Friday, November 22, 2024
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महाभारतकालीन 134 तीर्थों में से 70 पर चल रहे हैं जीर्णोद्धार कार्य

by Newz Dex
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न्यूज डेक्स संवाददाता

कुरुक्षेत्र। महाभारतकालीन कुरुक्षेत्र के 48 कोस क्षेत्र में स्थित 134 तीर्थों में से 70 तीर्थों पर विकास कार्य शुरु हो चुके हैं। इन्हीं में से एक बहलोलपुर स्थित पराशर तीर्थ के जीर्णोद्धार के लिये करीब एक करोड़ रुपये की राशि कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड द्वारा खर्च की गई है। कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के मानद सचिव मदन मोहन छाबड़ा ने बहलोलपुर में वीरवार को पराशर तीर्थ पर आयोजित आंवला नवमीं एकादशी मेले की व्यवस्था का निरीक्षण किया।

उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ने पराशर तीर्थ सहित महाभारतकालीन 48 कोस क्षेत्र के प्रमुख तीर्थों पर पहुंच कर इनके जीर्णोद्धार की योजना को हरी झंडी दी थी, इसके बाद 134 में से 70 तीर्थों पर विकास कार्य भी ?शुरु हो चुके हैं।उन्होंने कहा कि पराशर तीर्थ व अन्य तीर्थों के जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यकरण के लिये कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड संकल्पबद्ध है। वहीं उन्होंने अपील की कि इन पवित्र स्थलों के रख रखाव और व्यवस्था को बनाये रखने में अपना योगदान जरूर दें।

उन्होंने कहा कि पराशर नामक यह तीर्थ करनाल से लगभग 18 किलो मीटर की दूरी पर गांव बहलोलपुर के उत्तर पूर्व में है। इस गांव में स्थित तीर्थ का नाम महर्षि वशिष्ठ के पौत्र तथा महर्षि शक्ति के पुत्र पराशर मुनि से संबंधित है। इसलिए इस पूजनीय धार्मिक स्थल का नाम हिंदुओं के पराशर तीर्थ के नाम से विख्यात हुआ,जोकि महाभारतकालीन कुरुक्षेत्र के 48 कोस क्षेत्र में स्थित तीर्थों में शामिल हैं। महर्षि पराशर  महाभारत के रचयिता महर्षि व्यास के पिता थे। महाभारत के आदि पर्व में महर्षि पराशर से संबंधित कथा के अनुसार यह बचपन से ही वेदाभ्यास करते थे।

पराशर के जन्म से पूर्व ही कल्माषपाद नामक राजा, जो कि महर्षि शक्ति के श्राप से राक्षस हो गया था, ने उनके पिता शक्ति का भक्षण कर लिया था। जब इन्हें अपनी माता से यह ज्ञात हुआ कि एक राक्षस ने इनके पिता का भक्षण कर लिया, तो इनके मन में सम्पूर्ण राक्षस जाति के प्रति अदम्य घृणा उत्पन्न हो गई। अत: पराशर ने राक्षसों के विनाश के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया। इसी यज्ञों में सहस्रों राक्षस जलकर नष्ट हो गए थे। तब वशिष्ठ एवं पुलस्त्य आदि महर्षियों ने इन्हें रोक कर इनके यज्ञ का निवारण किया था। इन्हीं महर्षि पराशर ने बाद में सत्यवती से महर्षि व्यास को उत्पन्न किया, जिन्होंने महाभारत एवं 18 पुराणों की रचना की थी।

मान्यता है कि इसी तीर्थ पर महर्षि पराशर ने कठोर तप किया था ।  तीर्थ स्थित मन्दिरों की बाह्य एवं आंतरिक भित्तियों में भित्ति चित्रों की प्रधानता है, इनमें हनुमान, शेर से लड़ता हुआ योद्धा, गणेश, शेषशायी विष्णु, दुर्गा, शिव, पार्वती, राधा-कृष्ण, विष्णु-लक्ष्मी, गीता उपदेश, संन्यासी, बीन बजाता कलाकार आदि के चित्र सम्मिलित हैं। यहां तीर्थ सरोवर पर अष्टकोण बुर्जी वाले लाखौरी ईंटों से निर्मित उत्तर मध्यकालीन घाट थे,इन घाटों की पुरानी सामान्य से काफी बड़ी ईंटें आज भी यहां देखी जा सकती हैं।वर्तमान में इस तीर्थ का नया स्वरुप कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड द्वारा करीब एक करोड़ रुपये का बजट खर्च कर जीर्णोद्धार किया है। इस राशि से मुख्य मार्ग से लेकर तीर्थ तक टाइल ब्लाक,सौंदर्यकरण और तीर्थ पर महिला घाट एवं पक्के पुरुष घाट बनाये गये हैं।

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