कुलसचिव डा. संजीव सहित अन्य गणमान्य ने किया दीप प्रज्जवलित
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र।गाय और गीता को समर्पित स्वामी ज्ञानानंद जी के निर्देशानुसार श्री कृष्ण कृपा गौशाला परिसर में आयोजित भागवत कथा के तीसरे दिन व्यास पीठ से बोलते हुए भागवताचार्य विष्णुकांत शास्त्री ने कहा कि धर्म का काम केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढी के लिए भी करना चाहिए। मानव द्वारा किए गए धर्म-अधर्म का फल आने वाली पीढि़यों को भी भुगतना पड़ता है।
इस अवसर पर आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बलदेव धीमान, कुवि के रजिस्ट्रार डा. संजीव शर्मा, श्री ब्राह्मण एवं तीर्थोद्वार सभा की संरक्षक श्रीमती सीता देवी, केडीबी सदस्य राजेश शांडिल्य, स्वामी हरिओम परिव्राजक, प्रिंसीपल बलवंत वत्स, मित्रसेन गुप्ता, सुनील वत्स, विजय नरूला, प्रेस सचिव रामपाल शर्मा, डा. मनीष सैनी सहित अनेक गणमान्य लोगों ने दीप प्रज्जवलित कर भागवत जी की आरती उतारी।
आज की कथा के यजमान कृष्ण कृपा गौशाला के प्रधान हंसराज सिंगला तथा पृथ्वी राज बंसल परिवार सहित थे। कार्यक्रम का मंच संचालन प्रिंसीपल बलवंत वत्स ने किया। शास्त्री जी ने कथा में शामिल गणमान्य लोगों को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया।
कथावाचक शास्त्री जी ने कहा कि अनर्थ के द्वारा धन कमाने से आने वाली पीढी बर्बाद हो जाती है इसलिए अनर्थ से कभी धन नही कमाना चाहिए। मेहनत का धन ही फलदायक होता है और आने वाली संतान को संस्कारवान बनाता है। व्यक्ति तुछ लाभ के लिए अनर्थ से धन तो कमा लेता है लेकिन इसका खामियाजा आने वाली पीढीओं को भुगतना पडता है। यदि आने वाली पीढी बचानी है तो नेक कमाई करनी चाहिए।
गाय के महत्व पर बोलते हुए शास्त्री जी ने कहा कि पहले गऊमाता पर कष्ट आता था तो राजा व्याकुल हो उठता था लेकिन आज हमने गाय को घर से बाहर निकाल दिया है और कुत्ते का घर में प्रवेश कर दिया। कुत्ते के घर में प्रवेश से बीमारी फैलती है व अनेक प्रकार की व्याधि आती है। उन्होने कहा कि जिस घर से गाय को निकालकर कुत्ते को घर में प्रवेश करवाया जाता है वह विनाश का समय होता है। कुत्ते पालने वाले मालिक के हाथ का तो पानी पीना भी निषेध बताया गया है। जिस देश में गाय को पूजा जाता है वहां आज गाय की दुर्दशा हो रही है।
शास्त्री जी ने व्यास पीठ से बोलते हुए कहा कि पाणि ग्रहण संस्कार गऊदान के बिना अधूरा माना जाता है। कन्यादान का साक्षी गौदान होता है क्योंकि गाय में 33 करोड़ देवी देवता वास करते हैं और वे सब कन्यादान के साक्षी बनते हैं। उन्होने कहा कि जैसे संस्कार मिलेंगें भावी पीढी वैसी ही बनेगी।
शास्त्री जी ने मानव जीवन सुधारने के लिए लोक कल्याण के कार्य करने पर बल दिया।