भागवत का एक शब्द भी कान में पड़ जाए तो सुधर जाता है जीवन : शास्त्री
गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद और पूर्व मंत्री अशोक अरोड़ा ने भी रसावादन किया भागवत कथा का
गाय और गीता के प्रति समर्पित है स्वामी ज्ञानानंद जी का जीवन : अशोक अरोड़ा
न्यूज डेक्स संवाददाता
कुरुक्षेत्र। गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी के सानिध्य में श्री कृष्ण कृपा गौशाला में आयोजित भागवत कथा के चौथे दिन व्यास पीठ से बोलते हुए प्रसिद्ध कथावाचक विष्णुकांत शास्त्री जी ने कहा कि भागवत का एक शब्द भी कान में पड जाए तो जीवन सुधर जाता है। भागवत पापियों को पाप से तारती है। आज की भागवत कथा में गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद, पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक अरोड़ा, प्रदेश कांग्रेस के संगठन सचिव सुभाष पाली व प्रमुख व्यवसायी धीरज गुलाटी ने भी भागवत पुराण का रसावादन किया। आज की कथा के मुख्य यजमान हंसराज सिंगला के परिजन, अनाज मंडी शाहाबाद के धनतराय अग्रवाल, केडीबी सदस्य विजय नरूला व जगतार सिंह काजल रहे।
स्वामी ज्ञानानंद जी के सानिध्य में अशोक अरोड़ा व अन्य गणमान्य लोगों ने भागवत जी की आरती उतारी। अशोक अरोड़ा ने अपने संबोधन में कहा कि यह शौभाग्य की बात है कि गाय और गीता को समर्पित स्वामी ज्ञानानद जी को अपनी कर्मभूमि बनाया है। मै इनसे लंबे समय से परिचित हूँ। स्वामी जी ने गाय को समर्पित भागवत कथा करवाकर सोने पर सुहागे जैसा काम किया है। धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के साथ-साथ दिव्यांगों की सेवा में भी अग्रसर रहते हैं। भागवत और गीता ज्ञान फैलाकर स्वामी ज्ञानानंद जी एक महान काम कर रहे हैं और इन जैसे संतों के कारण ही दोबारा से फिर भारत विश्वगुरु बनेगा।
विष्णुकांत शास्त्री जी ने व्यास पीठ से अमृत वर्षा करते हुए कहा कि भगवान से भी बढ़कर भक्तों का चरित्र जिसमें हो वही भागवत है। भगवान भक्तों को अपने से भी बड़ा मानते हैं और स्वयं भक्त के दर्शन करने आते हैं, यही तो भागवत पुराण है। शंख को ज्ञान का भंडार बताते हुए उन्होने कहा कि जब भक्त धु्रव को भगवान ने शंख का स्पर्श करवाया तो उसका ज्ञान फूट उठा। भगवान वह है जो अंत:करण में आत्मा रूप में विराजमान है और बाहर काल के रूप में विराजमान है। ऐसे परमपिता परमात्मा को नमन करते हुए भक्त धु्रव 36 हजार वर्ष राज भोगने के बाद धु्रव लोक को गए।
राजा पृथु का उल्लेख करते हुए शास्त्री ने कहा कि पृथु ने इस धरा को अपने तपोबल से समतल किया था। धरा को पृथु ने गोद लेकर बेटी बनाया और तभी इसका नाम पृथ्वी पडा। बलि प्रथा का जिक्र करते हुए शास्त्री जी ने कहा कि वेद भगवान जी जो कहते हैं वह तो हम समझते नही, वेदों में लिखा है कि पशु का स्पर्श करना चाहिए लेकिन लोगों ने इसका मतलब बलि से निकाल लिया। वेदों में बलि देने का कोई विधान नही है। उन्होने कहा कि भागवान के शरणागत होने से ही कल्याण होता है।
व्यास पीठ से भागवत पुराण का रसावादन करते हुए शास्त्री जी ने कहा कि भारत वर्ष में जन्म लेने के लिए देवता भी तरसते हैं क्योंकि यहां हरि कीर्तन कथा सुनने को मिलती है। भारतवर्ष सबसे श्रेष्ठ भूमि है। व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भुगतना पडता है और भागवत नाम संकीर्तन से ही जीव का कल्याण होता है। भागवत नाम संकीर्तन वह साबुन है जो सब पापों को धो देता है। इस मौके पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रेस मैनेजर एमके मौदगिल, श्री कृष्ण गौशाला के संरक्षक आरडी गोयल, सुनील वत्स, सतपाल सिंगला, मंगतराम मैहता, केके कौशल, भूषण गाबा, श्याम आहुजा, वासुदेव, रमाकांत शर्मा, पवन भारद्वाज, प्रिंसीपल बलवंत वत्स सहित अनेक श्रद्धालुओं ने भागवत कथा का रसावादन किया।